भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस)
भारतीय विदेश मंत्रालय के कार्यों के संचालन के लिये एक विशेष सेवा वर्ग का निर्माण किया गया है जिसे भारतीय विदेश सेवा (Indian Foreign Service- IFS) कहते हैं। यह भारत के पेशेवर राजनयिकों का एक निकाय है। यह सेवा भारत सरकार की केंद्रीय सेवाओं का हिस्सा है। भारत के विदेश सचिव, भारतीय विदेश सेवा के प्रशासनिक प्रमुख होते हैं। यह सेवा अब संभ्रान्त परिवारों, राजा-रजवाड़ों, सैनिक अफसरों आदि तक ही सीमित न रहकर सभी के लिये खुल गई है। सामान्य नागरिक भी अपनी योग्यता और शिक्षा के आधार पर इस सेवा का हिस्सा बन सकता है।
चयन प्रक्रिया:
चयन प्रक्रिया:
- भारतीय विदेश सेवा में चयन प्रत्येक वर्ष संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित ‘सिविल सेवा परीक्षा’ के द्वारा होता है।
- सिविल सेवा परीक्षा में अंतिम रूप से चयनित अभ्यर्थियों को उनके द्वारा प्राप्त कुल अंकों और उनके द्वारा दी गई सेवा वरीयता के अनुसार ही पदों का आवंटन किया जाता है।
- इस सेवा के साथ अनेक चुनौतियाँ और उत्तरदायित्व जुड़े हुए हैं, इसलिये संघ लोक सेवा आयोग इस सेवा के लिये ऐसे अभ्यर्थियों का ही चुनाव करता है जो इस सेवा के अनुकूल हों।
- हाल के वर्षों में भारतीय विदेश सेवा में प्रति वर्ष लगभग 20 व्यक्तियों को नियुक्त किया जाता है। सेवा की वर्तमान कैडर संख्या लगभग 600 अधिकारियों की है,जिनमें लगभग 162 अधिकारी विदेशों में भारतीय मिशन एवं देश में विदेशी मामलों के मंत्रालय में विभिन्न पदों पर आसीन हैं।
शैक्षिक योग्यता:
- उम्मीदवार को किसी मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय/ संस्थान से स्नातक (Graduate) होना अनिवार्य है|
प्रशिक्षण:
- भारतीय विदेश सेवा के लिये चयनित नए सदस्यों को तीन वर्षीय (36 महीनों की अवधि) महत्त्वपूर्ण प्रशिक्षण कार्यक्रम से होकर गुज़रना पड़ता है। यह प्रशिक्षण निम्नलिखित चरणों में संपन्न होता है-
1. आधारभूत प्रशिक्षण - 4 माह (राष्ट्रीय अकादमी, मसूरी में)
2. व्यावसायिक प्रशिक्षण - 12 माह (ज़िला कार्यालय और अन्तर्राष्ट्रीय स्कूल, नई दिल्ली में)
3. व्यावहारिक प्रशिक्षण - 6 माह (विदेश मन्त्रालय के अंतर्गत)
4. परिवीक्षा प्रशिक्षण - 14 माह (विदेश स्थित उच्चायुक्त/दूतावास में) - सर्वप्रथम इन प्रशिक्षु अधिकारियों को ‘लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी’ में 4 माह का आधारभूत प्रशिक्षण दिया जाता है, जहाँ कई अन्य विशिष्ट भारतीय सिविल सेवा संगठनों के सदस्यों को भी प्रशिक्षित किया जाता है।
- नए सदस्य एक परिवीक्षा अवधि से गुज़रते हैं, इस दौरान इन्हें परिवीक्षार्थी (प्रोबेशनर) कहा जाता है।
- लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद परिवीक्षार्थी आगे के प्रशिक्षण के साथ-साथ विभिन्न सरकारी निकायों के साथ संलग्न होने और भारत एवं विदेश में भ्रमण के लिये नई दिल्ली स्थित ‘विदेश सेवा संस्थान’ में दाखिला लेते हैं।
- इन प्रशिक्षु अधिकारियों को ‘इंडियन स्कूल ऑफ इण्टरनेशनल स्टडीज़, नई दिल्ली’ में 4 माह का विदेश नीति तथा कार्य-प्रणाली, अन्तर्राष्ट्रीय संबंध तथा भाषा की जानकारी का प्रशिक्षण दिया जाता है।
- इसके पश्चात् प्रशिक्षु अधिकारियों को 6 माह के लिये किसी ज़िला प्रशासन से संलग्न किया जाता है ताकि ये दायित्व के व्यावहारिक सम्पर्क में आने के योग्य हो जाएँ। साथ ही, इन्हें कुछ समय के लिये विदेश मन्त्रालय के सचिवालय में भी प्रशिक्षण प्रदान किया जाता हैं।
- आईएफएस के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाषाओं (हिन्दी तथा एक विदेशी भाषा) और ऐसे विषयों के अध्ययन पर बल दिया जाता है जिनका ज्ञान प्राप्त करना एक आईएफएस अधिकारी के लिये आवश्यक समझा जाता है।
- नए सदस्यों को कुछ दिनों के लिये सेना की यूनिट में तथा ‘भारत दर्शन’ के लिये भी भेजा जाता है।
- प्रशिक्षण कार्यक्रम के समापन पर अधिकारी को अनिवार्य रूप से एक विदेशी भाषा (Context Free Language - CFL) सीखने का जिम्मा दिया जाता है।
- एक संक्षिप्त अवधि तक विदेश मंत्रालय के साथ संलग्न रहने के बाद अधिकारी को विदेश में एक भारतीय राजनयिक मिशन पर नियुक्त किया जाता है जहाँ की स्थानीय भाषा ‘सीएफएल’ हो। वहाँ अधिकारी भाषा का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं और फिर इनसे सीएफएल में दक्षता प्राप्त करने और एक परीक्षा उत्तीर्ण करने की अपेक्षा की जाती है, उसके बाद ही इन्हें सेवा में बने रहने की अनुमति दी जाती है।नियुक्ति एवं पदोन्नति:
- आईएफएस अधिकरियों की नियुक्ति सामान्यत: दूतावास, वाणिज्य दूतावास एवं विदेश मंत्रालय में की जाती है।
- ये विदेशों में अपनी सेवा तृतीय सचिव के तौर पर आरंभ करते हैं और सेवा में स्थायी होते ही द्वितीय सचिव के पद पर प्रोन्नत कर दिये जाते हैं।
- आईएफएस अधिकारी की सर्वश्रेष्ठ पदस्थापना राजदूत या विदेश सचिव के रूप में होती है| इनका पदक्रम इस प्रकार है-
- दूतावास में:
तृतीय सचिव (प्रवेश स्तर)
द्वितीय सचिव (सेवा में पुष्टि के बाद पदोन्नति)
प्रथम सचिव
सलाहकार
मिशन के उपाध्यक्ष/ उप उच्चायुक्त/ उप स्थायी प्रतिनिधि
राजदूत/उच्चायुक्त/स्थायी प्रतिनिधि- वाणिज्य दूतावास में:
उप वाणिज्य दूत(Vice Consul)
वाणिज्य दूत(Consul)
महावाणिज्य दूत(Consul-General)- विदेश मंत्रालय में:
अवर सचिव(Upper Secretary)
उप सचिव(Deputy Secretary)
निदेशक(Director)
संयुक्त सचिव(Joint Secretary)
अतिरिक्त सचिव(Additional Secretary)
सचिव(Secretary)कार्य: - वृत्तिक (Professional) राजनयिक के तौर पर आईएफएस अधिकारी से यह आशा की जाती है कि वह विभिन्न मुद्दों पर देश और विदेश दोनों में भारत के हितों का ध्यान रखेगा और इसे आगे बढ़ाएगा। इनमें द्विपक्षीय राजनीतिक और आर्थिक सहयोग, व्यापार और निवेश संवर्द्धन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान, प्रेस और मीडिया संपर्क तथा सभी बहुपक्षीय मुद्दे शामिल हैं।
- आईएफएस अधिकारी मुख्यत: देश के बाह्य मामलों जैसे- कूटनीति, व्यापार, सांस्कृतिक संबंधों, प्रवास संबंधित मामलों आदि से संबंधित कार्यों को संपादित करते हैं|
- ये भारत की विदेश नीति के निर्माण तथा क्रियान्वयन में संलग्न रहते हैं|
- ये अपने दूतावासों, उच्चायोगों और संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संगठनों के स्थायी मिशनों में भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं|
- नियुक्त किये जाने वाले देश में भारत के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करना इनका मुख्य उद्देश्य होता है।
- अनिवासी भारतीयों और भारतीय मूल के व्यक्तियों सहित मेज़बान राष्ट्र और उसकी जनता के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने में इनकी मुख्य भूमिका होती है।
- ये विदेश में उन घटनाक्रमों की सही-सही जानकारी देते हैं, जो भारत के नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती हैं।
- मेज़बान राष्ट्र के प्राधिकारियों के साथ विभिन्न मुद्दों पर समझौता-वार्ता करने की ज़िम्मेदारी भी इन्हीं की होती है।
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