Wednesday, May 8, 2019

विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO)

Ashok Pradhan     May 08, 2019     No comments


  • WIPO का पूरा नाम World Intellectual Property Organization यानी विश्व बौद्धिक संपदा संगठन है।
  • यह संयुक्त राष्ट्र की सबसे पुरानी एजेंसियों में से एक है।
  • इसका गठन 1967 में रचनात्मक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने और विश्व में बौद्धिक संपदा संरक्षण को बढ़ावा देने के लिये किया गया था।
  • इसके तहत वर्तमान में 26 अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ आती हैं।
  • WIPO का मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में है।
  • प्रत्येक वर्ष 26 अप्रैल को विश्व बौद्धिक संपदा दिवस मनाया जाता है।
  • अभी 191 देश इसके सदस्य हैं, जिनमें संयुक्त राष्ट्र के 188 सदस्य देशों के अलावा कुक द्वीपसमूह, होली सी और न्यूए (Niue) शामिल हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देश इसके सदस्य बन सकते हैं, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है।
  • फिलिस्तीन को इसमें स्थायी पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है तथा लगभग 250 NGO और अंतर-सरकारी संगठन इसकी बैठकों में बतौर आधिकारिक पर्यवेक्षक शामिल होते हैं।
  • भारत 1975 में WIPO का सदस्य बना था।

आइये, अब एक नज़र डालते हैं इस संगठन के अब तक के सफर पर...

  • औद्योगिक संपदा के संरक्षण के लिये पेरिस अभिसमय (1883): विभिन्न देशों में बौद्धिक कार्यों के संरक्षण के लिये पहला कदम, जिसमें ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन आविष्कार के पेटेंट शामिल थे।
  • साहित्यिक और कलात्मक कार्यों के संरक्षण के लिये बर्न अभिसमय (1886): इसमें उपन्यास, लघु कथाएँ, नाटक, गाने, ओपेरा, संगीत, ड्राइंग, पेंटिंग, मूर्तिकला और वास्तुशिल्प कृतियाँ शामिल हैं।
  • मैड्रिड समझौता (1891): यहाँ से अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा फाइलिंग सेवा की शुरुआत हुई।
  • BIRPI की स्थापना (1893): बौद्धिक संपदा संरक्षण हेतु पेरिस और बर्न अभिसमय पर अमल करने के लिये बनाए गए दो सचिवालयों को मिलाकर BIRPI (United International Bureaux for the Protection of Intellectual Property) की स्थापना हुई।
  • BIRPI बना WIPO (1970): सदस्य देशों का नेतृत्व करने वाले एक अंतर-सरकारी संगठन के रूप में WIPO की स्थापना की गई।
  • UN में शामिल हुआ WIPO (1974): WIPO ने वर्ष 1974 से संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी के तौर पर काम करना शुरू किया।
  • पेटेंट कोऑपरेशन ट्रीटी सिस्टम की शुरुआत (1978):इस संधि के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट आवेदन दाखिल कर एक साथ कई देशों में आविष्कार के संरक्षण का प्रयास किया जा सकता है।
  • मध्यस्थता केंद्र की स्थापना (1994): यह केंद्र निजी पक्षों के बीच अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक विवादों को हल करने में सहायता के लिये वैकल्पिक विवाद समाधान सेवाएँ प्रदान करता है।

WIPO के कार्य

  • हर पल बदलती दुनिया में संतुलित अंतर्राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा नियमों को बनाने के लिये यह एक नीतिगत मंच का काम करता है।
  • विभिन्न देशों की सीमाओं के पार बौद्धिक संपदा संरक्षण और विवादों को हल करने के लिये वैश्विक सेवाएँ देना भी इसके कार्यों में शामिल है।
  • बौद्धिक संपदा प्रणालियों को आपस में जोड़ने और ज्ञान साझा करने के लिये तकनीकी आधारभूत संरचना बनाना भी WIPO के ज़िम्मे है।
  • सभी सदस्य देशों को आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के लिये बौद्धिक संपदा का उपयोग करने में सक्षम बनाने के लिये सहयोग और क्षमता निर्माण कार्यक्रम चलाना।
  • WIPO बौद्धिक संपदा की जानकारी के लिये विश्वसनीय वैश्विक संदर्भ स्रोत का काम करता है।

अब चर्चा WIPO की सीमाओं और अपवादों की...

सीमा और अपवाद को WIPO के एजेंडे का एक मुद्दा माना जाता है, क्योंकि अधिकार धारकों और संरक्षित कार्यों का उपयोग करने वालों के हितों के बीच उचित संतुलन बनाए रखने के लिये कॉपीराइट कानून आर्थिक अधिकारों पर कुछ प्रतिबंध लगाते हैं। प्रायः ये ऐसे मामले होते हैं जिनमें संरक्षित कार्यों का उपयोग अधिकार धारकों की अनुमति के बिना और मुआवज़े का भुगतान करके या न करके किया जा सकता है। देखा यह गया है कि सीमाओं और अपवादों के संबंध में बहस मुख्य रूप से तीन समूहों के लाभार्थियों या गतिविधियों पर केंद्रित रहती है- इसमें 1. शैक्षणिक गतिविधियों 2. पुस्तकालयों और अभिलेखागारों 3. विकलांग व्यक्तियों, विशेषकर दृष्टिबाधितों को शामिल किया गया है।

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