Wednesday, May 8, 2019

एक भारत श्रेष्ठ भारतः राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक मज़बूत पहल

Ashok Pradhan     May 08, 2019     No comments

चर्चा में क्यों?

एक वार्षिक कार्यक्रम के रूप में विभिन्न राज्यों को सांस्कृतिक एकता के सूत्र में पिरोने के उद्देश्य से ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ अभियान शुरू किया जाएगा। इस कार्यक्रम के तहत प्रत्येक वर्ष कोई एक राज्य अपनी संस्कृति एवं पर्यटन के प्रचार-प्रसार के लिये किसी अन्य राज्य को चुनेगा तथा दोनों राज्यों के मध्य विभिन्न माध्यमों द्वारा अंतःक्रिया बढ़ाई जाएगी।

सरकार की मंशा

सरकार की इस पहल का मूल उद्देश्य, देश में आंतरिक रूप से व्याप्त सांस्कृतिक अंतर को पाटकर विभिन्न राज्यों के लोगों के बीच आपसी अंतःक्रिया को बढ़ावा देना है, जो अंततः राष्ट्र की मजबूती व एकता का महत्त्वपूर्ण कारक बनेगी। साथ ही इससे भारतीय शासन व्यवस्था के संघात्मक ढाँचे को भी बल प्राप्त होगा। इससे आंतरिक संघर्षों को रोकने तथा देश में व्याप्त अंतर्विरोधी तत्त्वों के आपसी टकराव को रोकने में मदद मिलेगी।

पश्चिमी राष्ट्र संकल्पना

सामान्यतः पश्चिमी विचारकों ने राष्ट्र की जो संकल्पना प्रस्तुत की उसमें एकसमान भाषा, जाति (नस्ल) और धर्म को राष्ट्र निर्माण का आधार बताया गया है और ये कहा गया कि इसके अभाव में बने किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व टिकाऊ नहीं हो सकता।

भारतीय राष्ट्र संकल्पना एवं पश्चिमी विचारकों के विरोधी तर्क

  • भारत के लिये राष्ट्र की संकल्पना पश्चिमी राष्ट्र-राज्य की संकल्पना (एकसमान संस्कृति) से भिन्न सांस्कृतिक विविधता पर आधारित है। भारत में भाषा, धर्म, जाति, रीति-रिवाज, खान-पान और रहन-सहन सरीखे सांस्कृतिक तत्त्वों की इन्हीं विविधताओं को समन्वित करके एकता स्थापित हुई है।
  • ऐसे विचारकों का मानना है कि वर्तमान का भारत एक इकाई न होकर अलग-अलग राष्ट्रों का एक समूह है जो किसी तरह से एक बना हुआ है। इसमें न तो कोई साझापन है और न ही कोई राजनीतिक और सामाजिक चेतना ही है, जो एक राष्ट्र के रूप में इसकी पहचान बन सके।
  • पश्चिमी अनुभव इस धारणा पर आधारित रहे हैं कि राष्ट्र और सांस्कृतिक एकता परस्पर समानार्थी अवधारणाएँ हैं। ऐसा माना जाता है कि 1990 के दशक में यूगोस्लाविया तथा चेकोस्लोवाकिया का विघटन तथा ‘कोसोवो संकट’ नृजातीय एवं सांस्कृतिक विविधताओं की ही देन थे।
  • यही वजह है कि इस धारणा के समर्थक, विचारक भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभावों की ‘स्थानीय प्रकृति’ से चिंतित रहते हैं क्योंकि उनके विचार से सांस्कृतिक विविधता आधुनिक राष्ट्र-राज्य के निर्माण में बाधा उत्पन्न करती है।
    भारतीय राष्ट्र संकल्पना की विशेषता
  • तमाम विविधताओं को समन्वित कर तथा उसे अपनी राष्ट्रीय पहचान बनाते हुए एक सफल राष्ट्र के रूप में स्थापित।
  • वहीं एक नस्ल और भाषा आधारित होने के बावजूद यूरोपीय राष्ट्र-राज्यों में व्याप्त आपसी गतिरोध जैसे- स्कॉटलैंड की इंग्लैंड से अलग होने की मांग तथा कैटेलोनिया की स्पेन से अलग होने की मांग।

भारतीय राष्ट्र संकल्पना कीसमस्याएँ एवं उनसे निपटने के उपाय

  • यद्यपि भारत विविधता के संदर्भ में अनोखा राष्ट्र है किंतु यहाँ धर्म, जाति, भाषा इत्यादि के नाम पर संघर्ष होते रहते हैं। आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब इत्यादि राज्य जहाँ भाषायी आधार पर निर्मित हुए वहीं साम्प्रदायिकता की समस्या आज तक बनी हुई है।
  • जो भिन्नताएँ संघर्ष का कारण बनती हैं, उनके बीच समन्वय स्थापित कर राष्ट्रीय एकता स्थापित की जा सकती है। इसके लिये आवश्यक है कि लोग अपने से भिन्न संस्कृति को जानें-समझें जिससे किसी प्रकार का पूर्वाग्रह न बन सके।
  • साहित्य और सिनेमा जैसे परम्परागत साधन तथा फेसबुक, यू-ट्यूब जैसे आधुनिक साधनों के माध्यम से सांस्कृतिक विविधता का प्रसार किया जा सकता है।
  • वर्तमान समय छवि निर्माण का है, इस लिहाज से भी यह अभियान महत्त्वपूर्ण होगा क्योंकि भारत के पास नृत्य, संगीत से लेकर खान-पान तक इतनी विविधता है कि अगर इसे एक राष्ट्रीय पहचान के रूप में ढाल दिया जाए तो भारत इस संदर्भ में अपनी श्रेष्ठता सिद्ध कर सकता है।
  • ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ जैसे महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम की सफलता के लिये आवश्यक है कि राज्य एवं नागरिक दोनों अपनी भूमिका का बेहतर ढंग से निर्वाह करें।

निष्कर्ष

भारतीय समाज में विकास की अपार संभावना है क्योंकि अनेकता और विविधता विकास की ओर ले जाती है तथा जहाँ विविधता नहीं होती है अर्थात् एक जाति, एक धर्म व एक ही नस्ल; वे प्रायः विकास नहीं कर पाते हैं। इसलिये भारत देश की विविधता ही उसकी शक्ति है। जिसे बनाए रखना हम सबकी साझी ज़िम्मेदारी है।

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