भूमिका
तीव्र आर्थिक संवृद्धि के बावजूद भारत में कई दशकों से कुपोषण एक प्रमुख सामाजिक-आर्थिक चुनौती के रूप में विद्यमान है। 2012 में विश्व बैंक द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार स्वच्छता की कमी तथा कुपोषण के कारण होने वाले रोगों की वजह से भारत को हर साल तकरीबन 53.8 अरब डॉलर का नुकसान होता है।
कुपोषण की स्थिति
यूनिसेफ और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार कुपोषण के तीन प्रमुख लक्षण होते हैं-
नाटापन (Stunting) - यदि किसी बच्चे का कद उसकी आयु के अनुपात में कम रह जाता है तो उसे नाटापन कहते हैं।
निर्बलता (Wasting) - यदि किसी बच्चे का वज़न उसके कद के अनुपात में कम होता है तो उसे निर्बलता कहा जाता है।
कम वजन (Underweight) - आयु के अनुपात में कम वजन वाले बच्चों को ‘अंडरवेट’ कहा जाता है।
- पोषण और देखभाल की कमी तथा बीमारियों के कारण विकासशील देशों में अक्सर बच्चों में यह समस्या पाई जाती है।
भारत में कुपोषण से नुकसान
- एक युवा कार्यशील जनसंख्या वाले देश में कुपोषण जैसी समस्या आर्थिक महाशक्ति बनने के प्रयासों में बाधक है।
- वर्ष 2015 की ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत भूख से प्रभावित 20 सबसे बड़े देशों में एक था। दक्षिण एशियाई देशों में तो यह केवल अफगानिस्तान और पाकिस्तान से ही पीछे था।
- कुपोषण के कारण जी.डी.पी. के 6.4% हानि की वजह से भारत, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों से बहुत पीछे है, जहाँ जी.डी.पी. का क्रमशः 2.3 प्रतिशत और 1.5 प्रतिशत ही कुपोषण की भेंट चढ़ता है।
भारत में कुपोषण के कारण
- पोषण की कमी और बीमारियाँ कुपोषण के सबसे प्रमुख कारण हैं। अशिक्षा और गरीबी के चलते भारतीयों के भोजन में आवश्यक पोषक तत्त्वों की कमी हो जाती है जिसके कारण कई प्रकार के रोग जैसे एनीमिया, घेंघा व बच्चों की हड्डियाँ कमज़ोर होना आदि हो जाते हैं। पारिवारिक खाद्य असुरक्षा तथा जागरूकता की कमी।
- स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक भारत में लगभग 1700 मरीजों पर एक डॉक्टर उपलब्ध हो पाता है, जबकि वैश्विक स्तर पर 1000 मरीजों पर 1.5 डॉक्टर होते हैं।
- कुपोषण का बड़ा कारण लैंगिक असमानता भी है। भारतीय महिला के निम्न सामाजिक स्तर के कारण उसके भोजन की मात्र और गुणवत्ता में पुरुष के भोजन की अपेक्षा कहीं अधिक अंतर होता है।
- लड़कियों का कम उम्र में विवाह होना और जल्दी माँ बनना।
- स्वच्छ पेयजल की अनुपलब्धता तथा गंदगी भी कुपोषण का एक बहुत बड़ा कारण है।
सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास
- यूनिसेफ द्वारा जारी ‘रैपिड सर्वे ऑन चिल्ड्रन’ (RSOC) के आँकड़ों के अनुसार भारत में विगत आठ वर्षों में कुपोषण के मोर्चे पर अच्छा-खासा सुधार हुआ है।
- इसकी बड़ी वजह यह भी है कि सरकार ‘एकीकृत बाल विकास सेवाओं’ (ISDS) जैसी पोषाहार योजनाओं पर खासा जोर दे रही है। ‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’ और मनरेगा जैसी योजनाएँ भी स्वास्थ्य एवं रोज़गार की बेहतर सुविधा मुहैया करा रही हैं।
बचाव के तरीके
- बच्चों को पोषक आहारः छह महीने तक केवल माँ का दूध उसके बाद से शिशुओं को पूरक आहार (दाल का पानी, डिब्बाबंद प्रोटीन आदि) दिया जाए। किशोरियों को आयरन की गोलियाँ देना आवश्यक है ताकि वे रक्ताल्पता (Anaemia) की शिकार न हो जाएँ।
- स्वच्छता का ध्यानः यदि झुग्गियों में और बच्चों के आस-पास सफाई का पूरा ध्यान रखा जाए तो संक्रमण से अधिकाधिक बचा जा सकता है।
कुपोषण निवारण की राह
- खाद्य सब्सिडी का परिवर्तित स्वरूप भी बेहतर पोषाहार प्रदान कर सकता है। इसमें एक कदम और आगे बढ़ते हुए सरकार को प्रत्येक बच्चे को आवश्यक पोषक तत्त्व और विटामिन उपलब्ध कराने होंगे।
- जलवायु परिवर्तन से नष्ट होने वाली फसलों हेतु कृषि जीवन बीमा योजना, मृदा परीक्षण, गुणवत्तापूर्ण बीज व कम ब्याज पर किसानों के लिये ऋण तथा सिंचाई से संबंधित योजनाएँ चलाई जा रही हैं; जिससे कि खाद्यान्न की देश में पर्याप्तता सुनिश्चित की जा सके।
- स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने हेतु, नए स्वास्थ्य केद्रों का गठन तथा जेनेरिक दवाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है। स्वास्थ्य केंद्रों पर बच्चों के पोषण के लिये जरूरी दवाओं और विटामिनों की किफायती उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।
- महिलाओं में कुपोषण के प्रति जागरूकता लाने के लिये सरकार को सामुदायिक मॉडल पर काम करना होगा। सरकार को प्रत्येक आँगनवाड़ी केंद्र पर एक प्रशिक्षिका भेजकर ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षण देना होगा। इस संदर्भ में ‘आशा’ की भूमिका सराहनीय हो सकती है।
- यदि स्कूलों में पोषण के बारे में जागरूकता प्रदान की जाए तो कुपोषण के आंकड़ों को बहुत कम किया जा सकता है। इस संदर्भ में मध्याह्न भोजन (मिड डे मील) का नाम लिया जा सकता है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में सुधार की ज़रूरत है।
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