Tuesday, April 30, 2019

गैर सरकारी संगठनों की भूमिका

Ashok Pradhan     April 30, 2019     No comments

चर्चा में क्यों?

  • विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए), 2010 के प्रावधान नियमों के उल्लंघन के लिये वर्ष 2016 में, 20,000 गैर सरकारी संगठनों को विदेशी धन प्राप्त करने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
  • उन गैर सरकारी संगठनों के विरुद्ध यह कार्रवाई हुई है जो विदेशी धन का उपयोग धार्मिक मतांतरण जैसी अनधिकृत गतिविधियों में कर रहे थे।
  • नए नियमों के अनुसार सरकार द्वारा पूर्ण या आंशिक वित्तपोषित गैर सरकारी संगठनों के अधिकारियों को लोकपाल अधिनियम के अंतर्गत लोक सेवक माना गया है और उन्हें अपनी परिसंपत्तियों व देनदारियों का ब्यौरा दाखिल करना है और इस प्रकार अनुदान के दुरुपयोग या भ्रष्टाचार के आरोप में उन पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।
  • एनजीओ के कामकाज के तरीकों तथा इन्हें मिलने वाली आर्थिक सहायता को लेकर अलग-अलग राय और तर्क सामने आते हैं। सवाल उठते हैं कि क्या NGO को स्वतंत्र तरीके से काम करने दिया जाना चाहिये, उनकी विदेशी फंडिंग को रोक दिया जाना चाहिये अथवा उन पर और अंकुश लगाना चाहिये?

गैर सरकारी संगठन

  • एनजीओ का अर्थ होता है- गैर सरकारी संगठन। एनजीओ एक निजी संगठन होता है जो लोगों का दुख-दर्द दूर करने, निर्धनों के हितों का संवर्द्धन करने, पर्यावरण की रक्षा करने, बुनियादी सामाजिक सेवाएँ प्रदान करने अथवा सामुदायिक विकास के लिये गतिविधियाँ चलाता है।
  • वे गैर लाभकारी होते हैं, अर्थात् वे लाभ का वितरण अपने मालिकों और निदेशकों के बीच नहीं करते बल्कि प्राप्त लाभ को संगठन में ही लगाना होता है। वे किसी सार्वजनिक उद्देश्य को लक्षित होते हैं।
  • गैर सरकारी संस्थाओं को विदेशी धन प्राप्त करने के लिये एफसीआरए, 2010 के अंतर्गत पंजीकृत होना पड़ता है या पूर्व अनुमति लेनी होती है।
  • भारत में गैर सरकारी संगठनों की गतिविधियों पर नियंत्रण के लिये कोई एक विशेष कानून अथवा कोई शीर्ष संगठन नहीं है।

गैर सरकारी संगठनों की भूमिका

  • गैर सरकारी संगठनों की उपस्थिति नागरिकों की आवाज को अभिव्यक्ति देकर सहभागी लोकतंत्र को सक्षम बनाती है।
  • ये निम्नलिखित माध्यमों से जनता और सरकार के बीच प्रभावी गैर-राजनीतिक कड़ी के रूप में कार्य करते हैं:
  • परामर्श और रणनीतिक सहयोग, जहाँ सरकार द्वारा गठित कमिटियों, टास्क फोर्स और सलाहकार पैनल में गैर सरकारी संगठनों को शामिल कर उनकी विशेषज्ञता का उपयोग किया जाता है।
  • जागरूकता फैलाने, सामाजिक एकजुटता, सेवा वितरण, प्रशिक्षण, अध्ययन व अनुसंधान एवं सार्वजनिक अपेक्षा को स्वर देने में ये सहयोग करते हैं। सरकार के प्रदर्शन पर संवाद व निगरानी द्वारा वे राजनीतिक जवाबदेही सुनिश्चित कराते हैं।
  • भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार या मनरेगा और सबसे महत्त्वपूर्ण सूचना का अधिकार जैसे कई प्रमुख विधेयक गैर सरकारी संगठनों के हस्तक्षेप से ही पारित हुए।

संदेह के कारण

  • इंटेलिजेंस ब्यूरो की एक रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि गैर सरकारी संगठन ऐसी गतिविधियों में शामिल हैं जो राष्ट्रीय हितों के लिये नुकसानदेह हैं, सार्वजनिक हितों को प्रभावित कर सकते हैं या देश की सुरक्षा, वैज्ञानिक, सामरिक या आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
  • रिपोर्ट में उन्हें सरकार के विकास लक्ष्य के मार्ग की प्रमुख बाधा बताया गया है और आरोप लगाया गया है कि वे जीडीपी विकास पर प्रतिवर्ष 2-3 प्रतिशत का नकारात्मक प्रभाव डाल रहे हैं।
  • आईबी के रिपोर्ट के अनुसार विदेशी सहायता प्राप्त बहुत सारे एनजीओ देश में अलगाववाद और माओवाद को हवा दे रहे हैं। बहुत सारा पैसा धर्मांतरण, विशेषकर आदिवासियों को ईसाई बनाने के काम में जा रहा है। उन पर यह आरोप भी लगाया जाता है कि विदेशी शक्तियाँ उनका उपयोग एक प्रॉक्सी के रूप में भारत के विकास पथ को अस्थिर करने के लिये करती हैं, जैसे- परमाणु ऊर्जा संयंत्रें और खनन कार्य के खिलाफ गैर सरकारी संगठनों का विरोध प्रदर्शन।

आलोचना

  • गैर सरकारी संगठनों को प्राप्त विदेशी धन में से मात्र 13प्रतिशत का उपयोग धार्मिक गतिविधियों जैसी संभावित संदिग्ध गतिविधियों पर हुआ।
  • विदेशी निधियों का प्रमुखउपयोग ग्रामीण विकास, गरीबों को शिक्षा, स्वास्थ्य आदि क्षेत्रोंमें हुआ।
  • एफआईआई और एफडीआई जैसे विदेशी धन आगमन की तुलना में गैर सरकारी संगठनों को प्राप्त होने वाला विदेशी धन अत्यल्प है।

आगे की दिशा

  • गैर सरकारी संगठन समुदायों को सबल बनाते हैं, इसलिये उनके दमन की नहीं बल्कि उन्हें समर्थन देने की आवश्यकता है।
  • अगर किसी के पास एक असहमत दृष्टिकोण है तो इसका आशय यह नहीं है कि वह देश का शत्रु है।
  • सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं को भागीदार के रूप में कार्य करना चाहिये और साझा लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये पूरक की भूमिका निभानी चाहिये जो परस्पर विश्वास व सम्मान के मूल सिद्धांत पर आधारित हो और साझा उत्तरदायित्व व अधिकार रखता हो।
एनजीओ के प्रति वर्तमान दमन का दृष्टिकोण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी प्रभाव डालेगा।

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