Monday, April 29, 2019

दूरसंचार क्षेत्र में चुनौतियाँ

Ashok Pradhan     April 29, 2019     No comments

संदर्भ
सेल्युलर ऑपरेटर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (COAI) की मांग पर दूरसंचार विभाग ने वित्त मंत्रालय से कहा है कि वह टेलीकम्युनिकेशन को जीएसटी से संबंधित राहत प्रदान करे और नेटवर्क उपकरणों के आयात शुल्क को कम करे।
भारत में टेलीकॉम इंडस्ट्री
  • भारत वर्तमान में 1.17 बिलियन ग्राहक आधार (Subscriber Base) के साथ दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार बाज़ार है और पिछले डेढ़ दशक में मज़बूत वृद्धि दर्ज की है।
  • बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) के सहयोग से GSM एसोसिएशन द्वारा तैयार रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय मोबाइल अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ रही है और यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महत्त्वपूर्ण योगदान देगी।
  • भारत सरकार की उदार और सुधारवादी नीतियों के कारण भारतीय दूरसंचार क्षेत्र तेज़ी से वृद्धि कर रहा है तथा उपभोक्ताओं की मांग पर खरा उतर रहा है।
  • सरकार ने दूरसंचार उपकरणों के लिये बाज़ार तक आसान पहुँच बनाने के लिये एक उचित और सक्रिय नियामक ढाँचा तैयार किया है, जिससे सस्ती कीमतों पर उपभोक्ताओं को दूरसंचार सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित हो सकी है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के मानदंडों को लागू करने के कारण यह क्षेत्र रोज़गार के शीर्ष पाँच क्षेत्रों में से एक बन गया है।
दूरसंचार क्षेत्र की चुनौतियाँ
1. फिक्स्ड लाइन की पहुँच का अभाव
  • भारत के नेटवर्क में फिक्स्ड लाइन (टेलीफोन लाइन जो एक राष्ट्रव्यापी टेलीफोन नेटवर्क के हिस्से के रूप में एक धातु के तार या ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से संचारित होती है) की पहुँच (Penetration) बहुत कम है, जबकि अधिकांश विकसित देशों में फिक्स्ड लाइनों की पहुँच बहुत अधिक है।
  • उच्च फिक्स्ड लाइन पहुँच वाले देश ब्रॉडबैंड को निर्धारित लाइन पर संचालित करने में सक्षम हैं और इस प्रकार डाउनलोड करने की गति के मामले में भारत से बहुत आगे हैं। 100 Mbps की गति को छूने वाले अन्य देशों की तुलना में भारत में डाउनलोडिंग की गति 512 kbps है।
  • निजी सेवा प्रदाताओं ने जब इस सेक्टर में प्रवेश किया तो उन्होंने सेलुलर तकनीक का उपयोग करके एक नेटवर्क का विस्तार करना शुरू किया जिसमें डाउनलोड करने के लिये स्पीड की एक सीमा होती है।
  • हालाँकि भारत में लगभग 1.2 बिलियन कनेक्शन हैं और फिक्स्ड लाइन लगभग 18 मिलियन हैं। फिक्स्ड लाइन पर ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी भी खराब स्थिति में है।
  • भारत में केवल लगभग 25% टावर्स फाइबर नेटवर्क से जुड़े हैं, जबकि विकसित राष्ट्रों में यह आँकड़ा 70% से अधिक है।
  • 5G नेटवर्क को बहुत उच्च गति वाले सिस्टम से जुड़े रहने के लिये टॉवर की आवश्यकता होती है। यह उच्च गति वर्तमान रेडियो प्रणाली पर संभव नहीं है।
2. हाई राइट-ऑफ़-कॉस्ट
  • कभी-कभी, राज्य सरकारें फाइबर आदि बिछाने की अनुमति के लिये कंपनियों से बड़ी राशि शुल्क के रूप में लेती हैं (राइट-ऑफ़-वे एक प्रकार की सुविधा है जो किसी व्यक्ति को दूसरे की भूमि से गुज़रने की अनुमति देता है)।
3. राइट-ऑफ़-वे परमीशन
  • राइट-ऑफ़-वे परमीशन प्राप्त करने में लंबा समय लगता है और इस प्रकार भारत अभी तक 4 जी नेटवर्क की पूरी क्षमता का दोहन करने में सक्षम नहीं है।
4. शुल्कों में भारी उतार-चढ़ाव
  • दूरसंचार उपकरण जो केंद्रीय सर्वर से उपभोक्ता तक पूरी प्रणाली को जोड़ने में योगदान देता है, पर करों में भारी उतार-चढ़ाव।
5. करों की वर्तमान प्रणाली
  • प्रमुख दूरसंचार ऑपरेटर्स द्वारा घाटे और वित्तीय तनाव की बात की जाती रही है। हाल ही में एक ऑपरेटर को दिवालिया घोषित किया गया है। इससे पता चलता है कि वर्तमान टैरिफ प्रणाली दूरसंचार के लिये वित्तीय रूप से व्यवहार्य नहीं है।
6. आईटी तथा कनेक्टिविटी इंफ्रास्ट्रक्चर
  • दूरसंचार प्रदाताओं को अपने आईटी और कनेक्टिविटी के बुनियादी ढाँचे को अपग्रेड करने और उच्च गुणवत्ता, विश्वसनीय और सस्ती डेटा प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है।
  • टेलीकॉम के लिये नेटवर्क की सुरक्षा एक बड़ी प्राथमिकता बन गई है और इसके समक्ष नए खतरों के उभरने के साथ ही चुनौतियों का सामना भी करना पड़ रहा है जो नई तकनीकों द्वारा संचालित होती हैं।
सरकार द्वारा पहल
  • 2017 में दूरसंचार विभाग (DoT) ने एक अधिसूचना जारी की थी जिसमें राज्य सरकारों को त्वरित राइट-ऑफ़-वे अनुमति देने और सेवा प्रदाताओं को कम राशि चार्ज करने की सलाह दी गई थी। लेकिन कुछ ही राज्यों द्वारा इस पर अमल किया गया है।
  • सरकार ने कुछ करों को वापस लेकर दूरसंचार क्षेत्र को लाभ प्रदान किया है।
  • 2018 में आई राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति में 2022 तक देश के प्रत्येक नागरिक के लिये 50 mbps डाउनलोड की स्पीड की परिकल्पना की गई है। इसे हासिल करने के लिये सरकार बुनियादी ढाँचे के निर्माण हेतु राज्य सरकारों को शामिल कर रही है।
  • सूचना प्रौद्योगिकी विभाग राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस योजना के तहत पूरे भारत में 1 मिलियन इंटरनेट-सक्षम कॉमन सर्विस सेंटर स्थापित करेगा।
  • भारत सरकार द्वारा डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत सभी प्रमुख क्षेत्रों जैसे- हेल्थ केयर, रिटेल आदि को इंटरनेट के माध्यम से जोड़ा जा रहा है।
आगे की राह
  • सरकार को कॉपर (जो कि महँगा होता है) के बजाय ऑप्टिकल फाइबर के माध्यम से नेटवर्क क्षेत्र का विस्तार करना चाहिये ताकि अंतिम व्यक्ति तक कनेक्टिविटी सुनिश्चित की जा सके।
  • सरकार को आसान राइट-टू-वे परमिशन और राइट-ऑफ-वे के लिये एक ग्राउंड तैयार करने की आवश्यकता है।
  • टेलीकॉम ऑपरेटर्स को भविष्य की तकनीकों की ओर बढ़ना चाहिये, नई सेवाओं को जोड़ना चाहिये। इसमें आने वाले खर्च का भुगतान उपभोक्ता द्वारा होगा और टेलीकॉम कंपनियाँ बेहतर प्रदर्शन करेंगी।
  • टेलीकॉम ऑपरेटर्स को देश में मौजूद टैलेंट पूल का लाभ उठाना चाहिये जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी आदि में कई नए इनोवेशन ला रहा है।
  • टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं ने जिस तरह से टावरों की लागत को साझा किया है, उसी तरह न्यू इंफ्रास्ट्रक्चर भी समय की ज़रूरत है।
  • प्रत्येक प्रतिष्ठान को केबल की आवश्यकता होती है इसके लिये हर दिन सड़कों की खुदाई नहीं की जा सकती। प्रत्येक शहर में नलिकाओं (ducts) का निर्माण किया जाना चाहिये ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसके माध्यम से केवल एक केबल खींचने का प्रावधान हो।
  • सरकार को R&D पर अधिक खर्च करना चाहिये और एक ऐसा वातावरण बनाना चाहिये जो भारत को विनिर्माण और यहाँ तक ​​कि मोबाइल हैंडसेट, सीसीटीवी कैमरा, टच स्क्रीन मॉनीटर आदि जैसे हार्डवेयर घटकों का निर्यात करने में सक्षम बनाए।
निष्कर्ष
टेलीकॉम सेक्टर का भविष्य काफी उज्ज्वल है क्योंकि इसकी भूमिका लगभग हर क्षेत्र में दिखाई देगी, जिसके अंतर्गत सीसीटीवी कैमरा की नेटवर्किंग से लेकर रक्षा और लोगों की सुरक्षा तक की शिक्षा दूरस्थ स्थानों पर दी जा सकेगी। तद्नुसार, एक दीर्घकालिक विज़न के साथ योजना बनाई जानी चाहिये। फिलहाल, सरकार को दूरसंचार ऑपरेटरों के लिये एक आसान तथा सुखद वातावरण प्रदान करने की आवश्यकता है।

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