- मंदिर निर्माण की प्रक्रिया का आरंभ तो मौर्य काल से ही शुरू हो गया था किंतु आगे चलकर उसमें सुधार हुआ और गुप्त काल को मंदिरों की विशेषताओं से लैस देखा जाता है।
- संरचनात्मक मंदिरों के अलावा एक अन्य प्रकार के मंदिर थे जो चट्टानों को काटकर बनाए गए थे। इनमें प्रमुख है महाबलिपुरम का रथ-मंडप जो 5वीं शताब्दी का है।
- गुप्तकालीन मंदिर आकार में बेहद छोटे हैं- एक वर्गाकार चबूतरा (ईंट का) है जिस पर चढ़ने के लिये सीढ़ी है तथा बीच में चौकोर कोठरी है जो गर्भगृह का काम करती है।
- कोठरी की छत भी सपाट है व अलग से कोई प्रदक्षिणा पथ भी नहीं है।
- इस प्रारंभिक दौर के निम्नलिखित मंदिर हैं जो कि भारत के प्राचीनतम संरचनात्मक मंदिर हैं: तिगवा का विष्णु मंदिर (जबलपुर, म.प्र.), भूमरा का शिव मंदिर (सतना, म.प्र.), नचना कुठार का पार्वती मंदिर (पन्ना, म.प्र.), देवगढ़ का दशावतार मंदिर (ललितपुर, यू.पी.), भीतरगाँव का मंदिर (कानपुर, यू.पी.) आदि।
- मंदिर स्थापत्य संबंधी अन्य नाम, जैसे- पंचायतन, भूमि, विमान भद्ररथ, कर्णरथ और प्रतिरथ आदि भी प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं।
- छठी शताब्दी ईस्वी तक उत्तर और दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला शैली लगभग एकसमान थी, लेकिन छठी शताब्दी ई. के बाद प्रत्येक क्षेत्र का भिन्न-भिन्न दिशाओं में विकास हुआ।
- आगे ब्राह्मण हिन्दू धर्म के मंदिरों के निर्माण में तीन प्रकार की शैलियों नागर, द्रविड़ और बेसर शैली का प्रयोग किया गया।
मंदिर स्थापत्य
नागर द्रविड़ बेसर पाल उपशैली पल्लव उपशैली राष्ट्रकूट ओडिशा उपशैली चोल उपशैली चालुक्य खजुराहो उपशैली पाण्डय उपशैली काकतीय सोलंकी उपशैली विजयनगर उपशैली होयसल नायक उपशैली
क्रम
|
मंदिर
|
स्थल
|
कालखंड
|
1.
|
गोलाकार ईंट व इमारती लकड़ी का मंदिर
|
बैराट ज़िला राजस्थान
|
तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व
|
2.
|
साँची का मंदिर- 40
|
साँची (मध्य प्रदेश)
|
तृतीय शताब्दी ईसा पूर्व
|
3.
|
साँची का मंदिर-18
|
साँची (मध्य प्रदेश)
|
द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व
|
4.
|
प्राचीनतम संरचनात्मक मंदिर
|
ऐहोल (कर्नाटक)
|
चौथी शताब्दी ईसा पूर्व
|
5.
|
साँची का मंदिर-17
|
साँची (मध्य प्रदेश)
|
चौथी सदी
|
6.
|
लड़खन मंदिर
|
ऐहोल (कर्नाटक)
|
पाँचवीं सदी ईस्वी सन्
|
7.
|
दुर्गा मंदिर
|
ऐहोल (कर्नाटक)
|
550 ईस्वी सन्
|
नागर शैली
- ‘नागर’ शब्द नगर से बना है। सर्वप्रथम नगर में निर्माण होने के कारण इसे नागर शैली कहा जाता है।
- यह संरचनात्मक मंदिर स्थापत्य की एक शैली है जो हिमालय से लेकर विंध्य पर्वत तक के क्षेत्रों में प्रचलित थी।
- इसे 8वीं से 13वीं शताब्दी के बीच उत्तर भारत में मौजूद शासक वंशों ने पर्याप्त संरक्षण दिया।
- नागर शैली की पहचान-विशेषताओं में समतल छत से उठती हुई शिखर की प्रधानता पाई जाती है। इसे अनुप्रस्थिका एवं उत्थापन समन्वय भी कहा जाता है।
- नागर शैली के मंदिर आधार से शिखर तक चतुष्कोणीय होते हैं।
- ये मंदिर उँचाई में आठ भागों में बाँटे गए हैं, जिनके नाम इस प्रकार हैं- मूल (आधार), गर्भगृह मसरक (नींव और दीवारों के बीच का भाग), जंघा (दीवार), कपोत (कार्निस), शिखर, गल (गर्दन), वर्तुलाकार आमलक और कुंभ (शूल सहित कलश)।
- इस शैली में बने मंदिरों को ओडिशा में ‘कलिंग’, गुजरात में ‘लाट’ और हिमालयी क्षेत्र में ‘पर्वतीय’ कहा गया।
द्रविड़ शैली
- कृष्णा नदी से लेकर कन्याकुमारी तक द्रविड़ शैली के मंदिर पाए जाते हैं।
- द्रविड़ शैली की शुरुआत 8वीं शताब्दी में हुई और सुदूर दक्षिण भारत में इसकी दीर्घजीविता 18वीं शताब्दी तक बनी रही।
- द्रविड़ शैली की पहचान विशेषताओं में- प्राकार (चहारदीवारी), गोपुरम (प्रवेश द्वार), वर्गाकार या अष्टकोणीय गर्भगृह (रथ), पिरामिडनुमा शिखर, मंडप (नंदी मंडप) विशाल संकेन्द्रित प्रांगण तथा अष्टकोण मंदिर संरचना शामिल हैं।
- द्रविड़ शैली के मंदिर बहुमंजिला होते हैं।
- पल्लवों ने द्रविड़ शैली को जन्म दिया, चोल काल में इसने उँचाइयाँ हासिल की तथा विजयनगर काल के बाद से यह ह्रासमान हुई।
- चोल काल में द्रविड़ शैली की वास्तुकला में मूर्तिकला और चित्रकला का संगम हो गया।
- यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल तंजौर का वृहदेश्वर मंदिर (चोल शासक राजराज- द्वारा निर्मित) 1000 वर्षों से द्रविड़ शैली का जीता-जागता उदाहरण है।
- द्रविड़ शैली के अंतर्गत ही आगे नायक शैली का विकास हुआ, जिसके उदाहरण हैं- मीनाक्षी मंदिर (मदुरै), रंगनाथ मंदिर (श्रीरंगम, तमिलनाडु), रामेश्वरम् मंदिर आदि।
बेसर शैली
- नागर और द्रविड़ शैलियों के मिले-जुले रूप को बेसर शैली कहते हैं।
- इस शैली के मंदिर विंध्याचल पर्वत से लेकर कृष्णा नदी तक पाए जाते हैं।
- बेसर शैली को चालुक्य शैली भी कहते हैं।
- बेसर शैली के मंदिरों का आकार आधार से शिखर तक गोलाकार (वृत्ताकार) या अर्द्ध गोलाकार होता है।
- बेसर शैली का उदाहरण है- वृंदावन का वैष्णव मंदिर जिसमें गोपुरम बनाया गया है।
- गुप्त काल के बाद देश में स्थापत्य को लेकर क्षेत्रीय शैलियों के विकास में एक नया मोड़ आता है।
- इस काल में ओडिशा, गुजरात, राजस्थान एवं बुंदेलखंड का स्थापत्य ज़्यादा महत्त्वपूर्ण है।
- इन स्थानों में 8वीं से 13वीं सदी तक महत्त्वपूर्ण मंदिरों का निर्माण हुआ।
- इसी दौर में दक्षिण भारत में चालुक्य, पल्लव, राष्ट्रकूटकालीन और चोलयुगीन स्थापत्य अपने वैशिष्ट्य के साथ सामने आया।
Best
ReplyDelete