चर्चा में क्यों?
- भारत, धनी राष्ट्रों द्वारा ‘श्रम और पर्यावरण’ जैसे नए मुद्दों को डब्ल्यूटीओ के समक्ष उठाने के प्रयासों का विरोध कर व्यापक पुनर्विचार की मांग कर रहा है।
- इन नए मुद्दों का संबंध श्रम कार्य, पर्यावरणीय मानकों, वैश्विक मूल्य शृंखला (GVCs) और आपूर्ति शृंखला को प्रोत्साहन, ई-वाणिज्य, प्रतिस्पर्द्धा एवं निवेश प्रावधानों (Competition and investment provisions), स्वच्छ एवं हरित ऊर्जा का उपयोग करके पर्यावरणीय और टिकाऊ वस्तुओं का उत्पादन, सरकारी खरीद में पारदर्शिता, राज्य के स्वामित्व वाले उद्यम और नामित एकाधिकारों से है।
- भारत दोहा चक्र से संबंधित शेष बचे मुद्दों को हल करने के पश्चात् ही इन गैर-व्यापारिक (non-trade) मुद्दों पर विश्व व्यापार संगठन में विचार-विमर्श करना चाहता है। भारत की इस मांग का कुछ अन्य विकासशील देश भी समर्थन कर रहे हैं।
- भारत ने यह रुख इसलिये अपनाया है क्योंकि इन गैर-व्यापारिक मुद्दों की घोषणा के कारण वर्ष 2015 में नैरोबी में हुए विश्व व्यापार संगठन के मंत्रिस्तरीय सम्मेलन की समाप्ति हो गई थी तथा दोहा चक्र की वार्त्ता के मुद्दों की पुनः पुष्टि नहीं की गई जबकि दोहा वार्त्ता का उद्देश्य ‘वैश्विक व्यापार (global trade) के लिये मार्ग खोलना’ था।
विरोध के कारण
- भारत यह विश्वास करता है कि दोहा वार्त्ता में नए मुद्दों को उठाए जाने से विकासात्मक एजेंडे पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। भारत यह महसूस करता है कि पर्यावरण और श्रम जैसे मुद्दों को विश्व व्यापार संगठन के क्षेत्र से बाहर रखा जाना चाहिये अथवा इनका समाधान वैश्विक निकायों, जैसे–यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के माध्यम से किया जाना चाहिये।
- भारत जैसे विकासशील देश अधिकांश क्षेत्रों, जैसे–श्रम (बाल श्रम, बंधुआ श्रम और सस्ते कामगार आदि) और पर्यावरण (प्रदूषण का उच्च स्तर और कचरा प्रबंधन के खराब मानक) में विकास की चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
- चूँकि धनी राष्ट्रों के पास इन मुद्दों से संबंधित बेहतर मानक होते हैं अतः वे गैर-शुल्क अवरोधों के रूप में कार्य करके विकासशील राष्ट्रों को चुनौती दे सकते हैं । इस प्रकार विकासशील राष्ट्रों से विकसित राष्ट्रों को होने वाले निर्यात प्रभावित होते हैं।
- विकसित राष्ट्रों में स्थित अधिकांश बहुराष्ट्रीय फर्म विश्व में अपने उत्पादन नेटवर्क के लिये अनुबंध निर्माताओं, आपूर्तिकर्ताओं और रसद प्रदाताओं (Suppliers and logistics providers) के माध्यम से वैश्विक मूल्य शृंखला का उपयोग करती हैं।
- भारत की निवेश के प्रति चिंता विश्व व्यापार संगठन के एजेंडे का एक भाग बन गया है। भारत की यह चिंता ‘निवेश’ की परिभाषा और निवेशक विवाद निपटान तंत्र (investor dispute settlement mechanism) से संबंधित है।
- इसके अतिरिक्त नए मुद्दों पर विचार करने से पूर्व वर्ष 2013 की ‘बाली मंत्रिस्तरीय घोषणा’ में विकासशील देशों में रह रहे गरीब किसानों के हितों के संरक्षण हेतु ‘विशेष सुरक्षा तंत्र’ और खाद्य सुरक्षा के लिये ‘सार्वजानिक भंडारण’ का स्थायी समाधान जैसे शेष बचे मुद्दों का समाधान करना आवश्यक है।
विशेष सुरक्षा तंत्र (special safeguard mechanism)
यह व्यापार से संबधित एक उपाय है जिसके तहत विकासशील राष्ट्र आयातों में हुई एकाएक वृद्धि और मूल्यों में गिरावट के कारण इनका विरोध करने के लिये अस्थायी तौर पर आयातित कृषि उत्पादों पर लगने वाले शुल्क की दरों में बढ़ोतरी कर सकते हैं। इस प्रकार यह गरीब किसानों के हितों की रक्षा करता है।
आगे की राह
भारत चाहता है कि नए मुद्दों में विकास के दृष्टिकोण को भी शामिल किया जाए। इसमें मानवों (जैसे कुशल पेशेवरों) के सहज आवागमन पर विचार-विमर्श और ऐसे कार्यों को जो धनी राष्ट्रों के हितों के प्रतिकूल हों और जिसमें स्थानीय लोगों के रोजगारों में होने वाले नुकसानों को भी शामिल किया जाता है।
भारत चाहता है कि अग्रलिखित दो मानदंडों को प्राप्त करने के लिये देशों पर ‘गैर-मुद्दों (non-issue)’ को विश्व व्यापार संगठन के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये दबाव डाला जाना चाहिये-
- व्यापार के संदर्भ में मुद्दों की प्रासंगिकता को स्थापित करना।
- विश्व व्यापार संगठन के सभी 164 सदस्यों के मध्य कार्यसूची (agenda) के क्रियान्वयन हेतु आम सहमति को सुनिश्चित करना।
- परंतु भारत नए मुद्दों को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है। यदि भारत अपना राष्ट्रीय हित चाहता है तो इसे नए मुद्दों के संबंध में वार्त्ता करने पर अपनी सहमति प्रकट करनी चाहिये।
भारत, नए मुद्दों को विश्व व्यापार संगठन के समक्ष रखे जाने के प्रयासों को समाप्त करने में तभी सफल हो सकता है, यदि यह विकासशील एवं गरीब राज्यों का एक मजबूत गठबंधन तैयार कर ले तथा प्रभावी रूप से उनका प्रतिनिधित्व करने के लिये विश्व व्यापार संगठन के विवाद निपटान निकाय (WTO’s dispute settlement machanism), में व्यापार कानून विशेषज्ञों के माध्यम से उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण दे।
इसके लिये, भारत को अपनी कूटनीतिक क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है। नैरोबी की बैठक में यह देखा गया था कि विचारों के मामले में विकसित राष्ट्र तो एकजुट थे परंतु विकासशील राष्ट्रों में मतभेद था।
सभी महाद्वीपों के विकासशील राष्ट्रों को एकमत करने के लिये संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता होगी। अमेरिका कई वर्षों से इसी रणनीति पर कार्य कर रहा है और यही कारण है कि यह सभी दृष्टिकोणों से विश्व की सर्वाधिक सकारात्मक व जटिल शक्ति है।
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