Tuesday, April 30, 2019

लैंगिक हिंसा और पितृसत्तात्मक समाज

Ashok Pradhan     April 30, 2019     No comments

चर्चा में क्यों?

अभी हाल ही में 31 दिसंबर की रात को जब संपूर्ण भारत नववर्ष के शुभागमन पर जश्न में डूबा था, तब आईटी सिटी बेंगलुरु में घटी छेड़छाड़ की शर्मनाक घटना सुर्खियों में आई।
लैंगिक हिंसा के दो वर्ग-शोषक एवं शोषित
  • लैंगिक हिंसा की घटना के बाद भी समाज में प्रतिक्रिया देने वालों के दो वर्ग हो जाते हैं। पहला, शोषित के पक्ष में और दूसरा, शोषक के पक्ष में।
  • कुछ लोग तो हमेशा की तरह ऐसी घटनाओं के लिये पूरी तरह लड़कियों के कपड़े, उनके अकेले घूमने, देर रात तक पार्टी करने आदि को दोष देते हैं, जबकि इस तरह की घटनाएँ सरेआम भी होती हैं।
  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार सबसे ज्यादा लैंगिक हिंसा घरों के भीतर होती हैं। हिंसा करने वालों (शोषक) में अधिकतर महिला के रिश्तेदार, पति, दोस्त, सहकर्मी, पड़ोसी, नौकर एवं अजनबी होते हैं।
  • घटना के प्रत्यक्षदर्शी यदि मनोरंजन की नजर से इन घटनाओं को नहीं देख रहे तो वे प्रतिरोध की भावना से भी तो शून्य हैं। ये तटस्थ दर्शक ऐसी घटनाओं के लिये बराबर के जिम्मेदार हैं।
  • ऐसी घटनाओं की पीडि़ता केवल वह अकेली महिला नहीं होती, बल्कि वे तमाम लड़कियाँ और महिलाएँ भी होती हैं जो हमेशा अनहोनी के भय में जीती हैं।
  • ऐसी घटनाओं के बाद पीडि़त का परिवार और भाई-बहन भी शोषित व अवसाद का जीवन जीते हैं। कई बार तो पीडि़ता को लेकर कहीं अनजान स्थान पर जाने के लिये भी विवश हो जाते हैं।
हिंसा का स्तर
  • एक स्त्री गर्भावस्था से लेकर मृत्यु तक तमाम यातनाओं, शोषण एवं हिंसा से गुजरती है। इसमें हिंसा का स्तर अवांछित स्पर्श, पीछा करने से लेकर सामूहिक बलात्कार, जननांग छिद्रीकरण व ब्रेस्ट आयरनिंग तक हो सकता है।
  • समाज में प्रचलित धर्म, जाति, संस्कृति और संस्कार की ओट में स्त्री उत्पीड़न की ऐसी घटनाएँ भी होती हैं, जो समाज में सामान्यीकृत रूप से स्वीकृत हैं। जो हमें सोचने पर विवश भी नहीं करतीं! जैसे- पर्दा करना, पर-पुरुष से बातें न करना, अपना सब कुछ छोड़ सदा के लिये पराये घर चली जाना।
हिंसा का स्वरूप
  • वैसे तो हर हिंसा हिंसा ही है, कितु भारत जैसे पितृसत्तात्मक समाज में हिंसा के स्वरूप में थोड़ी भिन्नता है। जैसे- कन्या भ्रूण हत्या, बालिका यौन शोषण, बेटा-बेटी में दोयम व्यवहार, दहेज उत्पीड़न, असुरक्षित गर्भपात, घरेलू हिंसा, तीन तलाक, बहु-विवाह, कार्यस्थल पर यौन शोषण, मानसिक एवं भावनात्मक शोषण, यौन उत्पीड़न और तस्करी, अनैतिक देह व्यापार, ऑनर किलिंग, गैंगरेप, अपहरण, एसिड अटैक, डेटिंग दुरुपयोग, पत्नी से बलात्कार, जबरन वेश्यावृत्ति व पोर्नोग्राफी, ब्लैकमेल आदि।
  • वहीं चीन में संस्कृति के नाम पर पाँव बंध्याकरण (foot binding) होता है तो अफ्रीका सहित कई देशों में महिला जननांग छिद्रीकरण (खतना) एवं ब्रेस्ट आयरनिंग जैसी भयावह प्रथा प्रचलित है।
  • यद्यपि जैविक रूप से स्त्रियों में कोमलता व सरलता की प्रकृति विद्यमान है, फिर भी ज्यादातर महिलाओं के वस्त्र, प्रसाधन, व्यवहार, परंपराएँ इस तरह से उन्हें परिभाषित कर देती हैं कि वे जोखिम के कार्यों में असहज हो जाती हैं।
महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के कारण
  • वैसे तो हिंसा के कई अलग-अलग कारण हैं, कितु हिंसा का एक प्रमुख कारण पितृसत्तात्मक मानसिकता का हावी होना है।
  • हिंसा का एक कारण स्त्री व पुरुष के मध्य अहं का टकराव भी होता है। स्त्री की आय या ज्ञान का स्तर पुरुष से अधिक हो तो भी वहाँ हिंसा का खतरा रहता है।
  • महिलाओं को घर की इज्जत व प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। अतः उन पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगा दिया जाता है।
  • परिवार में भी जब बचपन से ही घर में या आस-पास महिलाओं के साथ हो रहे दोयम भाव को कोई बच्चा देखता है तो वह वही सीखता है।
  • कुछ सामाजिक परंपराएँ, जैसे- दहेज प्रथा, तीन तलाक, बाल विवाह, बहुविवाह आदि भी महिलाओं के शोषण को उत्प्रेरित करती हैं।
  • अपनी इज्जत (साख) के नाम पर भारत समेत कई देशों में ऑनर किलिंग की घटनाएँ होती हैं।
  • टेलीविजन, सिनेमा, हिंसक, मादक पदार्थ (शराब आदि) एवं खुलापन भी लैंगिक हिंसा व संघर्ष को जन्म देता है।
क्या किया जाना चाहिये?
  • सर्वप्रथम महिलाओं में शिक्षा के स्तर को बढ़ावा देना चाहिये क्योंकि केवल विवेक से ही मानसिक व सांस्कृतिक आधिपत्य की जकड़न से बाहर आया जा सकता है। रोज़गार के अनुकूल शिक्षण, प्रशिक्षण प्राप्त कर आर्थिक सशक्तीकरण पर जोर देना चाहिये।
  • लोक सभा एवं विधान सभा में प्रस्तावित 33 प्रतिशत महिला आरक्षण को मूर्त रूप देना चाहिये। परिवार व समाज में एवं कार्यस्थल पर लैंगिक समानता के प्रति जागरूकता व सहभागिता बढ़ानी चाहिये।
  • शराब पर पूर्ण प्रतिबंध के साथ-साथ टेलीविजन, मीडिया व सोशल नेटवर्किंग साइटों पर आपत्तिजनक एवं भड़काऊ सामग्री के प्रसारण से बचना चाहिये। महिला शोषण एवं हिंसा से संबंधित मामलों की फास्ट ट्रायल कोर्ट में सुनवाई करनी चाहिये।

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