संदर्भ
शस्त्र व्यापार की होड़ को रोकने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2013 में शस्त्र व्यापार संधि (Arms Trade Treaty-ATT) को स्वीकार किया और वर्ष 2014 से इसे लागू कर दिया गया। इस संधि का मकसद दुनिया भर में गैर-कानूनी तरीके से हथियारों के व्यापार पर रोक लगाना है।
- अमेरिका समेत दुनिया के 130 देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये हैं। लेकिन छह साल के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शस्त्र व्यापार संधि से अलग होने की घोषणा की है।
- अमेरिका दुनिया में सबसे ज़्यादा हथियारों का व्यापार करता है। ऐसे में उसका इस संधि से अलग होना कई तरह की आशंकाओं को जन्म देगा।
पृष्ठभूमि
- दुनिया भर में हथियारों के गैर-कानूनी व्यापार और तस्करी के खतरों से पूरी मानवता आतंकित रही है।
- दुनिया भर के आतंकी संगठन, राज्य विरोधी तत्त्व और मानवाधिकारों के उल्लंघन करने वाले अराजक तत्त्वों के पास मौजूद हथियारों का जखीरा गैर-कानूनी हथियारों के व्यापार का ही नतीजा है।
- हथियारों के इस गैर-कानूनी व्यापार पर प्रभावी रोक लगाने के लिये वर्ष 2003 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं के एक समूह ने संयुक्त राष्ट्र समूह से इसके लिये नियंत्रित प्रणाली गठित करने की मांग की।
- संयुक्त राष्ट्र ने इस मांग को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2006 में एक प्रस्ताव पारित किया जिसमें एक शस्त्र व्यापार संधि स्थापित करने की बात कही गई।
- जब इस संधि को अपनाने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान हुआ तो 154 सदस्य देशों ने इसके पक्ष में और तीन देश- ईरान, सीरिया और उत्तर कोरिया ने विरोध में मतदान किया था, जबकि भारत समेत 23 देशों ने मतदान प्रक्रिया में हिस्सा ही नहीं लिया।
- मतदान में भाग नहीं लेने वालों में अमेरिका, रूस और चीन भी शामिल थे। हालाँकि बाद में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये लेकिन अमेरिकी सीनेट द्वारा इसकी पुष्टि नहीं की गई थी।
- कई सालों के अथक प्रयास के बाद 2 अप्रैल, 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा तीन-चौथाई से अधिक बहुमत से अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र व्यापार संधि को स्वीकार किया।
- इसके बाद जून 2013 में इस संधि पर सदस्य देशों के हस्ताक्षर करने की प्रक्रिया शुरू हुई और सदस्य देशों के हस्ताक्षर तथा अनुमोदन के बाद 24 दिसंबर, 2014 से यह संधि प्रभावी हो गई।
- अभी तक 130 देश इस संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं।
अमेरिका क्यों इस संधि से अलग होना चाहता है?
- अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि यह संधि अमेरिका के आतंरिक कानून में दखल देती है। इसके अलावा यह संधि दूसरे संशोधन विधेयक में मिले अधिकारों का भी हनन करती है।
- दरअसल, अमेरिका में द्वितीय संशोधन विधेयक के तहत प्रत्येक नागरिक को हथियार रखने का अधिकार मिला हुआ है।
- अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये थे। राष्ट्रीय राइफल एसोसिएशन लंबे समय से इस करार का विरोध कर रहा था।
- अमेरिकी सीनेट से इसे अभी मंज़ूरी नहीं मिली है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिये 2020 में चुनाव होना है। जानकारों का कहना है कि ट्रंप की इच्छा है कि वे दोबारा से राष्ट्रपति चुने जाएँ और इस करार से पीछे हटने की मुख्य वज़ह यही है कि वह किसी भी कीमत पर राष्ट्रीय राइफल एसोसिएशन को नाराज़ नहीं करना चाहते हैं।
- हालाँकि ट्रंप द्वारा यह दावा किया गया है कि हथियारों को रखने की अमेरिकियों के अधिकार पर नियंत्रण सिर्फ अमेरिका का ही हो सकता है, किसी बाहरी देश का नहीं।
- चीन भी इस संधि में शामिल नहीं है लेकिन उसका मानना है कि पारंपरिक हथियारों के कारोबार को नियंत्रित करने की दिशा में इस करार की सकारात्मक भूमिका है।
- चीन के विदेश मंत्रालय का कहना है कि इस करार में शामिल होने को लेकर विचार-विमर्श जारी है।
आर्म्स ट्रेड ट्रीटी और हथियारों को लेकर क्या हैं नियम?
- दरअसल, अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र व्यापार संधि एक बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय संधि है जो पारंपरिक हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को विनियमित करने के लिये प्रतिबद्ध है।
- इस संधि का मकसद संघर्ष वाले क्षेत्रों में हथियारों के प्रवाह पर लगाम लगाना, मानवाधिकारों की रक्षा करना और घातक हथियारों को समुद्री डाकुओं, गिरोहों तथा अपराधियों के हाथों में पहुँचने से रोकना है।
- इस संधि के तहत छोटे हथियारों से लेकर युद्धक टैंक, लड़ाकू विमानों और युद्धपोतों के व्यापार के लिये नियम बनाने का भी प्रावधान है।
- इस संधि के तहत सदस्य देशों पर प्रतिबंध है कि वह ऐसे देशों को हथियार न दें जो नरसंहार, मानवता के प्रति अपराध या आतंकवाद में शामिल होते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र संघ के निरस्तीकरण मामलों के अनुसार, यह संधि सदस्य देशों के हितों के खिलाफ कोई भी आवश्यक प्रतिबंध नहीं लगाएगी जैसे- घरेलू हथियारों के व्यापार या सदस्य देशों में शस्त्र रखने के अधिकारों में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। इसके साथ ही यह संप्रभु देशों को प्राप्त आत्मरक्षा के वैधानिक अधिकारों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करेगी।
- इसके अलावा यह संधि सदस्य देशों में पहले से ही स्थापित राष्ट्रीय शस्त्र विनियमन मानकों को कमज़ोर नहीं बनाएगी।
- अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र व्यापार संधि को पूरी तरह से निष्पक्षता से लागू करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करना होगा साथ ही गैर-सदस्य देशों की समस्याओं पर ध्यान देते हुए उन्हें भी इस संधि का हिस्सा बनाना होगा।
आर्म्स ट्रेड ट्रीटी का उद्देश्य
- संयुक्त राष्ट्र की शस्त्र व्यापार संधि 24 दिसंबर, 2014 को लागू की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य हथियारों के गलत इस्तेमाल पर रोक लगाना है।
- इस संधि का उद्देश्य पारंपरिक हथियारों के अंतर्राष्ट्रीय कारोबार को नियंत्रित करना है। इसके तहत विभिन्न देशों के हथियारों के निर्यात पर नज़र रखनी होती है और यह सुनिश्चित करना होता है कि हथियारों को लेकर बने नियम और पाबंदियों का उल्लंघन न हो, साथ ही इससे आतंकवाद को बढ़ावा न मिले और किसी भी तरह से मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो।
- अमेरिका समेत लैटिन अमेरिका के लगभग सभी देश यूरोपीय संघ, अमेरिका के कई देश, पाकिस्तान, मिडिल ईस्ट के देश, मंगोलिया, जापान और आस्ट्रेलिया समेत कुछ अन्य देशों ने इस संधि पर हस्ताक्षर किये हैं। वहीँ भारत, चीन, रूस, म्याँमार, बांग्लादेश और श्रीलंका ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं।
हथियार बाज़ार में भागीदारी के प्रति भारत का रुख
- अंतर्राष्ट्रीय हथियार संधि के अस्तित्व में आते ही भारत ने इसके प्रति अपना रुख साफ़ कर दिया था।
- भारत का मानना था कि इस तरह की संधि का उद्देश्य हथियारों के गलत इस्तेमाल और तस्करी को रोकना होना चाहिये। ATT का फायदा पूरी दुनिया को तब होगा जब आतंकवादियों के हाथों में घातक हथियार न पहुँचने पाएँ।
- कई ऐसे अनधिकृत लोग भी हैं जो बड़े पैमाने पर हथियारों की खरीद करते हैं। इसके अलावा वे देश जो नॉन-स्टेट एक्टर्स के हाथों में हैं, यानी वे सत्ता में तो नहीं पर अब परोक्ष रूप से सरकार चला रहे हैं, उन्हें भी आधुनिक या खतरनाक हथियार नहीं बेचे जाने चाहिये।
- 2013 में भारत ने अंतर्राष्ट्रीय हथियार संधि के प्रस्ताव को कमज़ोर और एकतरफा बताया और संधि में शामिल नहीं हुआ।
- भारत ने कहा कि संधि के प्रस्ताव में संतुलन नहीं है। हथियार निर्यात करने वाले देशों और आयात करने वाले देशों की नैतिक ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिये।
- भारत ने दूसरी शर्त यह रखी कि संधि के मसौदे में आतंकवादियों और नॉन-स्टेट एक्टर्स पर नियंत्रण के लिये कोई कड़े नियम नहीं हैं। साथ ही ऐसे लोगों के हाथ में घातक हथियार न पहुँचे इसके लिये कोई ख़ास प्रतिबंध का प्रस्ताव नहीं किया गया।
- इसके अलावा भारत को इस बात पर भी आपत्ति थी कि ATT का गलत इस्तेमाल हथियार बेचने वाला देश खरीदारी करने वाले देश के साथ एकतरफ़ा रवैया या बल का प्रयोग करने के लिये कर सकता है।
- भारत ने संधि में शामिल होने से मना करते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये ज़रूरी कदम उठाना हमारा अधिकार है और भारत अपने रक्षा सौदों के मामले में अनुशासन का पालन करता है।
भारत का हथियार व्यापार
- 2018 में ग्लोबल थिंक टैंक स्टाकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक अब भारत सबसे ज़्यादा हथियार खरीदने वाला देश है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के कुल शस्त्र आयात में भारत की हिस्सेदारी 13 प्रतिशत है जो सभी देशों के मामले में सर्वाधिक है। कुछ साल पहले तक भारत से आगे सऊदी अरब था जो अब दूसरे नंबर पर आ गया है।
- भारत के बाद हथियार खरीदने वाले देशों में सऊदी अरब, मिस्र, यूएई, चीन, आस्ट्रेलिया, अल्जीरिया और ईराक जैसे देश हैं। इसके अलावा पाकिस्तान और इंडोनेशिया जैसे देश भी शामिल हैं।
- रूस, अमेरिका, इज़राइल और अन्य देशों से भारत में आयातित हथियारों में भारत की वर्ष 2008 से 2012 और फिर वर्ष 2013 से 2017 के बीच 24 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
- खास बात यह है कि 2013 से 2017 के बीच भारत ने करीब 62 प्रतिशत हथियार रूस से लिये हैं। इसके बाद भारत ने अमेरिका से 15 प्रतिशत और इजराइल से 11 प्रतिशत हथियार खरीदे हैं।
- पिछले एक दशक में 2007 से 2011 और 2012 से 2016 के बीच भारत का शस्त्र आयात 43 प्रतिशत बढ़ गया और पिछले 4 साल में उसकी वैश्विक खरीद उसके क्षेत्रीय प्रतिद्वंदियों चीन और पाकिस्तान से कहीं अधिक है।
- 2009 से 2013 के बीच भारत के कुल आयात में रूस से आयातित हथियारों का हिस्सा 76 प्रतिशत था जो 2014 से 2018 में घटकर 58 प्रतिशत रह गया।
- 2009 से 2013 के मुकाबले 2014 से 2018 में देश में हथियारों का कुल आयात 24 प्रतिशत घटा है।
- वित्त वर्ष 2014 से 2018 में अमेरिका, फ्राँस और इज़राइल से भारत को हथियारों का निर्यात बढ़ा है।
- भारत ने अपने पड़ोसी देशों- पाकिस्तान और चीन के साथ संबंधों में उतार-चढ़ाव की वज़ह से अपनी सैन्य शक्ति को मज़बूत किया है।
- चीन और पाकिस्तान की दोस्ती और देश में आतंकी घटनाओं के मद्देनज़र अपनी रक्षा प्रणाली और सुरक्षा के लिये आधुनिक हथियार खरीदना भारत की मजबूरी है लेकिन दुनिया के सबसे बड़े हथियार आयातक होने के बाद भी भारत अपनी ज़िम्मेदारियों को भली-भाँति निभाना जानता है।
निष्कर्ष
दुनिया भर में लगभग 12 मिलियन बंदूक की गोलियाँ हर साल तैयार होती हैं। एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में इतने हथियार हैं कि समूची दुनिया को दो बार ख़त्म किया जा सकता है। ये हथियार युद्ध के मैदान के अलावा आतंकवादियों के हाथों का खिलौना बन रहे हैं। तमाम प्रयासों के बावजूद हथियारों का यह गैर-कानूनी बाज़ार लगातार फल-फूल रहा है। इस गैर-कानूनी गतिविधि में न केवल दुनिया भर के आतंकी और अलगाववादी संगठन शामिल रहे हैं बल्कि कई देशों का नाम भी इसमें उजागर हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय शस्त्र व्यापार संधि को पूरी तरह से निष्पक्षता से लागू करने के लिये संयुक्त राष्ट्र के सभी सदस्य देशों के साथ मिलकर काम करना होगा, साथ ही गैर-सदस्य देशों की समस्याओं पर ध्यान देते हुए उन्हें भी इस संधि का हिस्सा बनाना होगा।
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