Wednesday, May 22, 2019

जैव विविधता – खतरे की घंटी

Ashok Pradhan     May 22, 2019     No comments

संदर्भ

हाल ही में जारी यू.एन. रिपोर्ट के अनुसार, मानव गतिविधियों के कारण दस लाख प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार मानव ने उन प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट किया है जिन पर हमारा अस्तित्व निर्भर करता है।
  • 50 देशों के 145 विशेषज्ञ लेखकों द्वारा संकलित यह रिपोर्ट लगभग 15,000 वैज्ञानिक और सरकारी स्रोतों की समीक्षा पर आधारित है।
  • प्लैनेट की जैव विविधता की स्थिति के संबंध में यह 15 वर्षों के दौरान पहली व्यापक रिपोर्ट है।

जैव विविधता (Biodiversity)

  • जैव विविधता का अर्थ पृथ्वी पर पाए जाने वाले जीवों की विविधता से है। अर्थात् किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में पाए जाने वाले जीवों एवं वनस्पतियों की संख्या एवं प्रकारों को जैव विविधता माना जाता है।
  • 1992 में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन में जैव विविधता की मानक परिभाषा के अनुसार- जैव विविधता समस्त स्रोतों यथा-अंतर क्षेत्रीय, स्थलीय, सागरीय एवं अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्रों के जीवों के मध्य अंतर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिक समूह जिनके ये भाग हैं, में पाई जाने वाली विविधता है।
  • इसमें एक प्रजाति के अंदर पाई जाने वाली विविधता, विभिन्न जातियों के मध्य विविधता तथा परिस्थितिकीय विविधता सम्मिलित है।
  • जैविक विविधता पर कन्वेंशन, आर्टिकल-2 : जैविक विविधता का अर्थ है, सभी स्रोतों से संबंधित जीवों के बीच परिवर्तनशीलता जैसे-स्थलीय, समुद्री और अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्र तथा पारिस्थितिक समूह जिसके वे भाग हैं इसमें प्रजातियों और पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच विविधता शामिल है।
  • इसे तीन स्तरों पर समझा जा सकता है:
  • प्रजाति विविधता विभिन्न प्रजातियों (पौधों, जानवरों, कवक और सूक्ष्मजीवों) की विविधता को संदर्भित करती है जैसे-ताड़ के पेड़, हाथी या बैक्टीरिया।
  • आनुवंशिक विविधता (Genetic Diversity) पौधों, जीवों, कवकों और सूक्ष्मजीवों में निहित जीनों की विविधता से मेल खाती है।
  • यह एक प्रजाति के साथ-साथ अन्य प्रजातियों में पाई जाती है। उदाहरण के लिये पूडल (poodles), जर्मन शेफर्ड और गोल्डन रिट्रीवर (Golden Retrievers) सभी कुत्ते की प्रजातियाँ हैं, लेकिन वे सभी अलग-अलग दिखते हैं।
  • पारिस्थितिक तंत्र विविधता सभी विभिन्न मौजूद अधिवासों या वास स्थानों को संदर्भित करती है, जैसे- उष्णकटिबंधीय या समशीतोष्ण वन, गर्म और ठंडे रेगिस्तान, आर्द्रभूमि, नदी, पहाड़, प्रवाल भित्तियाँ आदि। प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र जैव (Biotic) (जीवित) घटकों, जैसे- पौधों और जीवों तथा अजैविक (Abiotic) (नॉन-लिविंग) घटक जैसे-सूर्य का प्रकाश, वायु, जल, खनिज और पोषक तत्त्वों के बीच जटिल संबंधों की एक श्रृंखला होती है।

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

  • भूमि पर आधा मिलियन से अधिक प्रजातियों के दीर्घकालिक अस्तित्व के लिये अपर्याप्त निवास स्थान है और उनके विलुप्त होने की संभावना है। वर्तमान में औसतन 25% जीवों और पौधों के अस्तित्व को खतरा है।
  • कीटों की आबादी के संबंध में वैश्विक रुझानों की जानकारी तो नहीं ज्ञात हो सकी है लेकिन रिपोर्ट में कुछ स्थानों पर तेज़ी से गिरावट की बात कही गई है।
  • विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जंगलों को आश्चर्यजनक रूप से नष्ट किया गया है। 1980 और 2000 के बीच 100 मिलियन हेक्टेयर उष्णकटिबंधीय वन नष्ट किये जा चुके थे। 1992 से शहरी क्षेत्र दोगुने से अधिक हो गए हैं।
  • पशुधन के साथ निर्वनीकरण तथा कृषि, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग एक-चौथाई हिस्से के लिये ज़िम्मेदार है तथा साथ-ही-साथ प्राकृतिक पारिस्थितिकी पर भी कहर बरपाया है।
  • मृदा का पहले से कहीं अधिक निम्नीकरण किया गया है जिससे मृदा की उत्पादकता 23% तक कम हो गई है।
  • दुनिया की एक तिहाई से अधिक भूमि की सतह और दुनिया के लगभग 75% मीठे जल के संसाधन अब फसल या पशुधन उत्पादन के लिये उपयोग में लाए जा रहे हैं।
  • प्लास्टिक प्रदूषण में 1980 से दस गुना वृद्धि हुई है। हर साल, दुनिया भर में 300-400 मिलियन टन भारी धातुओं, सॉल्वैंट्स और अन्य कचरे को पानी में बहा दिया जाता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, हमें यह समझना होगा कि जलवायु परिवर्तन और प्रकृति का नुकसान न केवल पर्यावरण के लिये चिंता का विषय है बल्कि विकास और आर्थिक मुद्दों के संदर्भ में भी चिंतित करने वाला है।
  • पारिस्थितिकविदों ने चेतावनी दी है कि यदि वर्तमान रुझान जारी रहता है तो अगले 100 वर्षों के भीतर पृथ्वी पर सभी प्रजातियों में से लगभग आधी प्रजातियों का सफाया हो सकता है।

पर्यावरणीय समस्याएँ

1. प्लास्टिक अपशिष्ट (Plastic Waste)
दुनिया भर में लगभग 8 मिलियन टन प्लास्टिक हर साल समुद्र में बहाया जाता है। प्लास्टिक का निर्माण पेट्रोलियम पदार्थों से निकलने वाले तत्त्वों और रसायनों से होता है, जो इसके उत्पादन से लेकर उपयोग और अंत में कचरे के रूप में विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के माध्यम से विषाक्त प्रभाव पैदा करने का कारण बनता है।
  • यह मानव और जीवों के लिये बहुत अधिक खतरनाक है। प्लास्टिक कचरा न केवल समुद्री जीवों को प्रभावित करता है बल्कि समुद्री साल्ट को भी प्रभावित करता है।
  • 90% से अधिक समुद्री जीव किसी-न-किसी प्रकार से प्लास्टिक को आहार के रूप में ले रहे हैं, जबकि 1960 के दशक में यह आँकड़ा केवल 5% था।
  • प्लास्टिक सीवर, निर्माण गतिविधियों, मछली पकड़ने, शिपिंग आदि के माध्यम से समुद्र में बहाया जाता है।
  • अपशिष्ट प्रबंधन के लिये रिड्यूस (Reduce), रीयूज़ (Reuse) तथा रीसाइकल (Recycle) प्रक्रिया को अपनाए जाने की सलाह दी गई है।
2. माइक्रोप्लास्टिक (Microplastics)
  • माइक्रोप्लास्टिक पाँच मिलीमीटर से कम लंबे प्लास्टिक के टुकड़े होते हैं, जो जलीय जीवों तथा पक्षियों द्वारा भोजन के रूप में इस्तेमाल किये जाते है।
  • ये जल निकायों में प्रवेश करते हैं और अन्य प्रदूषकों के लिये वाहक के रूप में कार्य करते हैं। ये खाद्य श्रृंखला में कैंसरजन्य रासायनिक यौगिकों के वाहक होते हैं|
  • प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में उच्च स्तर के माइक्रोप्लास्टिक्स पाए जाते हैं।
3. जलवायु परिवर्तन (Climate Change)
  • जलवायु परिवर्तन पिछले कुछ दशकों से एक गंभीर समस्या बनी हुई है।
  • यह ग्रीनहाउस गैसों और अन्य प्रदूषकों द्वारा वातावरण के प्रदूषण के कारण होता है।
  • यह स्वच्छ वायु, पेयजल, भोजन और आश्रय जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को प्रभावित करता है।
  • ग्लोबल वार्मिंग, जो कि जलवायु में परिवर्तन के कारण होता है, का प्रभाव सिकुड़ते ग्लेशियर, नदियों और झीलों पर बर्फ का पिघलना, सूखा, चरम मौसम आदि के रूप में दिखाई देता है।
4. निर्वनीकरण (Deforestation)
  • ऐसा अनुमान है कि दुनिया के लगभग आधे से अधिक वनों को मनुष्यों द्वारा नष्ट किया जा चुका है।
  • वन वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र और जीवमंडल का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। ये जलवायु को विनियमित करने में मदद करते हैं, मिट्टी को कटाव से बचाते हैं तथा बड़ी संख्या में पौधों और जीवों की प्रजातियों को आवास प्रदान करते हैं।
5. मृदा निम्नीकरण (Land Degradation)
  • मृदा निम्नीकरण एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है। सामान्यत: कृषि, उद्योग और शहरीकरण के लिये मृदा का अवैज्ञानिक प्रबंधन और अनावश्यक इस्तेमाल के कारण मृदा गुणवत्ता में भौतिक, रासायनिक और जैविक रूप से गिरावट को ही मृदा निम्नीकरण कहा जाता है।
  • मृदा मौलिक प्राकृतिक संसाधन है और समस्त धरातलीय जीवन का आधार है। अत: मृदा निम्नीकरण का निराकरण किया जाना जीवन के स्वस्थ रहने के लिये आवश्यक है। अतिरेक मृदा निम्नीकरण के तात्कालिक और दीर्घकालिक नुकसान हैं।
  • हाल ही में किये गए एक वैज्ञानिक आकलन के अनुसार, पृथ्वी पर केवल एक-चौथाई भूमि ही मानव गतिविधियों के प्रभाव से मुक्त है जिसके 2050 तक घटकर दोगुने से अधिक होने का अनुमान है।
  • मृदा निम्नीकरण के कारण कई प्रजातियों, आवासों की गुणवत्ता और पारिस्थितिक तंत्र की कार्यप्रणाली पर प्रभाव पड़ता है।
6. अधिक आबादी (Overpopulation)
  • यह पर्यावरण की महत्त्वपूर्ण समस्याओं में से एक है।
  • कम विकसित और विकासशील देशों में जनसंख्या विस्फोट पहले से ही संसाधनों की संकट की स्थिति को और गंभीर बना रहा है।
  • हाल के विश्लेषण से पता चला है कि प्राकृतिक संसाधनों का विनाश यदि तत्काल रोक भी दिया जाए तो प्राकृतिक दुनिया को सामान्य अवस्था में आने में 5-7 वर्ष का समय लगेगा।
7. प्रकाश प्रदूषण (Light Pollution)
  • प्रकाश प्रदूषण, जिसे अंग्रेज़ी में फोटो पोल्यूशन या लुमिनस पोल्यूशन के रूप में जाना जाता है, अत्यधिक या बाधक कृत्रिम प्रकाश होता है।
  • कृत्रिम प्रकाश का अनुचित या अत्यधिक उपयोग, जिसे प्रकाश प्रदूषण के रूप में जाना जाता है, का मानव और वन्यजीवों पर गंभीर पर्यावरणीय दुष्प्रभाव पड़ता है।
  • प्रकाश प्रदूषण रात के समय आकाश में सितारों को धुँधला कर देता है, खगोलीय वेधशालाओं के साथ हस्तक्षेप करता है और प्रदूषण के किसी भी अन्य रूप की तरह पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित करता है तथा मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालता है।
  • अत्यधिक कृत्रिम प्रकाश से कीटों और जानवरों की संख्या तथा उनके व्यवहार में प्रतिकूल परिवर्तन दिखाई देता है। कृत्रिम प्रकाश जानवर के प्राकृतिक शारीरिक चक्र को भ्रमित करता है, इस प्रकार इसकी प्रतिरक्षा प्रणाली को भी प्रभावित करता है।
  • जब भी और जहाँ भी आवश्यक हो, लाइट बंद करके प्रकाश प्रदूषण से निपटा जा सकता है।

अन्य प्रजातियों पर मानव गतिविधियों का प्रभाव

  • कई वैज्ञानिकों को लगता है कि दुनिया जीवों के छठे प्रमुख सामूहिक विलुप्ति (Mass Extinction) के बीच में है, जिसका कारण पूरी तरह से मानव है।
  • लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट, 2018 के अनुसार, मानव गतिविधियों ने 1970 तक पृथ्वी के 60% स्तनधारियों, पक्षियों, मछलियों और सरीसृपों को नष्ट कर दिया है। पिछले 30 वर्षों में उथले पानी के कोरल का लगभग आधा हिस्सा नष्ट हो गया है।
  • वर्तमान में अनेक कानूनों के बावजूद लाखों विदेशी और जंगली पक्षियों एवं वन्यजीवों का अवैध व्यापार अथवा उनका शिकार तथा उन्हें बेचा जाता है।
  • पक्षी कचरे और खतरनाक अवशेषों को खत्म करने में मदद करते हैं तथा मनुष्यों और अन्य जीवों में बीमारी के प्रसार को कम करते हैं।

मधुमक्खियाँ (Bees)

  • मधुमक्खियाँ असाधारण प्राणी हैं जो दुनिया भर के सभी प्रकार की जलवायु में मौजूद हैं।
  • मधुमक्खियाँ वास्तव में कीस्टोन (Keystone) प्रजातियाँ हैं। जीवित रहने के लिये उन पर अन्य प्रजातियाँ निर्भर होती हैं।
  • परागण न केवल अन्य जीवों के लिये भोजन उपलब्ध कराता है, बल्कि पुष्प वृद्धि को भी बढ़ावा देता है जो कई जीवों का आवास प्रदान करता है।
  • परागणकों के रूप में मधुमक्खियाँ विश्व अर्थव्यवस्था में अरबों रुपए का योगदान करती हैं।
  • भारत जैसी कृषि अर्थव्यवस्थाओं में मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट के कारण उच्च जोखिम का सामना करना पड़ता है। मधुमक्खियों के बिना, भारत के खाद्यान्न उत्पादन में एक-तिहाई की कमी आएगी, क्योंकि भारत में 160 मिलियन हेक्टेयर तैयार फसलों में से 55 मिलियन हेक्टेयर फसलों में परागण मधुमक्खियों पर निर्भर है।
  • पिछले एक दशक से दुनिया भर में मधुमक्खियों की आबादी में लगातार गिरावट देखी जा रही है।

निष्कर्ष

जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ जैव विविधता को भी समान रूप से महत्त्वपूर्ण मुद्दा माना जाना चाहिये। जैव विविधता में गिरावट न केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा है, बल्कि यह आर्थिक, सुरक्षात्मक तथा नैतिक मुद्दा भी है। सबसे बड़ी चुनौती तथा अवसर का संबंध विकास के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव से है। लोगों को प्रकृति की रक्षा के लिये स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में बदलाव करना होगा। अतः प्रकृति को बचाने के लिये एक वैश्विक डील के लिये सभी देशों को एक मंच पर आने की ज़रूरत है।

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