संदर्भ एवं पृष्ठभूमि
जलवायु परिवर्तन को लेकर लंदन में पिछले 11 दिनों तक चले कड़े विरोध प्रदर्शन के बाद ब्रिटेन की संसद ने पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन को लेकर आपातकाल घोषित कर दिया है। ऐसा करने वाला वह दुनिया का पहला देश बन गया है।
- 16 वर्षीय स्वीडिश छात्रा ग्रेटा थुनबर्ग ने ब्रिटेन के सांसदों को संबोधित किया था तथा जलवायु कार्रवाई (Climate Action) की मांग की थी जिसके एक सप्ताह बाद यह कदम उठाया गया।
- जलवायु परिवर्तन पर आपात स्थिति घोषित करने की मांग कर रहे एक समूह क्लाइमेट एक्शन ग्रुप एक्सटिंक्सन रेबेलियन (Climate Action Group Extinction Rebellion) के कार्यकर्त्ताओं ने मध्य लंदन में विरोध प्रदर्शन किया था। उनका कहना था कि सरकार इसके लिये उचित कदम नहीं उठा रही है।
- सरकार से 2050 से पहले नेट ज़ीरो उत्सर्जन (Net Zero Emission) तक पहुँचने का एक नया लक्ष्य निर्धारित करने के लिये बदलाव करने की मांग की जा रही है।
- यह आंदोलन जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों में भी फैल गया है।
क्या है जलवायु आपातकाल?
- ‘जलवायु आपातकाल’ की घोषणा किन परिस्थितियों में की जा सकती है इसकी कोई स्पष्ट परिभाषा नहीं है, लेकिन ब्रिस्टल और लंदन सहित कई शहरों ने पहले ही जलवायु आपातकाल घोषित किया है।
- हमारे पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ने के परिणामस्वरूप जलवायु आपातकाल की स्थिति उत्पन्न हो रही है। ये गैस हमारे प्लैनेट को लगातार गर्म कर रहे हैं जो एक वैश्विक आपदा के समान है।
- जब तक इन गैसों को शून्य स्तर पर नहीं लाया जाता तब तक इन गैसों का परिणाम ग्लोबल वार्मिंग के रूप में सामने आएगा जो मानवता तथा दुनिया के पारिस्थितिक तंत्रों के लिये विनाशकारी होगा।
- इस आपातकाल की नैतिक प्रतिक्रिया का लक्ष्य मानव तथा जीव-जंतुओं समेत सूक्ष्म जीवों के अधिकतम सुरक्षा पर आधारित होना चाहिये।
- अधिकतम सुरक्षा का मतलब है जल्द-से-जल्द ग्लोबल वार्मिंग को कम करना और ग्लोबल कूलिंग के लिये सकारात्मक प्रयास करना।
- उल्लेखनीय है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने का वर्तमान लक्ष्य 2050 तक इसे 80% (1990 के स्तर की तुलना में) तक लाना है।
- 8 अक्तूबर, 2018 को जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (Intergovernmental Panel on Climate Change-IPCC) ने जलवायु विज्ञान की स्थिति पर एक महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट जारी की थी।
- रिपोर्ट में चेतावनी दी गई थी कि यदि प्लैनेट 1.5⁰C तक गर्म होता है तो इसके विनाशकारी परिणाम यथा- अधिकांश प्रवाल भित्तियों का नष्ट होना तथा एक्सट्रीम वेदर जैसे-हीट वेव तथा बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि होगी।
- इस सप्ताह की शुरुआत में वेल्श और स्कॉटिश सरकारों ने जलवायु आपातकाल घोषित किया था। स्कॉटलैंड में 2045 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को शून्य स्तर पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
जलवायु आपातकाल की घोषणा क्यों?
- संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि जलवायु परिवर्तन से होने वाली तबाही को रोकने के लिये हमारे पास सिर्फ 11 साल का समय रह गया है।
- एक सरकार या निकाय द्वारा जारी की गई जलवायु आपातकाल की घोषणा जलवायु परिवर्तन के लिये एक स्पष्ट कार्ययोजना तथा समुदाय-व्यापी कार्रवाई के लिये एक शक्तिशाली उत्प्रेरक हो सकती है।
- जलवायु आपातकाल की घोषणा की उम्मीद तब की जा सकती है जब जलवायु परिवर्तन के कारण जीवन के लिये खतरे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तथा सरकारों द्वारा इसके लिये कोई समुचित कार्यवाही नहीं की जाती है।
- जलवायु परिवर्तन निश्चित रूप से सबसे गंभीर वैश्विक पर्यावरणीय संकट है जिसका हम सामना करते हैं।
स्थिति की भयावहता
- पिछले वर्ष अमीर और गरीब देशों को तूफान और हीटवेव से व्यापक नुकसान हुआ है।
- विगत 4 वर्षों में पिछला यानी वर्ष 2018 सबसे अधिक गर्म रहा है तथा यह वर्ष कई आपदाओं के लिये याद किया जाएगा। जंगल में आग, चक्रवात, सूखा, गर्म हवाएँ आदि आपदाएँ इस वर्ष अधिक देखने को मिली हैं।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड सबसे बड़ा घटक है, पृथ्वी को गर्म करता है और अधिक ऊष्माताप (Heatwave) की ओर ले जाता है।
- गर्म हवा में अधिक नमी होती है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक तीव्र वर्षा होती है और तूफानों के लिये अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
- जलवायु वैज्ञानिक मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन के लिये बाढ़ और हीटवेव के बढ़ते रुझान को कारण मानते हैं।
- दुनिया भर में बढ़ते कार्बन उत्सर्जन के कारण इस सदी के अंत तक औसत तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ सकता है।
- कुछ क्षेत्रों में गर्म, लंबा ग्रीष्मकाल तथा अत्यधिक वर्षा और अन्य क्षेत्रों में सूखे के कारण फसलों को नुकसान होगा। गर्म तटीय जल मछलियों की कुछ प्रजातियों के लिये अनुपयुक्त हो जाएगा।
- महत्त्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले नुकसान को रोकने के लिये कार्बन उत्सर्जन में सुधार किया जाएगा।
जलवायु परिवर्तन का प्रभाव
1. जैव विविधता पर प्रभाव
- तापमान में वृद्धि और जलवायु परिवर्तन पारिस्थितिकी तंत्रों को अस्त-व्यस्त करता है, पौधों के प्रजनन की स्थितियों तथा जीवन चक्र में बदलाव लाता है।
- इसके कारण कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं जिसमें स्थानिक प्रजातियाँ शामिल हैं, साथ ही इसके विपरीत आक्रामक प्रजातियों की घुसपैठ भी बढ़ी है जो फसलों और अन्य जीवों के लिये खतरा हैं।
- ग्लोबल वार्मिंग जैव विविधता को असंतुलित करता है। IPCC के अनुसार, 1.5 ° C (2.7 ° F) औसत वृद्धि 20-30% प्रजातियों के विलुप्त होने का कारण बन सकती है।
2. महासागरों पर प्रभाव
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण ध्रुवों पर बर्फ बड़े पैमाने पर पिघल रही है जिसके कारण समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है।
- महासागरों का तेज़ी से अम्लीकरण (Acidification) होना भी चिंता का विषय है।
- महासागरों में कार्बन डाईऑक्साइड की बढ़ती मात्रा उन्हें अधिक अम्लीय बनाती है, जो सीपों (seashell) या प्रवाल भित्तियों के अनुकूलन की स्थिति के लिये गंभीर संकट उत्पन्न करती है।
3. मानव जाति पर प्रभाव
- जलवायु परिवर्तन वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। यह पहले से ही दुनिया के कई हिस्सों में सामाजिक, स्वास्थ्य और भू-राजनीतिक संतुलन को प्रभावित कर रहा है।
- खाद्य और ऊर्जा जैसे संसाधनों की कमी नए संघर्षों को जन्म दे रही है।
- समुद्र के बढ़ते जल स्तर और बाढ़ के कारण आबादी का पलायन हो रहा है। इसमें छोटे द्वीपीय राज्य सबसे आगे हैं। 2050 तक जलवायु शरणार्थियों की अनुमानित संख्या 250 मिलियन हो जाएगी।
4. मौसम पर प्रभाव
- दुनिया भर के मौसम विज्ञानी तथा जलवायु विज्ञानी मौसम की घटनाओं पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को देख रहे हैं।
- इसका प्रभाव बहुत व्यापक है। यह अधिक सूखा तथा हीटवेव, अधिक अवक्षेपण (Precipitation), अधिक प्राकृतिक आपदाएँ जैसे-बाढ़, हरिकेन, तूफान और जंगल की आग आदि के रूप में दिखाई दे रहा है।
जलवायु परिवर्तन तथा ग्लोबल वार्मिंग का समाधान
1. नवीकरणीय ऊर्जा
- जलवायु परिवर्तन को रोकने का पहला तरीका जीवाश्म ईंधन से दूर जाना है। इसके विकल्प हो सकते हैं-सौर, पवन, बायोमास और भूतापीय जैसे अक्षय ऊर्जा।
2. ऊर्जा एवं जल दक्षता
- स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन आवश्यक है, लेकिन अधिक कुशल उपकरण (LED बल्ब तथा इनोवेटिव शावर सिस्टम) जो कम खर्चीले भी हैं, का उपयोग करके ऊर्जा और पानी की खपत को कम किया जा सकता है।
3. सतत् परिवहन
- सार्वजनिक परिवहन, कारपूलिंग को बढ़ावा देना लेकिन साथ ही बिजली और हाइड्रोजन की गतिशीलता निश्चित रूप से कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकती है और इस तरह ग्लोबल वार्मिंग के खिलाफ लड़ा जा सकता है।
4. सतत् कृषि और वन प्रबंधन
- प्राकृतिक संसाधनों के बेहतर उपयोग को प्रोत्साहित करना, बड़े पैमाने पर वनों की कटाई को रोकना और कृषि को हरा-भरा बनाना तथा उसे अधिक कुशल बनाना भी एक प्राथमिकता होनी चाहिये।
5. खपत और रीसाइक्लिंग
- ज़िम्मेदार खपत आदतों को अपनाना महत्त्वपूर्ण है, चाहे वह भोजन (विशेष रूप से मांस), कपड़े, सौंदर्य प्रसाधन या सफाई से संबंधित उत्पादों के बारे में क्यों न हों।
- कचरे से निपटने के लिये रीसाइक्लिंग अत्यंत आवश्यक है।
6. इन्फ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड
- दुनिया भर में इमारतें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (अकेले अमेरिका में 43 प्रतिशत) में लगभग एक-तिहाई का योगदान देती हैं। मोटे इन्सुलेशन और अन्य लागत प्रभावी तापमान-विनियमन में निवेश करने से धन की बचत हो सकती है।
- बिजली ग्रिड पर ओवरलोड की स्थिति बनी हुई है लेकिन बिजली की मांग में वृद्धि जारी है।
निष्कर्ष
क्या वज़ह है कि जलवायु परिवर्तन की भयावहता को देखते हुए सरकारें इस पर उचित कार्यवाही नहीं कर रही हैं। विश्व के कई देशों में युवाओं तथा आम जनता द्वारा जलवायु आपातकाल के लिये आवाज उठाई जा रही है। स्थिति गंभीर है। यदि हम अभी से इस पर काम करना शुरू करें तो भी परिणाम आने में काफी वक्त लगेगा। हमें यह समझना चाहिये कि इस दिशा में किये जा रहे प्रयास काफी धीमा है, जबकि जलवायु परिवर्तन की गति काफी तेज़ है।
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