संदर्भ
भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ मिलकर अमेरिका इंडो-पैसिफिक की संप्रभुता की रक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में अपनी सैन्य उपस्थिति बढ़ा दी है और दुनिया भर के देशों को आगाह किया है कि चीन की प्रमुख बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी कंपनियों के चलते राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है। ब्रुनेई, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम के साथ ही चीन रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण दक्षिण चीन सागर पर भी दावा करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और भारत के पास दक्षिण चीन सागर में कोई क्षेत्रीय दावे नहीं हैं, लेकिन वे वहाँ नेविगेशन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना चाहते हैं।
'इंडो पैसिफिक' की अवधारणा
- पहली बार 'इंडो पैसिफिक' शब्द का इस्तेमाल जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2007 में भारतीय ज़मीन पर किया था।
- उन्होंने यह भी कहा था कि हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच जुड़ाव है।
- लगभग दस वर्षों के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति ने पूर्वी एशिया की अपनी यात्रा के दौरान इस शब्द का इस्तेमाल किया। उन्होंने 'एशिया पैसिफिक' के बजाय बार-बार इस शब्द का इस्तेमाल किया।
- इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि क्षेत्र के सभी देश इसे खुले, स्वतंत्र, समावेशी, समृद्ध और नियम आधारित इंडो-पैसिफिक सिस्टम बनाने की दिशा में मिलकर काम करें।
- चीन सभी क्षेत्रों में अमेरिका को कड़ी टक्कर दे रहा है। चीन के साथ व्यापार युद्ध में, यू.एस. अन्य देशों के साथ मिलकर जितना संभव हो जुड़ाव रखना चाहता है।
- भारत इस शब्द के दायरे में दो महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करता है :
- आसियान (दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का संघ) की केंद्रीय भूमिका, जो इंडो-पैसिफिक की धारणा को आगे बढ़ाने के लिये आवश्यक है।
- दक्षिण चीन सागर को लेकर उत्पन्न विवाद की स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ सी, 1982 (UNCLOS)।
क्या है हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र?
- जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, हिंद (Indo) यानी हिंद महासागर (Indian Ocean) और प्रशांत (Pacific) यानी प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र (Indo-Pacific Area) कहते हैं।
- विशाल हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के सीधे जलग्रहण क्षेत्र में पड़ने वाले देशों को ‘इंडो-पैसिफिक देश’ कहा जा सकता है।
- इस्टर्न अफ्रीकन कोस्ट, इंडियन ओशन तथा वेस्टर्न एवं सेंट्रल पैसिफिक ओशन मिलकर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र बनाते हैं। इसके अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र दक्षिण चीन सागर आता है।
- यह एक ऐसा क्षेत्र है, जिसे अमेरिका अपनी वैश्विक स्थिति को पुनर्जीवित करने के लिये इसे अपनी भव्य रणनीति का एक हिस्सा मानता है और जिसे चीन द्वारा चुनौती दी जा रही है।
- ट्रंप द्वारा उपयोग किये जाने वाले ‘एशिया-प्रशांत रणनीति’ (Indo-Pacific Strategy) का अर्थ है कि भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य प्रमुख एशियाई देशों, विशेष रूप से जापान और ऑस्ट्रेलिया, ‘शीत युद्ध’ के बढ़ते प्रभाव के नए ढाँचे में चीन को रोकने में शामिल होंगे।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का महत्त्व
- यह प्राकृतिक संसाधनों (मत्स्य, तेल, गैस) के साथ-साथ खनिज संसाधनों के मामले में भी समृद्ध क्षेत्र है।
- लगभग 3.5 ट्रिलियन डॉलर का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार दक्षिण चीन सागर के रास्ते से होता है।
- चीन, जापान, कोरिया या संयुक्त राज्य अमेरिका का पश्चिमी तट जैसी कुछ प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का व्यापार दक्षिण चीन सागर के रास्ते होता है।
- भारत का लगभग 50% व्यापार दक्षिण चीन सागर से होता है।
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की भूमिका
- भारत इस क्षेत्र के प्रमुख खिलाड़ियों में से एक रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका, आसियान, जापान, कोरिया और वियतनाम के साथ भारत कई नौसैनिक अभ्यासों में शामिल होता है।
- पिछली बार 2015 में संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत ने हिंद महासागर और प्रशांत क्षेत्र के लिये एक रणनीतिक दृष्टि जारी की, जिसमें दक्षिण चीन सागर में सुरक्षा बनाए रखने का भी उल्लेख किया गया था।
- ओएनजीसी विदेश लिमिटेड वियतनाम के विशेष आर्थिक क्षेत्र में तेल और गैस की संभावनाओं को तलाश रही है।
- भारत अपने तेल का 82% आयात करता है। भारत को जहाँ से भी तेल मिल सकता है वहाँ से तेल लेना चाहिये। इसलिये दक्षिण चीन सागर तेल की खोज के लिये काफी महत्त्वपूर्ण है।
- भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय दक्षिण चीन सागर में नेविगेशन की स्वतंत्रता, क्षेत्र में उड़ानों की स्वतंत्रता चाहता है।
क्वाड (QUAD) की अवधारणा
- क्वाड को ‘स्वतंत्र, खुले और समृद्ध’ हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित करने के लिये चार देशों के साझा उद्देश्य के रूप में पहचाना जाता है।
- क्वाड भारत, अमेरिका, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया की संयुक्त रूप से अनौपचारिक रणनीतिक वार्ता है।
- 13वीं ईस्ट एशिया समिट के दौरान ही क्वाड सम्मेलन का भी आयेाजन किया गया था। यह क्वाड सम्मेलन मुख्यत: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अवसंरचनात्मक परियोजनाओं एवं समुद्री सुरक्षा योजनाओं पर केंद्रित था।
क्वाड की पृष्ठभूमि
- एक संकल्प के रूप में ‘क्वाड’ का गठन 2007 में भारत, जापान, यूएस और ऑस्ट्रेलिया द्वारा समुद्री आपदा के समय बड़े पैमाने पर राहत और पुनर्वास संबंधी कार्यों में सहयोग के लिये किया गया था।
- लगभग एक दशक तक निष्क्रिय रहे इस समूह को वर्ष 2017 में पुनर्जीवित किया गया।
उद्देश्य
- वर्तमान में इस समूह का संदर्भ बदल गया है, अब इसका लक्ष्य है-‘हिंद-प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र, समृद्ध और मुक्त बनाना।’
- यद्यपि समूह का घोषित लक्ष्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र की समृद्धि व खुलेपन से संबंधित है, किंतु इसका मुख्य लक्ष्य बेल्ट रोड पहल के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी दबदबे को नियंत्रित करना है।
- उल्लेखनीय है कि चीन अपनी OBOR के माध्यम से हिंद-प्रशांत सहित अन्य छोटे-छोटे देशों पर प्रभुसत्ता स्थापित करने की कोशिश कर रहा है।
- क्वाड को ‘नियम-आधारित आदेश’ को ध्यान में रखते हुए पुनर्जीवित किया गया था, ताकि नेविगेशन एवं ओवर फ्लाइट की स्वतंत्रता, अंतर्राष्ट्रीय नियम का सम्मान, कनेक्टिविटी का प्रसार एवं समुद्री सुरक्षा को सहयेाग के मुख्य तत्त्व के रूप में पहचान मिल सके।
- इसमें अप्रसार एवं आतंकवाद जैसे मुद्दों को भी शामिल किया गया।
- ‘क्वाड’ को Quadrilateral Security Dialogue (QSD) के नाम से भी जाना जाता है। इस रणनीतिक वार्ता के साथ-साथ 2002 से मालाबार नामक संयुक्त सैन्य अभ्यास भी चल रहा है। मालाबार अभ्यास में अमेरिका, जापान और भारत शामिल हैं।
- ऑस्ट्रेलिया इस अभ्यास में भाग नहीं लेता है। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र का सिद्धांत है कि यह क्षेत्र मुक्त और समावेशी बने जहाँ विभिन्न देश अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करें।
दक्षिण चीन सागर में चीन का दावा
- चीन का दावा है कि उसका दक्षिण चीन सागर के लगभग संपूर्ण क्षेत्र पर ऐतिहासिक स्वामित्व है, जो उसे द्वीपों के निर्माण का अधिकार देता है।
- दक्षिण चीन सागर में चीन द्वारा अवैध कृत्रिम द्वीपों का निर्माण व ओबामा द्वारा चीन को चेतावनी देना महाशक्तियों के हस्तक्षेप को ही प्रदर्शित करता है।
- उल्लेखनीय है कि 12 जुलाई, 2016 को हेग स्थित संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरण ने दक्षिण चीन सागर पर चीन के एकाधिकार के दावे को खारिज कर दिया।
- पाँच सदस्यीय न्यायाधिकरण ने स्पष्ट किया कि चीन के पास ‘नाइन डैश लाइन’ के भीतर पड़ने वाले समुद्री इलाकों पर ऐतिहासिक अधिकार जताने का कोई कानूनी आधार नहीं है।
- ‘नाइन डैश लाइन’ द्वारा चीन ने दक्षिण चीन सागर के काफी हिस्से को अपने दायरे में लेने की घोषणा की थी, जिसमें कई छोटे-बड़े द्वीप भी शामिल हैं।
- ऐसी स्थिति में चीन की आक्रामकता ने न केवल विशिष्ट आर्थिक क्षेत्रों का अतिक्रमण किया बल्कि ताइवान, फिलीपींस, मलेशिया, वियतनाम जैसे तमाम उन तटीय देशों के लिये खतरा पैदा किया, जिनके द्वीप इन क्षेत्रों में हैं।
- चीन, दक्षिण चीन सागर विवाद को क्षेत्रीय विवाद मानता है और इसलिये उसका मानना है कि विवादों पर निर्णय पारित करने के लिये संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरण के पास कोई अधिकार नहीं है।
चीन से मुकाबले के लिये अन्य कौन से देश साथ हैं?
- इस क्षेत्र में फिलीपींस ही एक ऐसा देश था जो 2016 में इस मामले को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में ले गया। लेकिन हाल के दिनों में देखा गया है कि वह अपने द्वीपों को चीन को उपलब्ध कराने के लिये तैयार है, बशर्ते चीन उसके क्षेत्र में निवेश करे।
- विवाद को लेकर अन्य कोई देश चीन का सामना करने के लिये तैयार या सक्षम नहीं है।
- आर्थिक रूप से चीन इस क्षेत्र में सबसे आगे है। चीन के पास चेतावनियों के माध्यम से या निवेश का प्रलोभन देकर अन्य देशों को अपने पक्ष में करने का रिकॉर्ड है।
क्या भारत को दक्षिण चीन सागर में अमेरिका के साथ सहयोग करना चाहिये?
- अपनी उपस्थिति दर्शाने तथा समुद्र के कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (United Nations Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) के नियमों को मनवाने के लिये भारत को दक्षिण चीन सागर में अपना जहाज़ भेजना चाहिये।
- भारत को मालाबार जैसे अभ्यास में भाग लेना चाहिये जो चीन को किसी अपरंपरागत कार्य को करने से रोक सकता है।
- मालाबार अभ्यास 1992 में हिंद महासागर में भारतीय नौसेना और अमेरिकी नौसेना के बीच द्विपक्षीय रूप से शुरू हुआ था। जापान 2015 में मालाबार अभ्यास का स्थायी सदस्य बना।
- दक्षिण चीन सागर में अपनी स्थायी उपस्थिति दर्ज कराने के लिये भारत की संपत्ति वहाँ बहुत अधिक नहीं है, लेकिन समुद्री अभ्यास के नाम पर वह दुनिया में अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकता है।
निष्कर्ष
भारत को अपने हितों की रक्षा के लिये चीन को विश्वास में लेकर दक्षिण चीन सागर में अमेरिका सहित विभिन्न देशों के साथ क्वाड (भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान) जैसे समुद्री गठबंधनों की आवश्यकता है।
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