Sunday, June 16, 2019

मानव विकास सूचकांक (HDI) 2018

Ashok Pradhan     June 16, 2019     No comments
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा सृजित और 1990 में शुरू की गई अग्रणी अवधारणा, मानव विकास सूचकांक (Human Development Index-HDI) का अंतर्निहित सिद्धांत बहुत ही सरल है: राष्ट्रीय विकास को केवल प्रति व्यक्ति आय से नहीं, बल्कि स्वास्थ्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों से भी मापा जाना चाहिये।
HDI तीन मूल आयामों में प्रत्येक देश की उपलब्धियों का समग्र पैमाना है:
  • प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) द्वारा मापा जाने वाला जीवन स्तर।
  • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा द्वारा मापा गया स्वास्थ्य।
  • वयस्क आबादी के बीच शिक्षा के वर्षों के हिसाब से शिक्षा का स्तर तथा बच्चों के लिये स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष।  
यह सूचकांक समय के साथ विकास के स्तर में आए बदलावों का अनुसरण करने तथा विभिन्न देशों के विकास स्तरों की तुलना को संभव बनाता है।
मानव प्रगति में पिछड़ने वाले समूहों की पहचान करने तथा मानव विकास के वितरण की निगरानी हेतु मानव विकास के अन्य आयामों की पहचान करने के लिये अतिरिक्त सूचकांक विकसित किये गए हैं।
2010 में कई मानव विकास आयामों में से गरीबी, असमानता तथा लैंगिक सशक्तीकरण की निगरानी के लिये तीन सूचकांक शुरू किये गए थे।
  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index-MPI),
  • असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक (IHDI)
  • लैंगिक असमानता सूचकांक (GII)।
2014 में जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स (GDI) की शुरुआत की गई थी।
हालिया निष्कर्ष
  • सभी क्षेत्रों तथा मानव विकास समूहों में HDI दर में वृद्धि हो रही है लेकिन इन दरों में काफी भिन्नता देखी गई है।
  • दक्षिण एशिया 1990–2017 की दौरान 45.3 प्रतिशत की दर से सबसे तेज़ी से विकास करने वाला क्षेत्र था, इसके बाद पूर्वी एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र तथा उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र का स्थान आता है जिनकी विकास दर इन्हीं वर्षों के दौरान क्रमशः 41.8 प्रतिशत एवं 34.9 प्रतिशत थी।
  • लेकिन पिछले एक दशक में लगभग सभी क्षेत्रों में HDI विकास की दर भी धीमी हुई है, इसका कारण 2008-2009 के वैश्विक खाद्य, वित्तीय तथा आर्थिक संकट को माना जाता है।
  • वैश्विक HDI रैंकिंग में शीर्ष पाँच देश नॉर्वे (0.953), स्विट्ज़रलैंड (0.944), ऑस्ट्रेलिया (0.939), आयरलैंड (0.938) और जर्मनी (0.936) हैं।
  • रैंकिंग में निचले में स्थान हासिल करने वाले देश- बुरुंडी (0.417), चाड (0.404), दक्षिण सूडान (0.388), मध्य अफ्रीकी गणराज्य (0.367) और नाइजर (0.354) हैं।
  • 2012 और 2017 के बीच सबसे अधिक वृद्धि आयरलैंड की रैंकिंग में हुई है, जो 13 स्थान ऊपर पहुँच गया है।
चुनौतियाँ
मानव विकास में असमानता- प्रगति के लिये गंभीर चुनौती
मानव विकास में असमानता का होना लैंगिक अंतराल, समूह की पहचान, आय में असमानता एवं स्थान के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, साख और प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच में असमान अवसर को दर्शाता है।
  • यह उग्रवाद को बढ़ावा दे सकता है तथा समावेशी एवं सतत् विकास के पक्ष को दुर्बल कर सकता है।
  • यह सामाजिक सामंजस्य तथा संस्थानों एवं नीतियों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
  • आय में असमानता, शिक्षा एवं जीवन प्रत्याशा के बाद समग्र असमानता में सबसे अधिक योगदान देती है।
  • असमानता का लेखा-जोखा तैयार करते समय जब वैश्विक HDI का मान 0.728 से गिरकर 0.582 हो जाता है, तो यह उच्च मानव विकास श्रेणी से मध्यम मानव विकास श्रेणी तक की गिरावट को दर्शाता है।
  • महिलाओं (0.705) का औसत HDI मान पुरुषों (0.749) की तुलना में 5.9 प्रतिशत कम है।
  • कई देशों में अधिकांशतः असमानता का कारण महिलाओं की कम आय तथा शिक्षा प्राप्ति है। उल्लेखनीय है कि यह असमानता निम्न मानव विकास वाले देशों में व्यापक है जहाँ पुरुषों की तुलना में महिलाओं का HDI मान पुरुषों की तुलना में 13.8 प्रतिशत कम है।
  • उच्च मानव विकास वाले देशों में जीवन प्रत्याशा 79.5 वर्ष है जबकि निम्न मानव विकास वाले देशों में जीवन प्रत्याशा औसतन 60.8 वर्ष है।
मात्रा नहीं बल्कि गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाना चाहिये
  • मानव विकास में उपलब्धियों को न केवल मात्रा के संदर्भ में बल्कि गुणवत्ता के संदर्भ में भी व्यक्त किया जाना चाहिये, क्योंकि किसी निरपेक्ष संख्या में वृद्धि निश्चित रूप से गुणवत्ता में वृद्धि को संदर्भित नहीं करती है।
  • 1990 के दशक के बाद से स्कूल में औसत वर्षों की संख्या में भारी वृद्धि के बावजूद यह बेहतर क्षमताओं के रूप में बहुत कम मालूम पड़ता है। यह विषमता कम मानव विकास वाले देशों में तीक्ष्ण है।
पर्यावरणीय अवक्रमण (Environmental Degradation)
  • पर्यावरणीय अवक्रमण, चरम मौसमी घटनाओं के कारण भोजन एवं जल की आपूर्ति में कमी से लेकर आजीविका तथा जीवन की क्षति जैसे विकास की कई मामलों से जुड़ा हुआ है।
  • जलवायु परिवर्तन में उच्च HDI वाले देशों का ज्यादा बड़ा योगदान है।
HDI में भारत
  • भारत ने 2018 में HDI में 130वाँ स्थान प्राप्त कर 2017 की तुलना में एक स्थान की छलांग लगाई है। यहाँ जन्म के समय औसत जीवन प्रत्याशा 68.8 वर्ष है। 6,353 रुपए की सकल राष्ट्रीय आय (Gross National Income-GNI) के साथ यहाँ स्कूली शिक्षा में अपेक्षित वर्ष 6.4 वर्ष के औसत के साथ 12.3 वर्ष हैं।
  • 1990 में HDI की शुरुआत के समय से 2018 तक भारत का HDI मान 0.427 से 0.640 तक पहुँच गया है अर्थात् HDI मान में 50% का सकारात्मक परिवर्तन हुआ है।
  • वर्ष 2000 से 2010 के दशक में वार्षिक विकास की उच्चतम दर 1.64% थी।
असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक (Inequality adjusted Human Development Index-IHDI), में इसका मान 0.640 से घटकर 0.468 पर पहुँच गया है जो 26.8% की कमी को दर्शाता है। यहाँ असमानता की माप लैंगिक असमानता, शिक्षा, आय आदि के क्षेत्र में की जाती है।
लैंगिक विकास सूचकांक (Gender Development Index-GDI)
महिला तथा पुरुष HDI मानों का अनुपात-
  • HDI मानों में विचलन के आधार पर देशों को 5 समूहों में विभाजित किया गया है, समूह 1, 2.5% से कम के विचलन के साथ उच्चतम समानता को दर्शाता है जबकि समूह 5, 10% से अधिक के विचलन के साथ सबसे कम समानता को दर्शाता है।
  • भारत 0.841 GDI मान के साथ 5वें समूह में है, जो देश की महिलाओं में पाई जाने वाली स्पष्ट विषमता को दर्शाता है।
  • देश में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 70.4 वर्ष है जो कि पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 67.3 वर्ष की तुलना में अधिक है।
  • महिलाओं की स्कूली शिक्षा के लिये अपेक्षित वर्ष 12.9 वर्ष है, जो पुरुषों के 11.9 वर्ष कि तुलना में अधिक हैं, लेकिन स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष में पुरुषों और महिलाओं के बीच बहुत अधिक विषमता है, जहाँ यह महिलाओं की औसत स्कूली शिक्षा लगभग तीन चौथाई घटकर 4.8 साल पर पहुँच गई हैं वही पुरुषों में यह एक तिहाई कम होकर 8.2 साल पर पहुँच गई।
  • अनुमानित प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय की माप महिलाओं एवं पुरुषों की मज़दूरी के अनुपात में की जाती है, सूचकांक आर्थिक रूप से सक्रिय महिला और पुरुष आबादी के सकल राष्ट्रीय आय में काफी असमानता को दर्शाता है। जहाँ महिलाओं की आय 2,722 रुपए से भी कम है वही पुरुषों की आय 9,889 रुपए है।
लैंगिक असमानता सूचकांक (Gender Inequality Index-GII)
  • यह तीन आयामों में महिलाओं और पुरुषों के बीच उपलब्धियों में असमानता को दर्शाने वाली एक समग्र माप है: प्रजनन स्वास्थ्य, सशक्तीकरण तथा श्रम बाज़ार।
  • भारत के लिये GII का मान 0.524 है तथा यह 127 वें स्थान पर है।
  • भारत के लिये मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate-MMR) वर्ष 2015 में प्रति लाख 174 मौतों का अनुमान है, जो भारत के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार 2014-16 की अवधि में घटकर 130 हो गई है।
  • भारत 2030 तक अपने SDG लक्ष्य 5.5 के अनुरूप MMR को 70 प्रति लाख तक कम करना चाहता है।
  • 2015-2020 की अवधि में किशोरियों में जन्म दर (1,000 महिलाओं पर 15-19 वर्ष की आयु की महिलाओं की संख्या) 23.1 अनुमानित है। इस मामले में भारत की स्थिति चीन को छोड़कर शेष पड़ोसी देशों की तुलना में बेहतर है।उल्लेखनीय है कि चीन में यह दर 6.4 है।
  • भारतीय संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व केवल 11.6% जबकि रवांडा की संसद में 55% से अधिक महिलाएँ हैं। अतः भारत की विधायी प्रक्रिया में अधिक महिलाओं को शामिल कर इसे अधिक न्यायसंगत बनाने की तत्काल आवश्यकता हैं।
  • 63.5% पुरुषों की तुलना में केवल 39% महिलाएँ ही माध्यमिक स्तर तक (25 वर्ष या उससे अधिक) शिक्षित थीं, जो यह दर्शाता हैं की 2010-17 की अवधि के दौरान माध्यमिक शिक्षा तक महिलाओं की पहुँच बहुत ही कम थी।
  • श्रम बल भागीदारी यानी श्रम-आयु की आबादी (15 वर्ष और उससे अधिक आयु) का अनुपात जो श्रम बाज़ार में मौजूद है, वह या तो कार्यरत है या सक्रिय रूप से काम की तलाश में है, को श्रम-आयु की आबादी के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है, महिलाओं के लिये यह 27.2% तथा पुरुषों के लिये 78.8% है।
बहु-आयामी गरीबी सूचकांक (MPI)
  • भारत का MPI 0.121 है
  • वर्ष 2015-16 में किये गए सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की 27.5% आबादी बहु-आयामी गरीबी की गिरफ्त में थी।
  • 20–33 प्रतिशत के अभाव स्कोर के साथ 19.1% भारतीय आबादी को कई प्रकार की अभावों से ग्रस्त होने का जोखिम था।
  • 8.6% लोग गंभीर बहुआयामी गरीबी में जी रहे हैं।
  • भारत में 21.9% लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, जिसमें 21.2% लोग एक दिन में 1.90 डॉलर से भी कम कमाते हैं।
मानव विकास के सूचक
  • जनसंख्या प्रवृत्ति
♦ वर्ष 2017 में भारत की अनुमानित जनसंख्या 1339.2 मिलियन थी तथा वर्ष 2030 तक इसके 1513 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
♦ 2005-10 के दौरान औसत वार्षिक विकास दर 1.5% थी तथा 2015-2020 के दौरान इसमें 1.1% की मामूली गिरावट दर्ज की गई।
♦ भारतीय आबादी का 33.6% हिस्सा शहरी क्षेत्रों में निवास करता है जिसमें अधिकांशतः हिस्सा युवा आबादी का है।
♦ इसमें से कार्यशील जनसंख्या (15-64 वर्ष) 886.9 मिलियन तथा 5 वर्ष से कम उम्र वालों की संख्या 119.8 मिलियन है।
♦ भारत की कुल आबादी में से केवल 80 मिलियन आबादी ही ऐसी है जिनकी उम्र 65 वर्ष से अधिक है।
♦ वर्ष 2015 में भारतीय आबादी की औसत उम्र 26.7 पर पहुँच गई, जिसके और अधिक घटने की उम्मीद है।
♦ वर्ष 2015-20 के दौरान भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) 2.3 रहने की उम्मीद है।
  • स्वास्थ्य परिणाम
♦ 0-5 महीने की आयु के केवल 54.9% शिशुओं को स्तनपान कराया जाता है जो कि कम-से-कम 6 महीने की उम्र तक बच्चे के सर्वोत्तम विकास, वृद्धि तथा स्वास्थ्य के लिये बहुत आवश्यक है।
♦ एक वर्ष की उम्र वाले 9% बच्चों में DPT (डिप्थीरिया, पोलियो और टेटनस) तथा 12% बच्चों में खसरे का टीकाकरण नहीं हुआ है।
♦ 5 वर्ष से कम उम्र के 37.9% बच्चे ठिगनेपन (stunting) के या तो मध्यम या गंभीर स्वरुप से पीड़ित पाए गए।
♦ प्रति हज़ार जीवित बच्चों के जन्म पर शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate-IMR) 34.6 है, जिसे 2030 तक प्रति हज़ार 12 के स्तर पर लाया जाना है।
♦ 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में शिशु मृत्यु दर 43 प्रति हज़ार है तथा इसे 2030 तक 25 प्रति हज़ार पर लाया जाना है।
♦ भारत में महिला एवं पुरुष मृत्यु दर क्रमशः प्रति हज़ार 139 और 212 है।
♦ भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है जिसमें जलवायु संबंधी महामारियों जैसे- डेंगू, मलेरिया आदि की संभावना लगातार बनी रहती है। 2016 में मलेरिया से पीड़ित होने वालों की संख्या 18.8 व्यक्ति प्रति हज़ार थी।
♦ WHO के अनुसार, भारत तपेदिक (TB) से सबसे अधिक ग्रस्त होने वाला देश बना हुआ है, जहाँ प्रति लाख जनसंख्या पर TB पीड़ितों की संख्या 211 है।
♦ भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 3.9% स्वास्थ्य पर खर्च करता है।
  • शिक्षा क्षेत्र में उपलब्धियाँ
♦ 2006-2016 के दौरान 15 वर्ष तथा उससे अधिक उम्र के सभी वयस्कों के लिये साक्षरता दर 69.3% थी।
♦ इसी अवधि के दौरान युवा साक्षरता दर (15-24 वर्ष) महिलाओं के लिये 81.8% तथा पुरुषों के लिये 90% थी।
♦ 25 वर्ष तथा उससे अधिक आयु वर्ग के 51.6% लोग किसी-न-किसी रूप में माध्यमिक शिक्षा के स्तर तक शिक्षित थे।
♦ प्री-प्राइमरी में सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio-GER) प्री-प्राइमरी स्कूल की उम्र के बच्चों की कुल संख्या का 13% था, जो 2012-17 के दौरान भारत में स्कूली शिक्षा के शुरुआती वर्षों में प्रवेश की कमी तथा इसको दिये जा रहे महत्त्व के अभाव को दर्शाता हैं।
♦ प्राथमिक विद्यालय के लिये GER पूर्व-प्राथमिक विद्यालय की उम्र वाले बच्चों की संख्या का 115% था, जो स्कूलों में प्रोन्नति की कमी तथा ओवर एडमिशन को दर्शाता है।
♦ माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने योग्य आबादी में से 75% का नामांकन माध्यमिक शिक्षा के लिये किया जाता है, जबकि तृतीयक शिक्षा के लिये केवल 27% छात्र ही पंजीकृत किये जाते हैं।
♦ 2007-2016 के दौरान भारत में प्राथमिक स्कूल ड्रॉपआउट (dropout) अर्थात् बीच में ही स्कूल छोड़ने की दर 9.8% थी।
♦ 2015-16 के दौरान निम्न माध्यमिक सामान्य शिक्षा की अंतिम कक्षा तक पहुँचने वाले छात्रों की दर 97% थी।
♦ सरकार द्वारा शिक्षा पर किया जाने वाला व्यय कुल GDP का 3.8% है।
  • राष्ट्रीय आय एवं संसाधनों की संरचना
♦ 2017 में भारत का कुल सकल घरेलू उत्पाद अर्थात् GDP 8,605.5 बिलियन डॉलर था।
♦ प्रति व्यक्ति GDP 6,427 डॉलर थी।
♦ 2007-17 के दौरान संगृहीत राजस्व कर कुल GDP का 11% था।
♦ 2017 में, भारत की GDP प्रति व्यक्ति विकास दर 5.4% थी।
♦ 2017 में प्राप्त कुल राजस्व कर GDP का 11% था।
♦ 2012-17 की अवधि के दौरान वित्तीय क्षेत्र द्वारा दिया गया घरेलू ऋण GDP का 75% था।
  • कार्य एवं रोज़गार
♦  रोज़गार प्राप्त जनसंख्या का अनुपात (15 या उससे अधिक आयु वर्ग की कुल आबादी में कार्यरत लोगों का कुल प्रतिशत) 51.9% है।
♦ श्रम बल भागीदारी दर (योग्य तथा काम करने के इच्छुक लोग) 53.8% है।
♦ कुल नियोजित जनसंख्या में से 42.7% लोग कृषि क्षेत्र में तथा 33.5% सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं।
♦ कुल श्रम शक्ति में से 3.5% लोग बेरोज़गार हैं जिसमें युवाओं का अनुपात (15-24 वर्ष की आयु) 10.5% हैं।
♦ 27.5% युवा न तो नौकरी करते हैं और न ही स्कूल जाते हैं।
♦ कुल नियोजित लोगों में से 42.9% कार्यरत लोग गरीब हैं, अर्थात वे दिन में 3.10 डॉलर से भी कम पर काम कर रहे है।
♦ वैधानिक पेंशन योग्य आयु की आबादी वाले केवल 24.1% ही पेंशन प्राप्त कर रहे हैं, जिस कारण वृद्धावस्था में जी रहे लोगों का एक बड़ा हिस्सा दयनीय स्थिति में जीवन यापन कर रहा है।
  • मानव सुरक्षा
♦ 5 वर्ष या उससे कम उम्र के 80% बच्चे ही भारत में जन्म से पंजीकृत हैं, जबकि भारत के पड़ोसी देश भूटान में जन्म के समय पंजीकरण की दर 100% है।
♦ भारत में लगभग 806 हज़ार आंतरिक रूप से विस्थापित लोग निवास करते हैं।
♦ भारत में प्राकृतिक आपदा के कारण हर साल प्रति दस लाख में से 461 लोग बेघर हो जाते हैं।
♦ प्रत्येक एक लाख लोगों में से 33 केवल लोगों को ही सज़ा हो पाती है, जो भारत में निम्न सजा दर (Low Conviction Rate) को प्रदर्शित करता हैं।
♦ भारत में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 14.2 महिलाएँ तथा 17.9 पुरुष आत्महत्या करते हैं।
  • मानव एवं पूंजी की गतिशीलता
  • पूंजी (Capital)
♦  व्यापार (आयात और निर्यात) एवं FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) भारतीय GDP का 40% हैं, शुद्ध प्रवाह भारतीय GDP का 1.5% है।
♦  वर्ष 2016 की सकल राष्ट्रीय आय में आधिकारिक विकास सहायता (Official Development Assistance-ODA) का योगदान 0.1% है।
♦ वर्ष 2017 की GDP में में प्रेषण और अंतर्वाह (Remittances and inflows) का योगदान 2.66% था।
  • मानव
♦  भारत की शुद्ध प्रवासन दर प्रति हज़ार लोगों पर -0.4 है, यानी भारत में प्रवासियों का अंतर्ग्रहण (intake of migrants) जनसंख्या के अनुसार 0.4% है।
  • संचार
♦  2016 में कुल जनसंख्या का 29.5% लोगों ने इंटरनेट का उपयोग किया तथा 100 में से 85.2 लोगों ने मोबाइल फोन का उपयोग किया, जो 2016 के दौरान भारत में शानदार डिजिटल पैठ तथा डिजिटल आर्किटेक्चर में लोगों की अच्छी जानकारी को दर्शाता है।
♦ भारत में 2010 से 2016 के बीच मोबाइल के उपयोग में 39.4% का सकारात्मक बदलाव देखा गया।
  • अनुपूरक संकेतक: कल्याण की धारणाएं (2012-17)*
  • कल्याण की व्यक्तिगत धारणाएँ
♦ 79% भारतीय शिक्षा की गुणवत्ता से संतुष्ट हैं।
♦  स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता तथा जीवन स्तर से क्रमशः 65% एवं 76% भारतीय संतुष्ट हैं।
♦  69% महिलाओं ने उल्लिखित अवधि के दौरान भारत में सुरक्षित महसूस किया, जबकि 77% पुरुषों ने ऐसा महसूस किया।
♦  चुनने की स्वतंत्रता (Freedom of Choice) से भारतीय बहुत अधिक संतुष्ट थे, जिसमें महिलाओं की संख्या 83% तथा पुरुषों की संख्या 89% थी।
  • सामुदायिक धारणाएँ
♦  देश के केवल 44% लोगों ने महसूस किया कि देश में रोज़गार पाने के अच्छे अवसर मौजूद थे।
  • सरकार के बारे में लोगों की धारणा
♦ 83% लोगों का न्यायिक प्रणाली में तथा 84% लोगों ने राष्ट्रीय सरकार में भरोसा जताया।
♦ पर्यावरण के संरक्षण के लिये किये गए कार्यों से 77% लोग संतुष्ट दिखे।
  • मूलभूत मानवाधिकार संधियों की स्थिति
  • नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, 1965 (International Convention on the Elimination of All Forms of Racial Discrimination-ICERD)
♦ यह नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों पर प्रतिबंध लगाता है। नस्लीय भेदभाव को जाति, रंग, वंश अथवा राष्ट्रीय या जातीय मूल के आधार पर किसी भी भेदभाव, बहिष्करण, प्रतिबंध या वरीयता के रूप में परिभाषित किया गया है।
♦ यह इन घटनाओं से निपटने के लिये राज्य के दायित्वों को निर्धारित करता है।
♦ यह अभिसमय राज्यों द्वारा नस्लीय भेदभाव के खिलाफ उचित उपाय करना आवश्यक मानता है, जिसमें समूहों और संगठनों द्वारा प्रसारित किये जा रहे नस्लवादी विचारों का प्रसार भी शामिल है।
♦ यह संधि 4 जनवरी, 1969 को लागू हुई।
♦ भारत द्वारा इसकी पुष्टि 1968 में की गई थी।
  • नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, 1966 (International Covenant on Civil and Political Rights-ICCPR)
♦ सभी व्यक्तियों को नागरिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं, जैसे स्वतंत्रता का अधिकार, जीवन का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता, वाक-स्वतंत्रता एवं जनसभा का अधिकार, समानता का अधिकार तथा प्रभावी कानूनी आश्रय का अधिकार।
♦ कुछ अधिकार जैसे- मनमाने तरीके से जीवन से वंचित न होने का अधिकार, यातना एवं अन्य प्रकार के क्रूर, अमानवीय तथा अपमानजनक व्यवहार से मुक्ति, जिन्हें आपातकाल की स्थिति में भी निलंबित या छिना नहीं जा सकता है।
ICCPR, इसके वैकल्पिक प्रोटोकॉल, ICESCR और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणाएँ मिलकर इंटरनेशनल बिल ऑफ़ ह्यूमन राइट्स का निर्माण करते हैं।
♦ यह संधि 23 मार्च, 1969 से लागू है।
♦ भारत 1979 में इस संधि में शामिल हुआ।
  • अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार प्रतिज्ञा-पत्र (International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights-ICESCR)
♦ यह आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों की स्थापना करता है जैसे कि न्यायपूर्ण एवं अनुकूल परिस्थितियों में काम करने का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार आदि।
♦ ICESCR मानवाधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय विधेयक का हिस्सा है।
 यह 3 जनवरी, 1976 को लागू हुआ।
♦ भारत 1979 में इस संधि में शामिल हुआ।
  • महिलाओं के विरूद्ध सभी स्वरूपों के भेदभाव के निवारण संबंधी अभिसमय, 1979 (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination against Women-CEDAW)
♦ यह पहली वैश्विक एवं व्यापक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के लिंग-आधारित भेदभाव को समाप्त करना है।
♦ इसके लिये राज्यों को अपने संविधान या अन्य उपयुक्त कानूनों में लैंगिक समानता के सिद्धांत को शामिल करना तथा उस सिद्धांत की व्यावहारिकता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
 यह संधि 3 सितंबर, 1981 को प्रभावी हुई।
♦  भारत 1993 में इस संधि में शामिल हुआ।
  • यातना एवं अन्य क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार या दंड के खिलाफ कनवेंशन, 1984 (CAT)
♦ यह सभी परिस्थितियों में अत्याचार तथा दुर्व्यवहार के अन्य रूपों को परिभाषित करता है एवं ग़ैरक़ानूनी घोषित करता हैं। इसके लिये राज्यों को घरेलू कानून के तहत इसे ग़ैरक़ानूनी घोषित करने, ऐसी घटनाओं को रोकने एवं उनके लिये
कानून प्रवर्तन तथा अन्य कर्मियों को अत्याचार निषेध के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
♦ अगर किसी व्यक्ति का प्रत्यर्पण करने पर यदि उस व्यक्ति को उस प्रत्यर्पित देश में यातना दिये जाने का खतरा होता है तो राज्य ऐसे व्यक्ति का प्रत्यर्पण नहीं करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
♦ यह किसी भी अभियुक्त को यातना देने पर मुकदमा चलाने या प्रत्यर्पित करने के लिये सार्वभौमिक दायित्व का भी निर्धारण करता है।
♦ यह संधि 26 जून 1987 को लागू हुई।
♦ भारत इस संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
  • बाल अधिकार पर सम्मेलन, 1989 (Convention on the Rights of Child-CRC)
♦  यह 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है तथा चार सामान्य सिद्धांतों के अनुसार बच्चों के लिये स्वास्थ्य, शिक्षा, कानूनी, नागरिक एवं सामाजिक सेवाओं के लिये मानक निर्धारित करता है:
1. बच्चों के बीच भेदभाव न करना।
2. बच्चे का सर्वोत्तम हित
3. बच्चे के जीवन, उत्तरजीविता तथा विकास का अधिकार।
4. बच्चे के विचारों का सम्मान करें।
 यह संधि 2 सितंबर, 1990 को लागू हुई।
♦ भारत ने 1992 में इस संधि पर हस्ताक्षर किये।
  • सभी प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों और उनके परिवार के सदस्यों के संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 1990 (International Convention on the Protection of the Rights of All Migrant Workers and Members of Their Families-ICMW)
♦ यह राज्यों के लिये न्यूनतम मानक स्थापित करता है जिसे राज्यों को प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवार के सदस्यों की प्रवासी स्थिति की परवाह किये बिना लागू करना आवश्यक है।
♦ ऐसे मानक पूरी प्रवासन प्रक्रिया पर लागू होते हैं, जैसे- प्रवास, प्रस्थान एवं पारगमन की तैयारी से लेकर रोज़गार की स्थिति में रहने और पारिश्रमिक गतिविधि की कुल अवधि तथा मूल राज्य या सामान्य निवास (Habitual Residence) की वापसी तक।
♦ यह 1 जुलाई, 2003 को लागू हुआ।
♦ भारत इस अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
  • सशस्त्र संघर्षों में बच्चों की भागीदारी पर बाल अधिकारों पर कन्वेंशन का वैकल्पिक प्रोटोकॉल, 2000 (CRC-AC)
♦ राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिये सभी संभव उपाय करने होंगे कि 18 वर्ष से कम आयु के सैन्य बलों के सदस्य सशस्त्र संघर्षों में प्रत्यक्ष हिस्सा नहीं लेंगे।
♦ 18 वर्ष से कम आयु में अनिवार्य भर्ती पर प्रतिबंध लगाना।
♦ सशस्त्र संघर्षों हेतु 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भर्ती करने तथा उनका उपयोग करने से स्वतंत्र सशस्त्र समूहों को प्रतिबंधित करने के लिये कानूनी उपाय करना।
♦ यह 12 फरवरी, 2002 को लागू हुआ।
♦ भारत ने 2005 में इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये थे।
  • बच्चों की बिक्री, बाल वेश्यावृत्ति और बाल अश्लीलता पर बाल अधिकारों के कन्वेंशन का वैकल्पिक प्रोटोकॉल, 2000 (CR-SC)
♦ यह यौन और गैर-यौन उद्देश्यों, बाल वेश्यावृत्ति और बाल अश्लीलता के लिये बच्चों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है।
♦ यह बाल शोषण तथा दुर्व्यवहार को समाप्त करने हेतु राज्यों के लिये विस्तृत एवं आवश्यक प्रावधान करता है।
♦ बाल पीड़ितों को कानूनी एवं अन्य सहायता प्रदान करने तथा इन अपराधों से संबंधित गतिविधियों को गैर-कानूनी घोषित करने और दंडित करने के लिये राज्यों द्वारा इसकी पुष्टि करना आवश्यक है।
♦ यह प्रोटोकॉल 18 जनवरी, 2002 को लागू हुआ।
♦ भारत ने 2005 में इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये।
  • बलपूर्वक गुमशुदगी (Enforced Disappearance) से सभी व्यक्तियों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, 2006 (International Convention for the Protection of All Persons from Enforced Disappearance-ICPED)
♦ राज्य के अधिकारियों द्वारा किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के अपहरण या हनन के रूप में परिभाषित, बलपूर्वक ग़ुम होने (Enforced Disappearance) को प्रतिबंधित करता है।
♦ यह अभिसमय इसकी रोकथाम, दंड-मुक्ति का विरोध, प्रभावी कानून प्रवर्तन तथा पीड़ितों के अधिकारों को बनाए रखने के लिये न्यूनतम कानूनी मानकों को स्थापित करता है।
♦ यह अभिसमय पीड़ितों के सत्य को जानने एवं क्षतिपूर्ति के अधिकार को भी सुनिश्चित करता है।
♦ यह कन्वेंशन 23 दिसंबर 2010 को लागू हुआ।
♦ भारत इस अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर अभिसमय, 2006 (CRPD)
♦ यह विकलांग व्यक्तियों को मौलिक स्वतंत्रता तथा सभी मानवाधिकारों के पूर्ण एवं समान व्यवहार की गारंटी देता है एवं उनकी अंतर्निहित गरिमा के लिये सम्मान को बढ़ावा देता है।
♦ इसके अनुसार, विकलांगता एक व्यक्ति की स्थिति और एक अनधिगम्य (inaccessible) समाज के बीच पारस्परिक विचार-विमर्श का परिणाम है।
♦ चूँकि, समाज को दुरूह बनाने वाले अवरोध विविध हैं। अतः यह कन्वेंशन इन बाधाओं को भेदभावपूर्ण मानता है तथा उन्हें हटाने की आवश्यकता पर बल देता है।
♦ यह अभिसमय 3 मई, 2008 को लागू हुआ। 
♦ भारत ने 2007 में इस अभिसमय पर हस्ताक्षर किये।
मानव विकास के डैशबोर्ड (Dashboards)
  • मानव विकास की गुणवत्ता
  • स्वास्थ्य की गुणवत्ता
♦ भारत में 2016 में स्वास्थ्य प्रत्याशा के रूप में कुल जीवन प्रत्याशा में 13.9% की गिरावट देखी गई है।
♦ 2007-17 की अवधि के दौरान भारत में प्रति 10,000 लोगों पर केवल 7.6 चिकित्सक थे, परंतु इस मामलें में पाकिस्तान बेहतर स्थिति में है जहाँ हर 10,000 लोगों पर चिकित्सकों का अनुपात 9.8 है।
♦ भारत के अस्पतालों में प्रत्येक 10,000 लोगों पर केवल 7 बेड हैं, जबकि नेपाल जैसे छोटे राष्ट्र में प्रत्येक 10,000 लोगों पर 50 बेड हैं। इसलिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिये अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
  • शिक्षा की गुणवत्ता
♦ भारत के प्राथमिक विद्यालयों में प्रत्येक 35 विद्यार्थियों पर केवल एक शिक्षक है, जो निचले स्तर पर है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय मॉडल मानकों के तहत प्रति 15-18 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक होना चाहिये।
♦ प्राथमिक विद्यालयों में केवल 70% शिक्षक विद्यालयों में पढ़ाने के लिये प्रशिक्षित हैं।
  • जीवन स्तर की गुणवत्ता
♦ 2016 तक केवल 77.6% ग्रामीण आबादी तक ही बिजली की पहुँच सुनिश्चित की जा सकी है।
♦ 2015 तक कुल आबादी में से 87.6% लोग ही बेहतर पेयजल स्रोतों का उपयोग कर रहे थे, जबकि 2015 में केवल 44.2% लोगों की पहुँच बेहतर स्वच्छता सुविधाओं तक थी।
  • लाइफ-कोर्स जेंडर गैप (Life-Course Gender Gap)
♦ भारत में प्रत्येक महिला जन्म की तुलना में 1.11 पुरुष जन्म लेते हैं (2015-2020)।
♦ 2012-17 के दौरान पूर्व-प्राथमिक, प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में सकल नामांकन अनुपात (GER) क्रमशः 0.94, 1.17 और 1.02 था।
♦ प्रत्येक बेरोज़गार पुरुष की तुलना में 1.02 महिलाएँ बेरोज़गार हैं।
♦ 25 से ऊपर की उम्र के प्रत्येक पुरुष की तुलना में केवल 0.64 महिलाएँ ही माध्यमिक स्तर तक शिक्षित हैं।
♦ गैर-कृषि क्षेत्र (उद्योग, सेवाओं) के कुल रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी 18.6% ही है।
  • महिला सशक्तीकरण
♦ 85.7% प्रसवों में कुशल स्वास्थ्य कर्मियों की भागीदारी थी। (2012-17)
♦ गर्भावस्था से संबंधित समस्याओं के कारण 2015 के दौरान मातृ मृत्यु दर (MMR) 174 प्रति लाख थी।
 गर्भनिरोधकों का प्रसार
♦ 53.5% शादीशुदा या अन्य प्रकार के संबंध में रहने वाली 15-49 वर्ष आयु की महिलाओं किसी-न-किसी तरीके से गर्भनिरोधकों तक पहुँच थी।
♦ 12.9% गर्भधारण करने योग्य महिलाओं को परिवार नियोजन की आवश्यकता है।
  • महिलाओं के विरुद्ध क्रूरता या हिंसा
♦ 20-24 वर्ष की आयु की 27% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले कर दी जाती है। (बाल विवाह)
  • अंतरंग साथी द्वारा हिंसा (Intimate partner)
♦ 15 वर्ष तथा उससे अधिक आयु की 28.7% महिलाएँ अपने अंतरंग साथी की हिंसा का शिकार होती हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक स्थिति
♦ विज्ञान, गणित, इंजीनियरिंग, विनिर्माण तथा निर्माण में कुल स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 26.9% है।
♦ भारत में 15 वर्ष या उससे अधिक आयु की 76.6% महिलाओं का किसी-न-किसी वित्तीय संस्थान में या मोबाइल मनी (mobile money) सेवा प्रदाता के पास अपना एकाउंट है।
♦ भारत में अनिवार्य मातृत्व अवकाश 182 छुट्टियों के साथ वैश्विक मानकों के अनुरूप है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता या स्थायित्व
♦ वर्ष 2010-2015 के बीच हुई कुल ऊर्जा खपत में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी 73.5% है। 
♦ वर्ष 2015 में हुई कुल ऊर्जा खपत का 36% हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा का है। 
♦ प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 1.7 टन है जो ब्रिक्स राष्ट्रों में सबसे कम है। यह ब्राज़ील में 2.6, चीन में 7.5, दक्षिण अफ्रीका में 9 तथा रूस में 11.9 टन है।
♦ भारत के कुल भूमि क्षेत्र का 23.8% भाग वनाच्छादित है तथा इसके मूल्य (Value) में 1990-2015 के दौरान 10.5% का परिवर्तन हुआ है।
  • पर्यावरणीय खतरा
♦ 2016 में घरेलू तथा वायु प्रदूषण के कारण प्रति लाख 184.3 लोगों की मृत्यु हुई।
♦ असुरक्षित जल, साफ-सफाई तथा स्वच्छता (Hygiene) की समस्या के कारण प्रति लाख 18.6 लोगों की मृत्यु हुई।
♦ रेड लिस्ट इंडेक्स जो प्रजातियों के समूह की संख्या में वास्तविक परिवर्तन के आधार पर विलुप्त होने के खतरों को मापता है, में 0.684 अंकों के साथ भारत को निचले पायदान पर रखा गया है।
  • सामाजिक-आर्थिक स्थिरता
♦ 2006-16 की अवधि के दौरान भारत की कुल समायोजित शुद्ध बचत (शुद्ध राष्ट्रीय बचत + शैक्षिक व्यय - ऊर्जा, खनिज, वन क्षय, CO2 और कण उत्सर्जन की क्षति) कुल GNI का 15.5% थी, जो राष्ट्रीय बचत से दो-तिहाई अधिक है।
♦ 2011-17 की अवधि के दौरान कुल सकल पूंजी निर्माण GDP का 30.8% था।
♦ भारत में कुल श्रम बल का केवल 18.5% श्रमिक ही कुशल थे, जो दो-तिहाई से कम है।
♦ एकाग्रता सूचकांक- भारत की निर्यात बास्केट केंद्रीकृत नहीं है तथा उत्पादों में विविधता है, यह 0.120 के मान के साथ शीर्ष वरीयता वालें देशों में शामिल हैं।
♦ भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 0.6% ही अनुसंधान और विकास पर खर्च करता है, जबकि रक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% खर्च करता है।
♦ 2010-17 के दौरान 7 साल की अवधि में असमानता के कारण भारत के HDI मान में समग्र नुकसान 1.4% है।
HDR 2018 का मूल्यांकन (मानव विकास रिपोर्ट)
  • पूरे राष्ट्र में विकास संकेतकों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा सकती है लेकिन मानव विकास की गुणवत्ता में ह्रास देखा गया है।
  • प्रगति रैखिक या प्रत्याभूत (Guaranteed) नहीं है, तथा संकट एवं चुनौतियाँ इसक लाभ या वृद्धि को पलट सकती हैं।
  • महिलाओं और पुरुषों के मध्य अपनी पूर्ण क्षमताओं के उपयोग को लेकर काफ़ी असमानताएँ हैं।
  • पर्यावरणीय ह्रास तथा जलवायु परिवर्तन को हल किये बिना मानव विकास की प्रगति को बनाए नहीं रखा जा सकता है।
सुझाव
  • IHDI को देशों के भीतर हो रहे मानव विकास के वितरण को जानने के प्रयास हेतु प्रकाशित किया गया है।
  • असमानता जितनी अधिक होगी HDI उतना ही कम होगा।
  • भविष्य की प्रगति की निगरानी के लिये मानव विकास की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • भेद्यता एवं संघर्ष के चक्र को तोड़ने, कमज़ोरियों को कम करने तथा प्रगति को बनाए रखने के लिये मानव सुरक्षा हेतु निवेश आवश्यक है।
  • मानव विकास को वास्तव में टिकाऊ बनाने के लिये दुनिया को व्यापार के सामान्य दृष्टिकोण से हटकर सतत् उत्पादन एवं उपभोग के तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है।

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Monday, June 10, 2019

SCO-Shanghai Cooperation Organisation (शंघाई सहयोग संगठन)

Ashok Pradhan     June 10, 2019     No comments

SCO क्या है?

  • SCO एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन है।
  • यह एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है, जिसका उद्देश्य संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना है।
  • इसकी स्थापना 15 जून, 2001 को शंघाई में हुई थी।
  • SCO चार्टर पर वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किए गए थे और यह वर्ष 2003 में लागू हआ।
  • यह चार्टर एक संवैधानिक दस्तावेज है जो संगठन के लक्ष्यों व सिद्धांतों आदि के साथ इसकी संरचना तथा प्रमुख गतिविधियों को रेखांकित करता है।
  • रूसी और चीनी SCO की आधिकारिक भाषाएँ हैं।

गठन

  • वर्ष 2001 में SCO की स्थापना से पूर्व कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस और ताजिकिस्तान ‘शंघाई-5’ नामक संगठन के सदस्य थे।
  • वर्ष 1996 में ‘शंघाई-5’ का गठन विसैन्यीकरण वार्ता की श्रृंखलाओं से हुआ था, जो चीन के साथ चार पूर्व सोवियत गणराज्यों ने सीमाओं पर स्थिरता के लिये किया था।
  • वर्ष 2001 में उज़्बेकिस्तान के संगठन में प्रवेश के बाद ‘शंघाई-5’ को SCO नाम दिया गया।
  • वर्ष 2017 में भारत तथा पाकिस्तान को इसके सदस्य का दर्जा मिला।

सदस्य देश

  • वर्तमान में इसके सदस्य देशों में कज़ाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज़्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान शामिल हैं।

पर्यवेक्षक देश

  • अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया SCO के पर्यवेक्षक देशों में शामिल हैं।

वार्ता साझेदार देश

  • अज़रबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका इस संगठन के वार्ता साझेदार देश हैं।

SCO के लक्ष्य

  • सदस्य देशों के मध्य परस्पर विश्वास तथा सद्भाव को मज़बूत करना।
  • राजनैतिक, व्यापार एवं अर्थव्यवस्था, अनुसंधान व प्रौद्योगिकी तथा संस्कृति में प्रभावी सहयोग को बढ़ावा देना।
  • शिक्षा, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण, इत्यादि में क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ाना।
  • संबंधित क्षेत्र में शांति, सुरक्षा व स्थिरता बनाए रखना तथा सुनिश्चिता प्रदान करना।
  • एक लोकतांत्रिक, निष्पक्ष एवं तर्कसंगत नव-अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करना।

SCO के मार्गदर्शक सिद्धांत

  • पारस्परिक विश्वास, आपसी लाभ, समानता, आपसी परामर्श, सांस्कृतिक विविधता के लिए सम्मान तथा सामान्य विकास की अवधारणा पर आधारित आंतरिक नीति।
  • गुटनिरपेक्षता, किसी तीसरे देश को लक्ष्य न करना तथा उदार नीति पर आधारित बाह्य नीति।

SCO की संरचना

  • राष्ट्र प्रमुखों की परिषद: यह SCO का सर्वोच्च निकाय है जो अन्य राष्ट्रों एवं अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ अपनी आंतरिक गतिविधियों के माध्यम से तथा बातचीत कर अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर विचार करती है।
  • शासन प्रमुखों की परिषद: SCO के अंतर्गत आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों पर वार्ता कर निर्णय लेती है तथा संगठन के बजट को मंज़ूरी देती है।
  • विदेश मंत्रियों की परिषद: यह दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों से संबंधित मुद्दों पर विचार करती है।
  • क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS.): आतंकवाद, अलगाववाद, पृथकतावाद, उग्रवाद तथा चरमपंथ से निपटने के मामले देखता है।
  • शंघाई सहयोग संगठन सचिवालय: यह सूचनात्मक, विश्लेषणात्मक तथा संगठनात्मक सहायता प्रदान करने हेतु बीजिंग में अवस्थित है।

SCO की प्रमुख गतिविधियाँ

  • प्रारंभ में SCO ने मध्य एशिया में आतंकवाद, अलगाववाद तथा उग्रवाद को रोकने हेतु परस्पर अंतर-क्षेत्रीय प्रयासों पर ध्यान केंद्रित किया।
  • वर्ष 2006 में, वैश्विक वित्त पोषण के स्रोत के रूप में अंतर्राष्ट्रीय मादक पदार्थों की तस्करी को शामिल करने हेतु संगठन की कार्यसूची को विस्तार दिया गया।
  • वर्ष 2008 में SCO ने अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के लिए सक्रिय रूप से भाग लिया।
  • लगभग इसी समय SCO ने विभिन्न प्रकार की आर्थिक गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू किया।
  • इससे पहले वर्ष 2003 में अपने भौगोलिक क्षेत्र के भीतर मुक्त व्यापार क्षेत्र की स्थापना हेतु SCO सदस्य देशों ने बहुपक्षीय व्यापार एवं आर्थिक सहयोग हेतु 20 वर्ष के कार्यक्रम पर हस्ताक्षर किए।

SCO की विशेषताएँ

  • SCO में वैश्विक जनसंख्या का 40%, वैश्विक GDP का लगभग 20% तथा विश्व के कुल भू-भाग का 22% शामिल है।
  • अपने भौगोलिक महत्त्व के चलते SCO एशियाई क्षेत्र में रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करता है।
  • अपनी इस विशेषता के कारण SCO मध्य एशिया को नियंत्रित करने तथा क्षेत्र में अमेरिकी प्रभाव को सीमित करने में सक्षम है।
  • SCO को उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (NATO) के समकक्ष के रूप में भी जाना जाता है।

SCO के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ

  • SCO की सुरक्षा चुनौतियों में आतंकवाद, उग्रवाद तथा अलगाववाद का मुकाबला करना; मादक पदार्थों तथा हथियारों की तस्करी को रोकना एवं अवैध आप्रवासन की रोकथाम करना इत्यादि शामिल हैं।
  • भौगोलिक रूप से निकटता होते हुए भी संगठन के सदस्यों के इतिहास, पृष्ठभूमि, भाषा, राष्ट्रीय हितों एवं सरकार, संपन्नता व संस्कृति के रूप में समृद्ध विविधता SCO के निर्णयों लेने की प्रक्रिया को चुनौतीपूर्ण बनाते है।

भारत के लिये SCO का महत्त्व

  • SCO को इस समय दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्रीय संगठन माना जाता है और इसमें चीन तथा रूस के बाद भारत तीसरा सबसे बड़ा देश है। इस संगठन में शामिल होने से भारत का अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व बढ़ा है।
  • भारतीय हितों की जो चुनौतियाँ हैं, चाहे वे आतंकवाद से जुड़ी हों, ऊर्जा की आपूर्ति हो या प्रवासियों का मुद्दा...ये सभी मुद्दे भारत और SCO दोनों के लिए अहम हैं और ऐसे में भारत के इस संगठन से जुड़ने से दोनों को परस्पर लाभ होगा।
  • SCO की सदस्यता मिलने के साथ ही अब भारत को एक बड़ा वैश्विक मंच मिल गया है। SCO यूरेशिया का एक ऐसा राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन है जिसका केंद्र मध्य एशिया और इसका पड़ोस है। ऐसे में इस संगठन की सदस्यता भारत के लिए कई मौके उपलब्ध करवाने वाली साबित हो सकती है।
  • चूँकि चीन SCO के माध्यम से क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों को पूरा करना चाहता है तो भारत भी इस स्थिति का लाभ उठाते हुए पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए चीन का सहयोग मांग सकता है, जैसा उसने हाल ही में अज़हर मसूद के मामले में किया और उसे अंतर्राष्ट्रीय आतंकी घोषित करवाया।
  • मध्य एशिया के देश जो प्राकृतिक गैस-तेल भंडार के मामले में धनी हैं, उनके साथ संबंधों को विस्तार देने में SCO भारत के लिए एक अच्छा ज़रिया बन सकता सकता है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और रूस व यूरोप तक व्यापार के ज़मीनी मार्ग खोलने के लिये इस मंच का इस्तेमाल करना चाहिये। 
  • भारत के लिये SCO की सदस्यता क्षेत्रीय एकीकरण, सीमाओं के पार संपर्क एवं स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता प्रदान कर सकती है।
  • SCO की क्षेत्रीय आतंकवाद-रोधी संरचना (RATS) के माध्यम से भारत गुप्त सूचनाएँ साझा करने, कानून प्रवर्तन और सर्वोत्तम प्रथाओं अथवा प्रौद्योगिकियों के विकास की दिशा में कार्य कर अपनी आतंकवाद विरोधी क्षमताओं में सुधार कर सकता है।
  • SCO के माध्यम से भारत मादक पदार्थों की तस्करी तथा छोटे हथियारों के प्रसार पर भी रोक लगाने का प्रयास कर सकता है।
  • आतंकवाद एवं कट्टरतावाद की सामान्य चुनौतियों को लेकर साझा प्रयास किये जा सकते हैं।
  • लंबे समय से अटकी हुई तापी (तुर्कमेनिस्तान-अफग़ानिस्तान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन जैसी परियोजनाओं पर काम शुरू करने में तथा IPI (ईरान-पाकिस्तान-भारत) पाइपलाइन को SCO के माध्यम से सहायता मिल सकती है।
  • भारत तथा मध्य एशिया के बीच व्यापार में आने वाली प्रमुख बाधाओं को दूर करने के लिये SCO सहायता कर सकता है, क्योंकि यह मध्य एशिया के लिए एक वैकल्पिक मार्ग के रूप में कार्य करता है।
  • SCO के माध्यम से सदस्य देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार करते हुए भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ सूचना प्रौद्योगिकी, दूरसंचार, बैंकिंग, वित्तीय तथा फार्मा उद्योगों हेतु एक विशाल बाज़ार मिल सकता है।
  • सावधानी से इस मंच का इस्तेमाल करते हुए भारत अपने इस विस्तारित पड़ोस (मध्य एशिया) में सक्रिय भूमिका निभा सकता है तथा साथ ही यूरेशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने का प्रयास भी कर सकता है।
  • सबसे बड़ी बात यह कि SCO भारत को अपने पुराने तथा विश्वसनीय मित्र रूस के साथ अपने चीन और पाकिस्तान जैसे चिर प्रतिद्वंद्वियों के साथ जुड़ने के लिए एक साझा मंच प्रदान करता है।

SCO में भारत के लिये चुनौतियाँ

पाकिस्तान भी SCO का सदस्य है और वह भारत की राह में दुश्वारियाँ तथा कठिनाइयों का कारण लगातार बनता है। ऐसे में भारत की स्वयं को मुखर तौर पर पेश करने की क्षमता प्रभावित होगी। इसके अलावा चीन एवं रूस के SCO के सह-संस्थापक होने और इसमें इन देशों की प्रभावी भूमिका होने की वज़ह से भारत को अपनी स्थिति मज़बूत बनाने में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही SCO का रुख परंपरागत रूप से पश्चिम विरोधी है, जिसकी वज़ह से भारत को पश्चिम देशों के साथ अपनी बढ़ती साझेदारी में संतुलन कायम करना होगा।

SCO के लिये नए मौके और चुनौतियाँ

2001 में अपनी स्थापना के बाद से 2017 में भारत और पाकिस्तान को SCO में शामिल करना इसका पहला विस्तार था। दरअसल, SCO एक नए तरह का क्षेत्रीय संगठन है जो शीतयुद्ध के बाद के काल में सुरक्षा, अर्थशास्त्र, राजनीति और संस्कृति जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देता है। शंघाई विचारधारा द्वारा मार्गदर्शित “आपसी विश्वास, आपसी लाभ, समानता, परामर्श, विभिन्न सभ्यताओं के लिए सम्मान और साझा विकास” की तलाश में SCO एक आदर्श का पालन करता है। इसके तहत खुलेपन को बढ़ावा देते हुए न तो किसी प्रकार संधिकी जाती है और न ही किसी देश या क्षेत्र के अंदरूनी मामलों में दखलंदाज़ी की जाती है। यही कारण है कि इसने सदस्य देशों के बीच एक नए तरह का संबंध और क्षेत्रीय सहयोग स्थापित किया है। इसमें स्थायी शांति और मैत्री, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिये सुरक्षा की नई संकल्पनाएँ पेश करना, सहयोग और कूटनीति समाहित है, जो पुरानी हो चुकी शीतयुद्ध की मानसकिता के बिलकुल विपरीत है तथा अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों और प्रथाओं को समृद्ध बनाने वाली है।
SCO का सदस्य बन जाने से यदि भारत और चीन के आपसी तालमेल में बढ़ोतरी होती है तो अमेरिका के वैश्विक दबदबे का सामना करने के लिये यह दोनों ही देशों के लिए लाभकारी सिद्ध होगा तथा एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करना अमेरिका के लिये आसान नहीं होगा।

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