Wednesday, July 3, 2019

लोकपाल और लोकायुक्त (Lokpal and Lokayukta)

Ashok Pradhan     July 03, 2019     1 comment

क्या हैं लोकपाल और लोकायुक्त?

  • लोकपाल तथा लोकायुक्त अधिनियम, 2013 ने संघ (केंद्र) के लिये लोकपाल और राज्यों के लिये लोकायुक्त संस्था की व्यवस्था की।
  • ये संस्थाएँ बिना किसी संवैधानिक दर्जे वाले वैधानिक निकाय हैं।
  • ये Ombudsman का कार्य करते हैं और कुछ निश्चित श्रेणी के सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जाँच करते हैं।

हमें ऐसी संस्थाओं की आवश्यकता क्यों है?

  • खराब प्रशासन दीमक की तरह है जो धीरे-धीरे किसी राष्ट्र की नींव को खोखला करता है तथा प्रशासन को अपने कार्य पूर्ण करने में बाधा डालता है। भ्रष्टाचार इस समस्या की जड़ है।
  • अधिकतर भ्रष्टाचार निरोधी संस्थाएँ पूर्णतः स्वतंत्र नहीं हैं। यहाँ तक कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी CBI को ‘पिंजरे का तोता’ और ‘अपने मालिक की आवाज़’ बताया है।
  • इनमें से कई एजेंसियाँ नाममात्र शक्तियों वाले केवल परामर्शी निकाय हैं और उनकी सलाह का शायद ही अनुसरण किया जाता है।
  • इसके अलावा आंतरिक पारदर्शिता और जवाबदेही की भी समस्या है, क्योंकि इन एजेंसियों पर नज़र रखने के लिये अलग से कोई प्रभावी व्यवस्था नहीं है।
  • इस संदर्भ में, एक स्वतंत्र लोकपाल संस्था भारतीय राजनीति के इतिहास में मील का पत्थर कहा जा सकता है, जिसने कभी समाप्त न होने वाले भ्रष्टाचार के खतरे का एक समाधान प्रस्तुत किया है।

पृष्ठभूमि

  • लोकपाल यानी Ombudsman संस्था की आधिकारिक शुरुआत वर्ष 1809 में स्वीडन में हुई।
  • 20वीं शताब्दी में एक संस्था के रूप में ओम्बुड्समैन का विकास हुआ और यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तेज़ी से आगे बढ़ा।
  • 1962 में न्यूजीलैंड और नॉर्वे ने यह प्रणाली अपनाई और ओम्बुड्समैन के विचार का प्रसार करने में यह बेहद अहम सिद्ध हुआ।
  • वर्ष 1967 में 1वर्ष 961 के व्हाट्ट रिपोर्ट (Whyatt Report) की सिफारिश पर ग्रेट ब्रिटेन ने ओम्बुड्समैन संस्था को अपनाया तथा लोकतांत्रिक विश्व में इसे अपनाने वाला पहला बड़ा देश बन गया।
  • गुयाना प्रथम विकासशील देश था, जिसने वर्ष 1966 में ओम्बुड्समैन का विचार अपनाया। इसके बाद मॉरीशस, सिंगापुर, मलेशिया के साथ भारत ने भी इसे अपनाया।
  • भारत में संवैधानिक ओम्बुड्समैन का विचार सर्वप्रथम वर्ष 1960 के दशक की शुरुआत में कानून मंत्री अशोक कुमार सेन ने संसद में प्रस्तुत किया था।
  • लोकपाल एवं लोकायुक्त शब्द प्रख्यात विधिवेत्ता डॉ. एल.एम. सिंघवी ने पेश किया।
  • वर्ष 1966 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने सरकारी अधिधिकारियों (संसद सदस्य भी शामिल) के विरुद्ध शिकायतों को देखने के लिये केंद्रीय तथा राज्य स्तर पर दो स्वतंत्र प्राधिकारियों की स्थापना की सिफारिश की थी।
  • वर्ष 1968 में लोकसभा में लोकपाल विधेयक पारित हुआ, लेकिन लोकसभा के विघटन के साथ ही यह कालातीत हो गया और इसके बाद से यह लोकसभा में कई बार कालातीत हुआ।
  • वर्ष 2011 तक विधेयक पारित करने के लिये आठ प्रयास किये गए, लेकिन सभी में असफलता ही मिली।
  • वर्ष 2002 में एम. एन. वेंकटचलैया की अध्यक्षता में संविधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा के लिये गठित आयोग ने लोकपाल व लोकायुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश करते हुए प्रधानमंत्री को इसके दायरे से बाहर रखने की बात कही।
  • वर्ष 2005 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग ने सिफारिश की कि लोकपाल का पद जल्द-से-जल्द स्थापित किया जाय।
  • वर्ष 2011 में सरकार ने प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों का एक समूह भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने हेतु सुझाव देने तथा लोकपाल विधेयक के प्रस्ताव का परीक्षण करने के लिये गठित किया।
  • अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में ‘भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारत आंदोलन’ ने केंद्र में तत्कालीन UPA सरकार पर दवाब बनाया और इसके परिणामस्वरूप संसद के दोनों सदनों में लोकपाल व लोकायुक्त विधेयक, 2013 पारित हुआ।\
  • 1 जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति ने इसे अपनी सम्मति दे दी और 16 जनवरी, 2014 को यह लागू हो गया।

लोकपाल एवं लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक, 2016

  • लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 को संशोधित करने के लिये यह विधेयक संसद ने जुलाई 2016 में पारित किया।
  • इसके द्वारा यह निर्धारित किया गया कि विपक्ष के मान्यता प्राप्त नेता के अभाव में लोकसभा में सबसे बड़े एकल विरोधी दल का नेता चयन समिति का सदस्य होगा।
  • इसके द्वारा वर्ष 2013 के अधिनियम की धारा 44 में भी संशोधन किया गया जिसमें प्रावधान है कि सरकारी सेवा में आने के 30 दिनों के भीतर लोकसेवक को अपनी सम्पत्तियों और दायित्वों का विवरण प्रस्तुत करना होगा।
  • संशोधन विधेयं के द्वारा 30 दिन की समय-सीमा समाप्त कर दी गई, अब लोकसेवक अपनी सम्पत्तियों और दायित्वों की घोषणा सरकार द्वारा निर्धारित रूप में एवं तरीके से करेंगे।
  • यह ट्रस्टियों और बोर्ड के सदस्यों को भी अपनी तथा पति/पत्नी की परिसंपत्तियों की घोषणा करने के लिये दिये गए समय में भी बढ़ोतरी करता है, उन मामलों में जहां वे एक करोड़ रुपये से अधिक सरकारी या 10 लाख रुपये से अधिक विदेशी धन प्राप्त करते हों।

लोकपाल की संरचना

  • लोकपाल एक बहु-सदस्यीय निकाय है जिसका गठन एक चेयरपर्सन और अधिकतम 8 सदस्यों से हुआ है।
  • लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या तो भारत का पूर्व मुख्य न्यायाधीश या सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या असंदिग्ध सत्यनिष्ठा व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति होना चाहिये, जिसके पास भ्रष्टाचार निरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, वित्त, बीमा और बैंकिंग, कानून व प्रबंधन में न्यूनतम 25 वर्षों का विशिष्ट ज्ञान एवं अनुभव हो।
  • आठ अधिकतम सदस्यों में से आधे न्यायिक सदस्य तथा न्यूनतम 50 प्रतिशत सदस्य अनु. जाति/अनु. जनजाति/अन्य पिछड़ा वर्ग/अल्पसंख्यक और महिला श्रेणी से होने चाहिये।
  • लोकपाल संस्था का न्यायिक सदस्य या तो सर्वोच्च न्यायालय का पूर्व न्यायाधीश या किसी उच्च न्यायालय का पूर्व मुख्य न्यायाधीश होना चाहिये।
  • गैर-न्यायिक सदस्य असंदिग्ध सत्यनिष्ठा व प्रकांड योग्यता का प्रख्यात व्यक्ति, जिसके पास भ्रष्टाचार निरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, वित्त, बीमा और बैंकिंग, कानून व प्रबंधन में न्यूनतम 25 वर्षों का विशिष्ट ज्ञान एवं अनुभव हो।
  • लोकपाल संस्था के चेयरपर्सन और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक है।
  • सदस्यों की नियुक्ति चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
  • चयन समिति प्रधानमंत्री जो कि चेयरपर्सन होता है, लोकसभा अध्यक्ष, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के मुख्य न्यायाधीश या उसके द्वारा नामित कोई न्यायाधीश और एक प्रख्यात न्यायविद से मिलकर गठित होती है।
  • लोकपाल तथा सदस्यों के चुनाव के लिये चयन समिति कम-से-कम आठ व्यक्तियों का एक सर्च पैनल (खोजबीन समिति) गठित करती है।

लोकपाल खोजबीन समिति

  • लोकपाल अधिनियम, 2013 के अधीन कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग उन अभ्यर्थियों की एक सूची बनाएगा जो लोकपाल संस्था का चेयरपर्सन या सदस्य बनाने के इच्छुक हों।
  • इसके बाद यह सूची उस प्रस्तावित आठ सदस्यीय खोजबीन समिति के पास जाएगी जो नामों को शॉर्टलिस्ट करेगी और प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में गठित चयन समिति के समक्ष प्रस्तुत करेगी।
  • चयन समिति खोजबीन समिति द्वारा सुझाए गए नामों में से नाम चुन भी सकती है और नहीं भी चुन सकती।
  • सितंबर, 2018 में सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में एक खोजबीन समिति गठित की थी।
  • 2013 का अधिनियम यह भी प्रावधान करता है कि सभी राज्य सरकारें इस अधिनियम के लागू होने के एक साल के अंदर लोकायुक्त का पद स्थापित करें।

लोकपाल का क्षेत्राधिकार एवं शक्तियाँ

  • लोकपाल के क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, संसद सदस्य, समूह ए, बी, सी और डी अधिकारी तथा केंद्र सरकार के अधिकारी शामिल हैं।
  • लोकपाल का प्रधानमंत्री पर क्षेत्राधिकार केवल भ्रष्टाचार के उन आरोपों तक सीमित रहेगा जो कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, सुरक्षा, लोक व्यवस्था, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष से संबद्ध न हों।
  • संसद में कही गई किसी बात या दिये गए वोट के मामले में मंत्रियों या सांसदों पर लोकपाल का क्षेत्राधिकार नहीं होगा।
  • इसके क्षेत्राधिकार में वह व्यक्ति भी शामिल है जो ऐसे किसी निकाय/समिति का प्रभारी (निदेशक/ प्रबंधक/सचिव) है या रहा है जो केंद्रीय कानून द्वारा स्थापित हो या किसी अन्य संस्था का जो केंद्रीय सरकार द्वारा वित्तपोषित/नियंत्रित हो और कोई अन्य व्यक्ति जिसने घूस देने या लेने में सहयोग दिया हो।
  • लोकपाल अधिनियम यह आदेश देता है कि सभी लोकसेवक अपनी तथा अपने आश्रितों की परिसंपत्तियों व देयताओं को प्रस्तुत करें।
  • इसके पास CBI की जाँच करने तथा उसे निर्देश देने का अधिकार है।
  • यदि लोकपाल ने कोई मामला CBI को सौंपा है तो बिना लोकपाल की अनुमति के ऐसे मामले के जाँच अधिकारी को स्थानांतरित नहीं किया जा सकता।
  • लोकपाल की जाँच इकाई को एक सिविल न्यायालय के समान शक्तियाँ दी गईं हैं।
  • विशेष परिस्थितियों में लोकपाल को उन परिसंपत्तियों, आमदनी, प्राप्तियों और लाभों को जब्त करने का अधिकार है जो भ्रष्टाचार के साधनों से पैदा या प्राप्त की गई हैं।
  • लोकपाल को ऐसे लोकसेवक के स्थानांतरण या निलंबन की सिफारिश करने का अधिकार है जो भ्रष्टाचार के आरोपों से जुड़ा है।
  • लोकपाल को प्राथमिक जाँच के दौरान रिकार्ड को नष्ट करने से रोकने का निर्देश देने का अधिकार है।

सीमाएँ

  • लोकपाल संस्था भारत की प्रशासनिक संरचना में भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में बेहद ज़रूरी परिवर्तन बदलाव ला सकती है, लेकिन इसके साथ ही साथ उसमें कुछ खामियाँ और कमियाँ भी हैं जिन्हें दुरुस्त किये जाने की आवश्यकता है।
  • संसद द्वारा लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013 पारित होने के पाँच वर्ष बाद किसी तरह से लोकपाल की नियुक्ति हो पाई, जो राजनीतिक इच्छाशक्ति में कमी का संकेतक है।
  • लोकपाल अधिनियम में राज्यों से भी इसके लागू होने के एक साल के भीतर लोकायुक्त नियुक्त करने के लिये कहा गया है, परंतु केवल 16 राज्यों ने लोकायुक्त की स्थापना की।
  • लोकपाल राजनीतिक प्रभाव से मुक्त नहीं है क्योंकि स्वयं नियुक्ति समिति राजनीतिक दलों के सदस्यों से गठित है।
  • लोकपाल की नियुक्ति में एक प्रकार से चालाकी की जा सकती है क्यों कि यह निर्धारित करने का कोई मानदंड नहीं है कि कौन एक ‘प्रख्यात न्यायविद’ या ‘सत्यनिष्ठा का व्यक्ति’ है।
  • वर्ष 2013 का अधिनियम व्हिसल ब्लोअर को कोई ठोस सुरक्षा नहीं देता। यदि आरोपी व्यक्ति निर्दोष पाया जाए तो शिकायतकर्त्ता के विरुद्ध जाँच शुरू करने का प्रावधान लोगों को शिकायत करने से हतोत्साहित ही करेगा।
  • इसकी सबसे बड़ी कमी न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखना है।
  • लोकपाल को कोई संवैधानिक आधार नहीं दिया गया है और लोकपाल के विरुद्ध अपील का कोई पर्याप्त प्रावधान नहीं है।
  • लोकायुक्त की नियुक्ति से संबंधित विशिष्ट विवरण पूरी तरह से राज्यों पर छोड़ दिया गया है।
  • कुछ सीमा तक CBI की कार्यात्मक स्वतंत्रता की आवश्यकता को इसके निदेशक की नियुक्ति में इस अधिनियम में संशोधन करके पूरा किया गया है।
  • भ्रष्टाचार के विरुद्ध शिकायत उस तिथि से सात साल के बाद पंजीकृत नहीं की जा सकती जिस तिथि को ऐसी शिकायत में कथित अपराध किये जाने का उल्लेख हो।

सुझाव

  • भ्रष्टाचार की समस्या से निपटने के लिये कार्यात्मक स्वायत्तता तथा मानव शक्ति की उपलब्धता दोनों मामलों में ओम्बुड्समैन (लोकपाल) संस्था को मजबूत किया जाए।
  • स्वयं को सार्वजनिक जाँच का विषय बनाने के लिये इच्छुक एक अच्छे नेतृत्व के साथ-साथ अधिक पारदर्शिता, अधिक सूचना के अधिकार तथा नागरिकों और नागरिक समूहों के सशक्तीकरण की आवश्यकता है।
  • लोकपाल की नियुक्ति ही स्वयं में पर्याप्त नहीं है। सरकार को उन मुद्दों को भी हल करना चाहिये जिनके आधार पर लोग लोकपाल की मांग करते हैं। मात्र जाँच एजेंसियों की संख्या में बढ़ोतरी करना सरकार के आकार में तो वृद्धि करेगा, परंतु यह आवश्यक नहीं है कि इससे प्रशासनिक कार्यों में भी सुधार आए।
  • इसके अलावा लोकपाल और लोकायुक्त उनसे वित्तीय, प्रशासनिक और कानूनी रूप से अवश्य स्वतंत्र होने चाहिये, जिनकी जाँच एवं जिन्हें दंडित करने के लिये उन्हें कहा जाता है।
  • लोकपाल और लोकायुक्त नियुक्तियाँ पारदर्शिता से होनी चाहिये ताकि गलत प्रकार के लोगों के पदस्थापित होने की संभावना को कम किया जा सके।
  • किसी एक संस्था या प्राधिकारी में अत्यधिक शक्ति के संचयन को टालने के लिये समुचित जवाबदेही व्यवस्था के साथ विकेंद्रीकृत संस्थानों के बाहुल्य की आवश्यकता है।

वर्तमान लोकपाल संस्था की स्थिति

प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने इसी वर्ष मार्च के मध्य में सरकार का कार्यकाल समाप्त होने से कुछ ही दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश पिनाकी चंद्र घोष का चयन देश के पहले लोकपाल के लिये किया, जिसे राष्ट्रपति ने विधिवत मंज़ूरी दे दी। लोकपाल में अध्यक्ष के अलावा चार न्यायिक और चार गैर-न्यायिक सदस्य भी नियुक्त किये गए हैं। न्यायिक सदस्यों में जस्टिस दिलीप बी. भोसले, जस्टिस प्रदीप कुमार मोहंती, जस्टिस अभिलाषा कुमारी और जस्टिस अजय कुमार त्रिपाठी हैं। इनके साथ SSB की पूर्व प्रमुख अर्चना रामसुंदरम और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव दिनेश कुमार जैन तथा महेन्द्र सिंह और इंद्रजीत प्रसाद गौतम को गैर-न्यायिक सदस्य बनाया गया है। इसके साथ ही देश में लोकपाल नाम की संस्था अस्तित्व में आ गई है।

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अभिरूचि (Aptitude)

Ashok Pradhan     July 03, 2019     No comments

क्या है?

अभिरूचि किसी क्षेत्र विशेष से संबंधित कौशल को सीखने की अथवा ज्ञानार्जन की जन्मजात या अर्जित क्षमता है।
आमतौर पर अभिरूचियाँ जन्मजात होती हैं लेकिन वे अर्जित भी हो सकती हैं।

सिविल सेवा के लिये अभिरूचि (Aptitude for Civil Services)

एक अच्छे सिविल सेवक में निम्नलिखित अभिरूचियाँ होनी चाहिये:
(i) भाषा पर सूक्ष्म पकड़ ताकि निर्णयन प्रक्रिया के समय नोटिंग और ड्राफ्टिंग में कोई समस्या ने हो।
(ii) उच्च तार्किक क्षमता।
(iii) निर्णयन व समस्या समाधान की सटीक क्षमता।
(iv) गणित तथा आँकड़ों को समझने की क्षमता।
(v) संचार तथा संप्रेषण का कौशल, जिसके माध्यम से समाज को उचित नेतृत्व प्रदान किया जा सके।
(vi) अपने आस-पास तथा विश्व की घटनाओं और समस्याओं को जानने तथा समझने की सामान्य आदत।

अभिरूचि व बुद्धिमत्ता (Aptitude and Intelligence)

सामान्यत: बुद्धिमत्ता के अंतर्गत हम व्यक्ति की सामान्य बौद्धिक क्षमताओं को मापते हैं जबकि अभिरूचि का संबंध एक क्षेत्र विशेष से होता है।
यह संभव है कि सामान्य बुद्धिमत्ता का उँचा स्तर होने के बाद भी किसी क्षेत्र विशेष के अभिरूचि परीक्षण में कोई व्यक्ति अच्छा निष्पादन न कर सके।

अभिरूचि व रूचि (Aptitude and Interest)

किसी व्यक्ति में किसी क्षेत्र के प्रति अभिरूचि का स्तर अधिक हो पर रूचि बिल्कुल न हो तो उस व्यक्ति की सफलता संदिग्ध होगी। जैसे-किसी व्यक्ति में शतरंज खेलने के लिये आवश्यक उँची तार्किक क्षमता है किंतु उसे शतरंज खेलना पंसद नहीं है।
जिस व्यक्ति में उच्च रूचि तथा उच्च अभिरूचि दोनों की एक साथ उपस्थिति का संयोग मिलता है वे अपने क्षेत्र में अतिशय सफल होते हैं, जैसे-सचिन तेंदुलकर, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आदि।

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संसदीय समितियाँ (Parliamentary committees)

Ashok Pradhan     July 03, 2019     No comments

मॉटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधारों के आधार पर 1921 से संसदीय समितियाँ अस्तित्व में आई थीं, जिन्हें निरंतर व्यापक रूप से प्रतिष्ठापित किया जाता रहा है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-105 में भी इन समितियों का ज़िक्र मिलता है।
अपनी प्रकृति के आधार पर संसदीय समितियाँ दो प्रकार की होती हैं-
1. स्थायी समिति: ये स्थायी एवं नियमित समिति होती है, जिसका गठन संसद के अधिनियम के उपबंधों अथवा लोकसभा के कार्य-संचालन नियम के अनुसरण में किया जाता है। इनका कार्य अनवरत प्रकृति का होता है। इसमें निम्नलिखित समितियाँ शामिल हैं-
  • लोक लेखा समिति
  • प्राक्कलन समिति
  • सार्वजनिक उपक्रम समिति
  • एस.सी. व एस.टी. समुदाय के कल्याण संबंधी समिति
  • कार्यमंत्रणा समिति
  • विशेषाधिकार समिति
  • विभागीय समिति
2. अस्थायी या तदर्थ समिति: प्रयोजन विशेष के लिये तदर्थ समिति का निर्माण किया जाता है और कार्य पूरा होने के पश्चात् इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। यह भी दो प्रकार की होती हैं-
  • जाँच समितियाँ: किसी तात्कालिक घटना की जाँच के लिये।
  • सलाहकार समितियाँ: किसी विधेयक इत्यादि पर विचार करने के लिये।
  • विभागीय स्थायी समितियाँ: ऐसी समितियों की कुल संख्या 24 है। प्रत्येक विभागीय समिति में अधिकतम 31 सदस्य होते हैं, जिसमें से 21 सदस्यों का मनोनयन स्पीकर द्वारा एवं 10 सदस्यों का मनोनयन राज्यसभा के सभापति द्वारा किया जा सकता है।
  • कुल 24 समितियों में से 16 लोकसभा के अंतर्गत व 8 समितियाँ राज्यसभा के अंतर्गत कार्य करती हैं।
  • इन समितियों का मुख्य कार्य अनुदान संबंधी मांगों की जाँच करना एवं उन मांगों के संबंध में अपनी रिपोर्ट सौंपना होता है।

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भारत की दार्शनिक प्रवृत्तियाँ (Philosophical trends of India)

Ashok Pradhan     July 03, 2019     No comments

भारत में पहली शताब्दी से पूर्व ही 6 आस्तिक व 3 नास्तिक दार्शनिक मतों का प्रतिपादन हो चुका था।

प्राचीन भौतिक दर्शन

प्रणेता

उच्छेदवादअजित केश कम्बलिन
अक्रियावादीपूरण कश्यप
नित्यवादीपकुद कच्चायन
नियतिवादीमक्खलि गोशाल
अनिश्चयवादीसंजय वेलट्पुत्त
  • आस्तिक मत को षडांग दर्शन सिद्धांत कहते हैं जिसमें सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत शामिल हैं।
  • नास्तिक मत में बौद्ध, जैन तथा चार्वाक प्रमुख हैं, इसे भौतिकतावादी दर्शन भी कहते हैं।

सांख्य

  • कपिल मुनि द्वारा प्रवर्तित इस दर्शन को भारत का प्राचीनतम दर्शन माना जाता है।
  • इनकी रचना है- तत्त्व समास।
  • बाद के आचार्यों में ईश्वरकृष्ण प्रमुख हैं और उनका ग्रंथ ‘सांख्यकारिका’ प्रसिद्ध है।
  • इसमें सत्कार्यवाद, विकासवाद तथा भौतिकता के साथ-साथ संख्या आधारित आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता प्रसिद्ध है।

योग दर्शन

  • इसके प्रणेता पतंजलि हैं जिन्होंने ‘योगसूत्र’ नामक ग्रंथ की रचना की।
  • ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों का निग्रह, योगमार्ग का मूलाधार है।
  • भारत के इस दर्शन की महत्ता ऐसी रही कि वर्तमान दौर में यू.एन.ओ. द्वारा 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया है।

न्याय

  • न्याय-दर्शन के प्रवर्तक महर्षि गौतम माने जाते हैं, जिनका ग्रंथ ‘न्यायसूत्र’ इस दार्शनिक प्रवृत्ति का पहला ग्रंथ माना जाता है।
  • 12वीं सदी में न्याय दर्शन को नया रूप गंगेश उपाध्याय ने अपने ग्रंथ ‘तत्त्व चिंतामणि’ में दिया।
  • इस दर्शन में तर्क और प्रमाण के प्रयोग का महत्त्व प्रतिपादित हुआ है।

वैशेषिक

  • इस दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद हैं जिन्होंने ‘कणाद-सूत्र’ रचा।
  • इन्होंने द्रव्य अर्थात् भौतिक तत्त्वों का विवेचन करते हुए परमाणुवाद की स्थापना की।

मीमांसा

  • कर्मकांड, यज्ञ आधारित इस दर्शन के प्रतिपादन में आचार्य जैमिनी का नाम अग्रगण्य है।
  • मीमांसा के अनुसार वेदों में कही गई बातें सदा सत्य हैं।
  • यह पुरोहितवाद, बाह्य आडंबर को बढ़ावा देने वाला दर्शन है।

वेदांत

  • ईसा-पूर्व दूसरी सदी में संकलित बादरायण का ब्रह्मसूत्र इस दर्शन का मूल ग्रंथ है। इसे उत्तर मीमांसा भी कहते हैं।
  • बाद में इस पर दो प्रख्यात भाष्य शंकराचार्य (9वीं सदी) और रामानुज (12वीं सदी) द्वारा लिखे गए।

वेदांत आधारित अन्य दार्शनिक मत

भाष्यकारवादभाष्य
शंकराचार्य (8–9वीं सदी)अद्वैतवादशंकरभाष्य
रामानुजाचार्य (11–12वीं सदी)विशिष्टाद्वैतवादश्रीभाष्य
मध्वाचार्य (13–14वीं सदी)द्वैतवादपूर्णप्रज्ञभाष्य
वल्लभाचार्य (15–16वीं सदी)शुद्धाद्वैतवादअणुभाष्य
निम्बार्काचार्य (13वीं सदी)भेदाभेदवादवेदांत परिजात सौरभ
  • ज्ञान आधारित इस दर्शन की पृष्ठभूमि में उपनिषद् था और ब्राह्मण-हिन्दू धर्म का अधिकांश दार्शनिक मतवाद इसी वेदांत दर्शन से प्रभावित-प्रेरित रहा है।

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Sunday, June 16, 2019

मानव विकास सूचकांक (HDI) 2018

Ashok Pradhan     June 16, 2019     No comments
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री महबूब उल हक द्वारा सृजित और 1990 में शुरू की गई अग्रणी अवधारणा, मानव विकास सूचकांक (Human Development Index-HDI) का अंतर्निहित सिद्धांत बहुत ही सरल है: राष्ट्रीय विकास को केवल प्रति व्यक्ति आय से नहीं, बल्कि स्वास्थ्य तथा शिक्षा के क्षेत्र में उपलब्धियों से भी मापा जाना चाहिये।
HDI तीन मूल आयामों में प्रत्येक देश की उपलब्धियों का समग्र पैमाना है:
  • प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय (GNI) द्वारा मापा जाने वाला जीवन स्तर।
  • जन्म के समय जीवन प्रत्याशा द्वारा मापा गया स्वास्थ्य।
  • वयस्क आबादी के बीच शिक्षा के वर्षों के हिसाब से शिक्षा का स्तर तथा बच्चों के लिये स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष।  
यह सूचकांक समय के साथ विकास के स्तर में आए बदलावों का अनुसरण करने तथा विभिन्न देशों के विकास स्तरों की तुलना को संभव बनाता है।
मानव प्रगति में पिछड़ने वाले समूहों की पहचान करने तथा मानव विकास के वितरण की निगरानी हेतु मानव विकास के अन्य आयामों की पहचान करने के लिये अतिरिक्त सूचकांक विकसित किये गए हैं।
2010 में कई मानव विकास आयामों में से गरीबी, असमानता तथा लैंगिक सशक्तीकरण की निगरानी के लिये तीन सूचकांक शुरू किये गए थे।
  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index-MPI),
  • असमानता-समायोजित मानव विकास सूचकांक (IHDI)
  • लैंगिक असमानता सूचकांक (GII)।
2014 में जेंडर डेवलपमेंट इंडेक्स (GDI) की शुरुआत की गई थी।
हालिया निष्कर्ष
  • सभी क्षेत्रों तथा मानव विकास समूहों में HDI दर में वृद्धि हो रही है लेकिन इन दरों में काफी भिन्नता देखी गई है।
  • दक्षिण एशिया 1990–2017 की दौरान 45.3 प्रतिशत की दर से सबसे तेज़ी से विकास करने वाला क्षेत्र था, इसके बाद पूर्वी एशिया एवं प्रशांत क्षेत्र तथा उप-सहारा अफ्रीका क्षेत्र का स्थान आता है जिनकी विकास दर इन्हीं वर्षों के दौरान क्रमशः 41.8 प्रतिशत एवं 34.9 प्रतिशत थी।
  • लेकिन पिछले एक दशक में लगभग सभी क्षेत्रों में HDI विकास की दर भी धीमी हुई है, इसका कारण 2008-2009 के वैश्विक खाद्य, वित्तीय तथा आर्थिक संकट को माना जाता है।
  • वैश्विक HDI रैंकिंग में शीर्ष पाँच देश नॉर्वे (0.953), स्विट्ज़रलैंड (0.944), ऑस्ट्रेलिया (0.939), आयरलैंड (0.938) और जर्मनी (0.936) हैं।
  • रैंकिंग में निचले में स्थान हासिल करने वाले देश- बुरुंडी (0.417), चाड (0.404), दक्षिण सूडान (0.388), मध्य अफ्रीकी गणराज्य (0.367) और नाइजर (0.354) हैं।
  • 2012 और 2017 के बीच सबसे अधिक वृद्धि आयरलैंड की रैंकिंग में हुई है, जो 13 स्थान ऊपर पहुँच गया है।
चुनौतियाँ
मानव विकास में असमानता- प्रगति के लिये गंभीर चुनौती
मानव विकास में असमानता का होना लैंगिक अंतराल, समूह की पहचान, आय में असमानता एवं स्थान के कारण शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, साख और प्राकृतिक संसाधनों तक पहुँच में असमान अवसर को दर्शाता है।
  • यह उग्रवाद को बढ़ावा दे सकता है तथा समावेशी एवं सतत् विकास के पक्ष को दुर्बल कर सकता है।
  • यह सामाजिक सामंजस्य तथा संस्थानों एवं नीतियों की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है।
  • आय में असमानता, शिक्षा एवं जीवन प्रत्याशा के बाद समग्र असमानता में सबसे अधिक योगदान देती है।
  • असमानता का लेखा-जोखा तैयार करते समय जब वैश्विक HDI का मान 0.728 से गिरकर 0.582 हो जाता है, तो यह उच्च मानव विकास श्रेणी से मध्यम मानव विकास श्रेणी तक की गिरावट को दर्शाता है।
  • महिलाओं (0.705) का औसत HDI मान पुरुषों (0.749) की तुलना में 5.9 प्रतिशत कम है।
  • कई देशों में अधिकांशतः असमानता का कारण महिलाओं की कम आय तथा शिक्षा प्राप्ति है। उल्लेखनीय है कि यह असमानता निम्न मानव विकास वाले देशों में व्यापक है जहाँ पुरुषों की तुलना में महिलाओं का HDI मान पुरुषों की तुलना में 13.8 प्रतिशत कम है।
  • उच्च मानव विकास वाले देशों में जीवन प्रत्याशा 79.5 वर्ष है जबकि निम्न मानव विकास वाले देशों में जीवन प्रत्याशा औसतन 60.8 वर्ष है।
मात्रा नहीं बल्कि गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाना चाहिये
  • मानव विकास में उपलब्धियों को न केवल मात्रा के संदर्भ में बल्कि गुणवत्ता के संदर्भ में भी व्यक्त किया जाना चाहिये, क्योंकि किसी निरपेक्ष संख्या में वृद्धि निश्चित रूप से गुणवत्ता में वृद्धि को संदर्भित नहीं करती है।
  • 1990 के दशक के बाद से स्कूल में औसत वर्षों की संख्या में भारी वृद्धि के बावजूद यह बेहतर क्षमताओं के रूप में बहुत कम मालूम पड़ता है। यह विषमता कम मानव विकास वाले देशों में तीक्ष्ण है।
पर्यावरणीय अवक्रमण (Environmental Degradation)
  • पर्यावरणीय अवक्रमण, चरम मौसमी घटनाओं के कारण भोजन एवं जल की आपूर्ति में कमी से लेकर आजीविका तथा जीवन की क्षति जैसे विकास की कई मामलों से जुड़ा हुआ है।
  • जलवायु परिवर्तन में उच्च HDI वाले देशों का ज्यादा बड़ा योगदान है।
HDI में भारत
  • भारत ने 2018 में HDI में 130वाँ स्थान प्राप्त कर 2017 की तुलना में एक स्थान की छलांग लगाई है। यहाँ जन्म के समय औसत जीवन प्रत्याशा 68.8 वर्ष है। 6,353 रुपए की सकल राष्ट्रीय आय (Gross National Income-GNI) के साथ यहाँ स्कूली शिक्षा में अपेक्षित वर्ष 6.4 वर्ष के औसत के साथ 12.3 वर्ष हैं।
  • 1990 में HDI की शुरुआत के समय से 2018 तक भारत का HDI मान 0.427 से 0.640 तक पहुँच गया है अर्थात् HDI मान में 50% का सकारात्मक परिवर्तन हुआ है।
  • वर्ष 2000 से 2010 के दशक में वार्षिक विकास की उच्चतम दर 1.64% थी।
असमानता समायोजित मानव विकास सूचकांक (Inequality adjusted Human Development Index-IHDI), में इसका मान 0.640 से घटकर 0.468 पर पहुँच गया है जो 26.8% की कमी को दर्शाता है। यहाँ असमानता की माप लैंगिक असमानता, शिक्षा, आय आदि के क्षेत्र में की जाती है।
लैंगिक विकास सूचकांक (Gender Development Index-GDI)
महिला तथा पुरुष HDI मानों का अनुपात-
  • HDI मानों में विचलन के आधार पर देशों को 5 समूहों में विभाजित किया गया है, समूह 1, 2.5% से कम के विचलन के साथ उच्चतम समानता को दर्शाता है जबकि समूह 5, 10% से अधिक के विचलन के साथ सबसे कम समानता को दर्शाता है।
  • भारत 0.841 GDI मान के साथ 5वें समूह में है, जो देश की महिलाओं में पाई जाने वाली स्पष्ट विषमता को दर्शाता है।
  • देश में महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 70.4 वर्ष है जो कि पुरुषों की जीवन प्रत्याशा 67.3 वर्ष की तुलना में अधिक है।
  • महिलाओं की स्कूली शिक्षा के लिये अपेक्षित वर्ष 12.9 वर्ष है, जो पुरुषों के 11.9 वर्ष कि तुलना में अधिक हैं, लेकिन स्कूली शिक्षा के औसत वर्ष में पुरुषों और महिलाओं के बीच बहुत अधिक विषमता है, जहाँ यह महिलाओं की औसत स्कूली शिक्षा लगभग तीन चौथाई घटकर 4.8 साल पर पहुँच गई हैं वही पुरुषों में यह एक तिहाई कम होकर 8.2 साल पर पहुँच गई।
  • अनुमानित प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय की माप महिलाओं एवं पुरुषों की मज़दूरी के अनुपात में की जाती है, सूचकांक आर्थिक रूप से सक्रिय महिला और पुरुष आबादी के सकल राष्ट्रीय आय में काफी असमानता को दर्शाता है। जहाँ महिलाओं की आय 2,722 रुपए से भी कम है वही पुरुषों की आय 9,889 रुपए है।
लैंगिक असमानता सूचकांक (Gender Inequality Index-GII)
  • यह तीन आयामों में महिलाओं और पुरुषों के बीच उपलब्धियों में असमानता को दर्शाने वाली एक समग्र माप है: प्रजनन स्वास्थ्य, सशक्तीकरण तथा श्रम बाज़ार।
  • भारत के लिये GII का मान 0.524 है तथा यह 127 वें स्थान पर है।
  • भारत के लिये मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate-MMR) वर्ष 2015 में प्रति लाख 174 मौतों का अनुमान है, जो भारत के रजिस्ट्रार जनरल के कार्यालय द्वारा जारी आँकड़ों के अनुसार 2014-16 की अवधि में घटकर 130 हो गई है।
  • भारत 2030 तक अपने SDG लक्ष्य 5.5 के अनुरूप MMR को 70 प्रति लाख तक कम करना चाहता है।
  • 2015-2020 की अवधि में किशोरियों में जन्म दर (1,000 महिलाओं पर 15-19 वर्ष की आयु की महिलाओं की संख्या) 23.1 अनुमानित है। इस मामले में भारत की स्थिति चीन को छोड़कर शेष पड़ोसी देशों की तुलना में बेहतर है।उल्लेखनीय है कि चीन में यह दर 6.4 है।
  • भारतीय संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्त्व केवल 11.6% जबकि रवांडा की संसद में 55% से अधिक महिलाएँ हैं। अतः भारत की विधायी प्रक्रिया में अधिक महिलाओं को शामिल कर इसे अधिक न्यायसंगत बनाने की तत्काल आवश्यकता हैं।
  • 63.5% पुरुषों की तुलना में केवल 39% महिलाएँ ही माध्यमिक स्तर तक (25 वर्ष या उससे अधिक) शिक्षित थीं, जो यह दर्शाता हैं की 2010-17 की अवधि के दौरान माध्यमिक शिक्षा तक महिलाओं की पहुँच बहुत ही कम थी।
  • श्रम बल भागीदारी यानी श्रम-आयु की आबादी (15 वर्ष और उससे अधिक आयु) का अनुपात जो श्रम बाज़ार में मौजूद है, वह या तो कार्यरत है या सक्रिय रूप से काम की तलाश में है, को श्रम-आयु की आबादी के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है, महिलाओं के लिये यह 27.2% तथा पुरुषों के लिये 78.8% है।
बहु-आयामी गरीबी सूचकांक (MPI)
  • भारत का MPI 0.121 है
  • वर्ष 2015-16 में किये गए सर्वेक्षण के अनुसार, भारत की 27.5% आबादी बहु-आयामी गरीबी की गिरफ्त में थी।
  • 20–33 प्रतिशत के अभाव स्कोर के साथ 19.1% भारतीय आबादी को कई प्रकार की अभावों से ग्रस्त होने का जोखिम था।
  • 8.6% लोग गंभीर बहुआयामी गरीबी में जी रहे हैं।
  • भारत में 21.9% लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं, जिसमें 21.2% लोग एक दिन में 1.90 डॉलर से भी कम कमाते हैं।
मानव विकास के सूचक
  • जनसंख्या प्रवृत्ति
♦ वर्ष 2017 में भारत की अनुमानित जनसंख्या 1339.2 मिलियन थी तथा वर्ष 2030 तक इसके 1513 मिलियन तक पहुँचने का अनुमान है।
♦ 2005-10 के दौरान औसत वार्षिक विकास दर 1.5% थी तथा 2015-2020 के दौरान इसमें 1.1% की मामूली गिरावट दर्ज की गई।
♦ भारतीय आबादी का 33.6% हिस्सा शहरी क्षेत्रों में निवास करता है जिसमें अधिकांशतः हिस्सा युवा आबादी का है।
♦ इसमें से कार्यशील जनसंख्या (15-64 वर्ष) 886.9 मिलियन तथा 5 वर्ष से कम उम्र वालों की संख्या 119.8 मिलियन है।
♦ भारत की कुल आबादी में से केवल 80 मिलियन आबादी ही ऐसी है जिनकी उम्र 65 वर्ष से अधिक है।
♦ वर्ष 2015 में भारतीय आबादी की औसत उम्र 26.7 पर पहुँच गई, जिसके और अधिक घटने की उम्मीद है।
♦ वर्ष 2015-20 के दौरान भारत की कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) 2.3 रहने की उम्मीद है।
  • स्वास्थ्य परिणाम
♦ 0-5 महीने की आयु के केवल 54.9% शिशुओं को स्तनपान कराया जाता है जो कि कम-से-कम 6 महीने की उम्र तक बच्चे के सर्वोत्तम विकास, वृद्धि तथा स्वास्थ्य के लिये बहुत आवश्यक है।
♦ एक वर्ष की उम्र वाले 9% बच्चों में DPT (डिप्थीरिया, पोलियो और टेटनस) तथा 12% बच्चों में खसरे का टीकाकरण नहीं हुआ है।
♦ 5 वर्ष से कम उम्र के 37.9% बच्चे ठिगनेपन (stunting) के या तो मध्यम या गंभीर स्वरुप से पीड़ित पाए गए।
♦ प्रति हज़ार जीवित बच्चों के जन्म पर शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate-IMR) 34.6 है, जिसे 2030 तक प्रति हज़ार 12 के स्तर पर लाया जाना है।
♦ 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में शिशु मृत्यु दर 43 प्रति हज़ार है तथा इसे 2030 तक 25 प्रति हज़ार पर लाया जाना है।
♦ भारत में महिला एवं पुरुष मृत्यु दर क्रमशः प्रति हज़ार 139 और 212 है।
♦ भारत एक उष्णकटिबंधीय देश है जिसमें जलवायु संबंधी महामारियों जैसे- डेंगू, मलेरिया आदि की संभावना लगातार बनी रहती है। 2016 में मलेरिया से पीड़ित होने वालों की संख्या 18.8 व्यक्ति प्रति हज़ार थी।
♦ WHO के अनुसार, भारत तपेदिक (TB) से सबसे अधिक ग्रस्त होने वाला देश बना हुआ है, जहाँ प्रति लाख जनसंख्या पर TB पीड़ितों की संख्या 211 है।
♦ भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 3.9% स्वास्थ्य पर खर्च करता है।
  • शिक्षा क्षेत्र में उपलब्धियाँ
♦ 2006-2016 के दौरान 15 वर्ष तथा उससे अधिक उम्र के सभी वयस्कों के लिये साक्षरता दर 69.3% थी।
♦ इसी अवधि के दौरान युवा साक्षरता दर (15-24 वर्ष) महिलाओं के लिये 81.8% तथा पुरुषों के लिये 90% थी।
♦ 25 वर्ष तथा उससे अधिक आयु वर्ग के 51.6% लोग किसी-न-किसी रूप में माध्यमिक शिक्षा के स्तर तक शिक्षित थे।
♦ प्री-प्राइमरी में सकल नामांकन अनुपात (Gross Enrolment Ratio-GER) प्री-प्राइमरी स्कूल की उम्र के बच्चों की कुल संख्या का 13% था, जो 2012-17 के दौरान भारत में स्कूली शिक्षा के शुरुआती वर्षों में प्रवेश की कमी तथा इसको दिये जा रहे महत्त्व के अभाव को दर्शाता हैं।
♦ प्राथमिक विद्यालय के लिये GER पूर्व-प्राथमिक विद्यालय की उम्र वाले बच्चों की संख्या का 115% था, जो स्कूलों में प्रोन्नति की कमी तथा ओवर एडमिशन को दर्शाता है।
♦ माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करने योग्य आबादी में से 75% का नामांकन माध्यमिक शिक्षा के लिये किया जाता है, जबकि तृतीयक शिक्षा के लिये केवल 27% छात्र ही पंजीकृत किये जाते हैं।
♦ 2007-2016 के दौरान भारत में प्राथमिक स्कूल ड्रॉपआउट (dropout) अर्थात् बीच में ही स्कूल छोड़ने की दर 9.8% थी।
♦ 2015-16 के दौरान निम्न माध्यमिक सामान्य शिक्षा की अंतिम कक्षा तक पहुँचने वाले छात्रों की दर 97% थी।
♦ सरकार द्वारा शिक्षा पर किया जाने वाला व्यय कुल GDP का 3.8% है।
  • राष्ट्रीय आय एवं संसाधनों की संरचना
♦ 2017 में भारत का कुल सकल घरेलू उत्पाद अर्थात् GDP 8,605.5 बिलियन डॉलर था।
♦ प्रति व्यक्ति GDP 6,427 डॉलर थी।
♦ 2007-17 के दौरान संगृहीत राजस्व कर कुल GDP का 11% था।
♦ 2017 में, भारत की GDP प्रति व्यक्ति विकास दर 5.4% थी।
♦ 2017 में प्राप्त कुल राजस्व कर GDP का 11% था।
♦ 2012-17 की अवधि के दौरान वित्तीय क्षेत्र द्वारा दिया गया घरेलू ऋण GDP का 75% था।
  • कार्य एवं रोज़गार
♦  रोज़गार प्राप्त जनसंख्या का अनुपात (15 या उससे अधिक आयु वर्ग की कुल आबादी में कार्यरत लोगों का कुल प्रतिशत) 51.9% है।
♦ श्रम बल भागीदारी दर (योग्य तथा काम करने के इच्छुक लोग) 53.8% है।
♦ कुल नियोजित जनसंख्या में से 42.7% लोग कृषि क्षेत्र में तथा 33.5% सेवा क्षेत्र में कार्यरत हैं।
♦ कुल श्रम शक्ति में से 3.5% लोग बेरोज़गार हैं जिसमें युवाओं का अनुपात (15-24 वर्ष की आयु) 10.5% हैं।
♦ 27.5% युवा न तो नौकरी करते हैं और न ही स्कूल जाते हैं।
♦ कुल नियोजित लोगों में से 42.9% कार्यरत लोग गरीब हैं, अर्थात वे दिन में 3.10 डॉलर से भी कम पर काम कर रहे है।
♦ वैधानिक पेंशन योग्य आयु की आबादी वाले केवल 24.1% ही पेंशन प्राप्त कर रहे हैं, जिस कारण वृद्धावस्था में जी रहे लोगों का एक बड़ा हिस्सा दयनीय स्थिति में जीवन यापन कर रहा है।
  • मानव सुरक्षा
♦ 5 वर्ष या उससे कम उम्र के 80% बच्चे ही भारत में जन्म से पंजीकृत हैं, जबकि भारत के पड़ोसी देश भूटान में जन्म के समय पंजीकरण की दर 100% है।
♦ भारत में लगभग 806 हज़ार आंतरिक रूप से विस्थापित लोग निवास करते हैं।
♦ भारत में प्राकृतिक आपदा के कारण हर साल प्रति दस लाख में से 461 लोग बेघर हो जाते हैं।
♦ प्रत्येक एक लाख लोगों में से 33 केवल लोगों को ही सज़ा हो पाती है, जो भारत में निम्न सजा दर (Low Conviction Rate) को प्रदर्शित करता हैं।
♦ भारत में प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 14.2 महिलाएँ तथा 17.9 पुरुष आत्महत्या करते हैं।
  • मानव एवं पूंजी की गतिशीलता
  • पूंजी (Capital)
♦  व्यापार (आयात और निर्यात) एवं FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) भारतीय GDP का 40% हैं, शुद्ध प्रवाह भारतीय GDP का 1.5% है।
♦  वर्ष 2016 की सकल राष्ट्रीय आय में आधिकारिक विकास सहायता (Official Development Assistance-ODA) का योगदान 0.1% है।
♦ वर्ष 2017 की GDP में में प्रेषण और अंतर्वाह (Remittances and inflows) का योगदान 2.66% था।
  • मानव
♦  भारत की शुद्ध प्रवासन दर प्रति हज़ार लोगों पर -0.4 है, यानी भारत में प्रवासियों का अंतर्ग्रहण (intake of migrants) जनसंख्या के अनुसार 0.4% है।
  • संचार
♦  2016 में कुल जनसंख्या का 29.5% लोगों ने इंटरनेट का उपयोग किया तथा 100 में से 85.2 लोगों ने मोबाइल फोन का उपयोग किया, जो 2016 के दौरान भारत में शानदार डिजिटल पैठ तथा डिजिटल आर्किटेक्चर में लोगों की अच्छी जानकारी को दर्शाता है।
♦ भारत में 2010 से 2016 के बीच मोबाइल के उपयोग में 39.4% का सकारात्मक बदलाव देखा गया।
  • अनुपूरक संकेतक: कल्याण की धारणाएं (2012-17)*
  • कल्याण की व्यक्तिगत धारणाएँ
♦ 79% भारतीय शिक्षा की गुणवत्ता से संतुष्ट हैं।
♦  स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता तथा जीवन स्तर से क्रमशः 65% एवं 76% भारतीय संतुष्ट हैं।
♦  69% महिलाओं ने उल्लिखित अवधि के दौरान भारत में सुरक्षित महसूस किया, जबकि 77% पुरुषों ने ऐसा महसूस किया।
♦  चुनने की स्वतंत्रता (Freedom of Choice) से भारतीय बहुत अधिक संतुष्ट थे, जिसमें महिलाओं की संख्या 83% तथा पुरुषों की संख्या 89% थी।
  • सामुदायिक धारणाएँ
♦  देश के केवल 44% लोगों ने महसूस किया कि देश में रोज़गार पाने के अच्छे अवसर मौजूद थे।
  • सरकार के बारे में लोगों की धारणा
♦ 83% लोगों का न्यायिक प्रणाली में तथा 84% लोगों ने राष्ट्रीय सरकार में भरोसा जताया।
♦ पर्यावरण के संरक्षण के लिये किये गए कार्यों से 77% लोग संतुष्ट दिखे।
  • मूलभूत मानवाधिकार संधियों की स्थिति
  • नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन के लिये अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, 1965 (International Convention on the Elimination of All Forms of Racial Discrimination-ICERD)
♦ यह नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों पर प्रतिबंध लगाता है। नस्लीय भेदभाव को जाति, रंग, वंश अथवा राष्ट्रीय या जातीय मूल के आधार पर किसी भी भेदभाव, बहिष्करण, प्रतिबंध या वरीयता के रूप में परिभाषित किया गया है।
♦ यह इन घटनाओं से निपटने के लिये राज्य के दायित्वों को निर्धारित करता है।
♦ यह अभिसमय राज्यों द्वारा नस्लीय भेदभाव के खिलाफ उचित उपाय करना आवश्यक मानता है, जिसमें समूहों और संगठनों द्वारा प्रसारित किये जा रहे नस्लवादी विचारों का प्रसार भी शामिल है।
♦ यह संधि 4 जनवरी, 1969 को लागू हुई।
♦ भारत द्वारा इसकी पुष्टि 1968 में की गई थी।
  • नागरिक एवं राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, 1966 (International Covenant on Civil and Political Rights-ICCPR)
♦ सभी व्यक्तियों को नागरिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं, जैसे स्वतंत्रता का अधिकार, जीवन का अधिकार, धर्म की स्वतंत्रता, वाक-स्वतंत्रता एवं जनसभा का अधिकार, समानता का अधिकार तथा प्रभावी कानूनी आश्रय का अधिकार।
♦ कुछ अधिकार जैसे- मनमाने तरीके से जीवन से वंचित न होने का अधिकार, यातना एवं अन्य प्रकार के क्रूर, अमानवीय तथा अपमानजनक व्यवहार से मुक्ति, जिन्हें आपातकाल की स्थिति में भी निलंबित या छिना नहीं जा सकता है।
ICCPR, इसके वैकल्पिक प्रोटोकॉल, ICESCR और मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणाएँ मिलकर इंटरनेशनल बिल ऑफ़ ह्यूमन राइट्स का निर्माण करते हैं।
♦ यह संधि 23 मार्च, 1969 से लागू है।
♦ भारत 1979 में इस संधि में शामिल हुआ।
  • अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार प्रतिज्ञा-पत्र (International Covenant on Economic, Social and Cultural Rights-ICESCR)
♦ यह आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों की स्थापना करता है जैसे कि न्यायपूर्ण एवं अनुकूल परिस्थितियों में काम करने का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, सांस्कृतिक जीवन में भाग लेने का अधिकार आदि।
♦ ICESCR मानवाधिकारों के अंतर्राष्ट्रीय विधेयक का हिस्सा है।
 यह 3 जनवरी, 1976 को लागू हुआ।
♦ भारत 1979 में इस संधि में शामिल हुआ।
  • महिलाओं के विरूद्ध सभी स्वरूपों के भेदभाव के निवारण संबंधी अभिसमय, 1979 (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination against Women-CEDAW)
♦ यह पहली वैश्विक एवं व्यापक कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है जिसका उद्देश्य महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के लिंग-आधारित भेदभाव को समाप्त करना है।
♦ इसके लिये राज्यों को अपने संविधान या अन्य उपयुक्त कानूनों में लैंगिक समानता के सिद्धांत को शामिल करना तथा उस सिद्धांत की व्यावहारिकता सुनिश्चित करना आवश्यक है।
 यह संधि 3 सितंबर, 1981 को प्रभावी हुई।
♦  भारत 1993 में इस संधि में शामिल हुआ।
  • यातना एवं अन्य क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार या दंड के खिलाफ कनवेंशन, 1984 (CAT)
♦ यह सभी परिस्थितियों में अत्याचार तथा दुर्व्यवहार के अन्य रूपों को परिभाषित करता है एवं ग़ैरक़ानूनी घोषित करता हैं। इसके लिये राज्यों को घरेलू कानून के तहत इसे ग़ैरक़ानूनी घोषित करने, ऐसी घटनाओं को रोकने एवं उनके लिये
कानून प्रवर्तन तथा अन्य कर्मियों को अत्याचार निषेध के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता है।
♦ अगर किसी व्यक्ति का प्रत्यर्पण करने पर यदि उस व्यक्ति को उस प्रत्यर्पित देश में यातना दिये जाने का खतरा होता है तो राज्य ऐसे व्यक्ति का प्रत्यर्पण नहीं करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
♦ यह किसी भी अभियुक्त को यातना देने पर मुकदमा चलाने या प्रत्यर्पित करने के लिये सार्वभौमिक दायित्व का भी निर्धारण करता है।
♦ यह संधि 26 जून 1987 को लागू हुई।
♦ भारत इस संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
  • बाल अधिकार पर सम्मेलन, 1989 (Convention on the Rights of Child-CRC)
♦  यह 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है तथा चार सामान्य सिद्धांतों के अनुसार बच्चों के लिये स्वास्थ्य, शिक्षा, कानूनी, नागरिक एवं सामाजिक सेवाओं के लिये मानक निर्धारित करता है:
1. बच्चों के बीच भेदभाव न करना।
2. बच्चे का सर्वोत्तम हित
3. बच्चे के जीवन, उत्तरजीविता तथा विकास का अधिकार।
4. बच्चे के विचारों का सम्मान करें।
 यह संधि 2 सितंबर, 1990 को लागू हुई।
♦ भारत ने 1992 में इस संधि पर हस्ताक्षर किये।
  • सभी प्रवासी श्रमिकों के अधिकारों और उनके परिवार के सदस्यों के संरक्षण पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन, 1990 (International Convention on the Protection of the Rights of All Migrant Workers and Members of Their Families-ICMW)
♦ यह राज्यों के लिये न्यूनतम मानक स्थापित करता है जिसे राज्यों को प्रवासी श्रमिकों और उनके परिवार के सदस्यों की प्रवासी स्थिति की परवाह किये बिना लागू करना आवश्यक है।
♦ ऐसे मानक पूरी प्रवासन प्रक्रिया पर लागू होते हैं, जैसे- प्रवास, प्रस्थान एवं पारगमन की तैयारी से लेकर रोज़गार की स्थिति में रहने और पारिश्रमिक गतिविधि की कुल अवधि तथा मूल राज्य या सामान्य निवास (Habitual Residence) की वापसी तक।
♦ यह 1 जुलाई, 2003 को लागू हुआ।
♦ भारत इस अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
  • सशस्त्र संघर्षों में बच्चों की भागीदारी पर बाल अधिकारों पर कन्वेंशन का वैकल्पिक प्रोटोकॉल, 2000 (CRC-AC)
♦ राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिये सभी संभव उपाय करने होंगे कि 18 वर्ष से कम आयु के सैन्य बलों के सदस्य सशस्त्र संघर्षों में प्रत्यक्ष हिस्सा नहीं लेंगे।
♦ 18 वर्ष से कम आयु में अनिवार्य भर्ती पर प्रतिबंध लगाना।
♦ सशस्त्र संघर्षों हेतु 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को भर्ती करने तथा उनका उपयोग करने से स्वतंत्र सशस्त्र समूहों को प्रतिबंधित करने के लिये कानूनी उपाय करना।
♦ यह 12 फरवरी, 2002 को लागू हुआ।
♦ भारत ने 2005 में इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये थे।
  • बच्चों की बिक्री, बाल वेश्यावृत्ति और बाल अश्लीलता पर बाल अधिकारों के कन्वेंशन का वैकल्पिक प्रोटोकॉल, 2000 (CR-SC)
♦ यह यौन और गैर-यौन उद्देश्यों, बाल वेश्यावृत्ति और बाल अश्लीलता के लिये बच्चों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाता है।
♦ यह बाल शोषण तथा दुर्व्यवहार को समाप्त करने हेतु राज्यों के लिये विस्तृत एवं आवश्यक प्रावधान करता है।
♦ बाल पीड़ितों को कानूनी एवं अन्य सहायता प्रदान करने तथा इन अपराधों से संबंधित गतिविधियों को गैर-कानूनी घोषित करने और दंडित करने के लिये राज्यों द्वारा इसकी पुष्टि करना आवश्यक है।
♦ यह प्रोटोकॉल 18 जनवरी, 2002 को लागू हुआ।
♦ भारत ने 2005 में इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किये।
  • बलपूर्वक गुमशुदगी (Enforced Disappearance) से सभी व्यक्तियों के संरक्षण हेतु अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय, 2006 (International Convention for the Protection of All Persons from Enforced Disappearance-ICPED)
♦ राज्य के अधिकारियों द्वारा किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता के अपहरण या हनन के रूप में परिभाषित, बलपूर्वक ग़ुम होने (Enforced Disappearance) को प्रतिबंधित करता है।
♦ यह अभिसमय इसकी रोकथाम, दंड-मुक्ति का विरोध, प्रभावी कानून प्रवर्तन तथा पीड़ितों के अधिकारों को बनाए रखने के लिये न्यूनतम कानूनी मानकों को स्थापित करता है।
♦ यह अभिसमय पीड़ितों के सत्य को जानने एवं क्षतिपूर्ति के अधिकार को भी सुनिश्चित करता है।
♦ यह कन्वेंशन 23 दिसंबर 2010 को लागू हुआ।
♦ भारत इस अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है।
विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों पर अभिसमय, 2006 (CRPD)
♦ यह विकलांग व्यक्तियों को मौलिक स्वतंत्रता तथा सभी मानवाधिकारों के पूर्ण एवं समान व्यवहार की गारंटी देता है एवं उनकी अंतर्निहित गरिमा के लिये सम्मान को बढ़ावा देता है।
♦ इसके अनुसार, विकलांगता एक व्यक्ति की स्थिति और एक अनधिगम्य (inaccessible) समाज के बीच पारस्परिक विचार-विमर्श का परिणाम है।
♦ चूँकि, समाज को दुरूह बनाने वाले अवरोध विविध हैं। अतः यह कन्वेंशन इन बाधाओं को भेदभावपूर्ण मानता है तथा उन्हें हटाने की आवश्यकता पर बल देता है।
♦ यह अभिसमय 3 मई, 2008 को लागू हुआ। 
♦ भारत ने 2007 में इस अभिसमय पर हस्ताक्षर किये।
मानव विकास के डैशबोर्ड (Dashboards)
  • मानव विकास की गुणवत्ता
  • स्वास्थ्य की गुणवत्ता
♦ भारत में 2016 में स्वास्थ्य प्रत्याशा के रूप में कुल जीवन प्रत्याशा में 13.9% की गिरावट देखी गई है।
♦ 2007-17 की अवधि के दौरान भारत में प्रति 10,000 लोगों पर केवल 7.6 चिकित्सक थे, परंतु इस मामलें में पाकिस्तान बेहतर स्थिति में है जहाँ हर 10,000 लोगों पर चिकित्सकों का अनुपात 9.8 है।
♦ भारत के अस्पतालों में प्रत्येक 10,000 लोगों पर केवल 7 बेड हैं, जबकि नेपाल जैसे छोटे राष्ट्र में प्रत्येक 10,000 लोगों पर 50 बेड हैं। इसलिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिये अभी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
  • शिक्षा की गुणवत्ता
♦ भारत के प्राथमिक विद्यालयों में प्रत्येक 35 विद्यार्थियों पर केवल एक शिक्षक है, जो निचले स्तर पर है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय मॉडल मानकों के तहत प्रति 15-18 विद्यार्थियों पर एक शिक्षक होना चाहिये।
♦ प्राथमिक विद्यालयों में केवल 70% शिक्षक विद्यालयों में पढ़ाने के लिये प्रशिक्षित हैं।
  • जीवन स्तर की गुणवत्ता
♦ 2016 तक केवल 77.6% ग्रामीण आबादी तक ही बिजली की पहुँच सुनिश्चित की जा सकी है।
♦ 2015 तक कुल आबादी में से 87.6% लोग ही बेहतर पेयजल स्रोतों का उपयोग कर रहे थे, जबकि 2015 में केवल 44.2% लोगों की पहुँच बेहतर स्वच्छता सुविधाओं तक थी।
  • लाइफ-कोर्स जेंडर गैप (Life-Course Gender Gap)
♦ भारत में प्रत्येक महिला जन्म की तुलना में 1.11 पुरुष जन्म लेते हैं (2015-2020)।
♦ 2012-17 के दौरान पूर्व-प्राथमिक, प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालयों में सकल नामांकन अनुपात (GER) क्रमशः 0.94, 1.17 और 1.02 था।
♦ प्रत्येक बेरोज़गार पुरुष की तुलना में 1.02 महिलाएँ बेरोज़गार हैं।
♦ 25 से ऊपर की उम्र के प्रत्येक पुरुष की तुलना में केवल 0.64 महिलाएँ ही माध्यमिक स्तर तक शिक्षित हैं।
♦ गैर-कृषि क्षेत्र (उद्योग, सेवाओं) के कुल रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी 18.6% ही है।
  • महिला सशक्तीकरण
♦ 85.7% प्रसवों में कुशल स्वास्थ्य कर्मियों की भागीदारी थी। (2012-17)
♦ गर्भावस्था से संबंधित समस्याओं के कारण 2015 के दौरान मातृ मृत्यु दर (MMR) 174 प्रति लाख थी।
 गर्भनिरोधकों का प्रसार
♦ 53.5% शादीशुदा या अन्य प्रकार के संबंध में रहने वाली 15-49 वर्ष आयु की महिलाओं किसी-न-किसी तरीके से गर्भनिरोधकों तक पहुँच थी।
♦ 12.9% गर्भधारण करने योग्य महिलाओं को परिवार नियोजन की आवश्यकता है।
  • महिलाओं के विरुद्ध क्रूरता या हिंसा
♦ 20-24 वर्ष की आयु की 27% महिलाओं की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले कर दी जाती है। (बाल विवाह)
  • अंतरंग साथी द्वारा हिंसा (Intimate partner)
♦ 15 वर्ष तथा उससे अधिक आयु की 28.7% महिलाएँ अपने अंतरंग साथी की हिंसा का शिकार होती हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक स्थिति
♦ विज्ञान, गणित, इंजीनियरिंग, विनिर्माण तथा निर्माण में कुल स्नातकों में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 26.9% है।
♦ भारत में 15 वर्ष या उससे अधिक आयु की 76.6% महिलाओं का किसी-न-किसी वित्तीय संस्थान में या मोबाइल मनी (mobile money) सेवा प्रदाता के पास अपना एकाउंट है।
♦ भारत में अनिवार्य मातृत्व अवकाश 182 छुट्टियों के साथ वैश्विक मानकों के अनुरूप है।
  • पर्यावरणीय स्थिरता या स्थायित्व
♦ वर्ष 2010-2015 के बीच हुई कुल ऊर्जा खपत में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी 73.5% है। 
♦ वर्ष 2015 में हुई कुल ऊर्जा खपत का 36% हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा का है। 
♦ प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 1.7 टन है जो ब्रिक्स राष्ट्रों में सबसे कम है। यह ब्राज़ील में 2.6, चीन में 7.5, दक्षिण अफ्रीका में 9 तथा रूस में 11.9 टन है।
♦ भारत के कुल भूमि क्षेत्र का 23.8% भाग वनाच्छादित है तथा इसके मूल्य (Value) में 1990-2015 के दौरान 10.5% का परिवर्तन हुआ है।
  • पर्यावरणीय खतरा
♦ 2016 में घरेलू तथा वायु प्रदूषण के कारण प्रति लाख 184.3 लोगों की मृत्यु हुई।
♦ असुरक्षित जल, साफ-सफाई तथा स्वच्छता (Hygiene) की समस्या के कारण प्रति लाख 18.6 लोगों की मृत्यु हुई।
♦ रेड लिस्ट इंडेक्स जो प्रजातियों के समूह की संख्या में वास्तविक परिवर्तन के आधार पर विलुप्त होने के खतरों को मापता है, में 0.684 अंकों के साथ भारत को निचले पायदान पर रखा गया है।
  • सामाजिक-आर्थिक स्थिरता
♦ 2006-16 की अवधि के दौरान भारत की कुल समायोजित शुद्ध बचत (शुद्ध राष्ट्रीय बचत + शैक्षिक व्यय - ऊर्जा, खनिज, वन क्षय, CO2 और कण उत्सर्जन की क्षति) कुल GNI का 15.5% थी, जो राष्ट्रीय बचत से दो-तिहाई अधिक है।
♦ 2011-17 की अवधि के दौरान कुल सकल पूंजी निर्माण GDP का 30.8% था।
♦ भारत में कुल श्रम बल का केवल 18.5% श्रमिक ही कुशल थे, जो दो-तिहाई से कम है।
♦ एकाग्रता सूचकांक- भारत की निर्यात बास्केट केंद्रीकृत नहीं है तथा उत्पादों में विविधता है, यह 0.120 के मान के साथ शीर्ष वरीयता वालें देशों में शामिल हैं।
♦ भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद का 0.6% ही अनुसंधान और विकास पर खर्च करता है, जबकि रक्षा पर सकल घरेलू उत्पाद का 2.5% खर्च करता है।
♦ 2010-17 के दौरान 7 साल की अवधि में असमानता के कारण भारत के HDI मान में समग्र नुकसान 1.4% है।
HDR 2018 का मूल्यांकन (मानव विकास रिपोर्ट)
  • पूरे राष्ट्र में विकास संकेतकों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा सकती है लेकिन मानव विकास की गुणवत्ता में ह्रास देखा गया है।
  • प्रगति रैखिक या प्रत्याभूत (Guaranteed) नहीं है, तथा संकट एवं चुनौतियाँ इसक लाभ या वृद्धि को पलट सकती हैं।
  • महिलाओं और पुरुषों के मध्य अपनी पूर्ण क्षमताओं के उपयोग को लेकर काफ़ी असमानताएँ हैं।
  • पर्यावरणीय ह्रास तथा जलवायु परिवर्तन को हल किये बिना मानव विकास की प्रगति को बनाए नहीं रखा जा सकता है।
सुझाव
  • IHDI को देशों के भीतर हो रहे मानव विकास के वितरण को जानने के प्रयास हेतु प्रकाशित किया गया है।
  • असमानता जितनी अधिक होगी HDI उतना ही कम होगा।
  • भविष्य की प्रगति की निगरानी के लिये मानव विकास की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करना महत्त्वपूर्ण है।
  • भेद्यता एवं संघर्ष के चक्र को तोड़ने, कमज़ोरियों को कम करने तथा प्रगति को बनाए रखने के लिये मानव सुरक्षा हेतु निवेश आवश्यक है।
  • मानव विकास को वास्तव में टिकाऊ बनाने के लिये दुनिया को व्यापार के सामान्य दृष्टिकोण से हटकर सतत् उत्पादन एवं उपभोग के तरीकों को अपनाने की आवश्यकता है।

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