Wednesday, July 3, 2019

भारत की दार्शनिक प्रवृत्तियाँ (Philosophical trends of India)

Ashok Pradhan     July 03, 2019     No comments


भारत में पहली शताब्दी से पूर्व ही 6 आस्तिक व 3 नास्तिक दार्शनिक मतों का प्रतिपादन हो चुका था।

प्राचीन भौतिक दर्शन

प्रणेता

उच्छेदवादअजित केश कम्बलिन
अक्रियावादीपूरण कश्यप
नित्यवादीपकुद कच्चायन
नियतिवादीमक्खलि गोशाल
अनिश्चयवादीसंजय वेलट्पुत्त
  • आस्तिक मत को षडांग दर्शन सिद्धांत कहते हैं जिसमें सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत शामिल हैं।
  • नास्तिक मत में बौद्ध, जैन तथा चार्वाक प्रमुख हैं, इसे भौतिकतावादी दर्शन भी कहते हैं।

सांख्य

  • कपिल मुनि द्वारा प्रवर्तित इस दर्शन को भारत का प्राचीनतम दर्शन माना जाता है।
  • इनकी रचना है- तत्त्व समास।
  • बाद के आचार्यों में ईश्वरकृष्ण प्रमुख हैं और उनका ग्रंथ ‘सांख्यकारिका’ प्रसिद्ध है।
  • इसमें सत्कार्यवाद, विकासवाद तथा भौतिकता के साथ-साथ संख्या आधारित आध्यात्मिकता और वैज्ञानिकता प्रसिद्ध है।

योग दर्शन

  • इसके प्रणेता पतंजलि हैं जिन्होंने ‘योगसूत्र’ नामक ग्रंथ की रचना की।
  • ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों का निग्रह, योगमार्ग का मूलाधार है।
  • भारत के इस दर्शन की महत्ता ऐसी रही कि वर्तमान दौर में यू.एन.ओ. द्वारा 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया गया है।

न्याय

  • न्याय-दर्शन के प्रवर्तक महर्षि गौतम माने जाते हैं, जिनका ग्रंथ ‘न्यायसूत्र’ इस दार्शनिक प्रवृत्ति का पहला ग्रंथ माना जाता है।
  • 12वीं सदी में न्याय दर्शन को नया रूप गंगेश उपाध्याय ने अपने ग्रंथ ‘तत्त्व चिंतामणि’ में दिया।
  • इस दर्शन में तर्क और प्रमाण के प्रयोग का महत्त्व प्रतिपादित हुआ है।

वैशेषिक

  • इस दर्शन के प्रवर्तक महर्षि कणाद हैं जिन्होंने ‘कणाद-सूत्र’ रचा।
  • इन्होंने द्रव्य अर्थात् भौतिक तत्त्वों का विवेचन करते हुए परमाणुवाद की स्थापना की।

मीमांसा

  • कर्मकांड, यज्ञ आधारित इस दर्शन के प्रतिपादन में आचार्य जैमिनी का नाम अग्रगण्य है।
  • मीमांसा के अनुसार वेदों में कही गई बातें सदा सत्य हैं।
  • यह पुरोहितवाद, बाह्य आडंबर को बढ़ावा देने वाला दर्शन है।

वेदांत

  • ईसा-पूर्व दूसरी सदी में संकलित बादरायण का ब्रह्मसूत्र इस दर्शन का मूल ग्रंथ है। इसे उत्तर मीमांसा भी कहते हैं।
  • बाद में इस पर दो प्रख्यात भाष्य शंकराचार्य (9वीं सदी) और रामानुज (12वीं सदी) द्वारा लिखे गए।

वेदांत आधारित अन्य दार्शनिक मत

भाष्यकारवादभाष्य
शंकराचार्य (8–9वीं सदी)अद्वैतवादशंकरभाष्य
रामानुजाचार्य (11–12वीं सदी)विशिष्टाद्वैतवादश्रीभाष्य
मध्वाचार्य (13–14वीं सदी)द्वैतवादपूर्णप्रज्ञभाष्य
वल्लभाचार्य (15–16वीं सदी)शुद्धाद्वैतवादअणुभाष्य
निम्बार्काचार्य (13वीं सदी)भेदाभेदवादवेदांत परिजात सौरभ
  • ज्ञान आधारित इस दर्शन की पृष्ठभूमि में उपनिषद् था और ब्राह्मण-हिन्दू धर्म का अधिकांश दार्शनिक मतवाद इसी वेदांत दर्शन से प्रभावित-प्रेरित रहा है।

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